माओ के राजनीतिक विचार के PYQ आधारित नोट्स बनाये गए हैं। जिसमें माओ का परिचय एवं योगदान, अंतर्विरोध का सिद्धांत, लोकयुद्ध की संकल्पना, नव लोकतंत्र का सिद्धांत, माओ के क्रांति संबंधी विचार एवं अन्य महत्वपूर्ण तथ्य तथा माओ की पुस्तकों एवं लेखों का विवरण है।
माओ का परिचय
माओ त्से तुंग का जीवन काल 1893 से 1976 है। माओ का जन्म 1893 में चीन में हुआ था। माओ त्से तुंग चीन के एक क्रांतिकारी, राजनीतिक विचारक और साम्यवादी दल के नेता थे। माओ के नेतृत्व में ही चीन की क्रांति सफल हुई। कृषक वर्ग की क्रांतिकारी भूमिका पर बल देना माओ का सर्वाधिक मौलिक योगदान है। माओ के समकालीन समय में निम्न समस्याएं है-
- सामंतवादी शोषण
- जापानी साम्राज्यवाद
- किसानों का असन्तोष
अन्तर्विरोध (विरोध) का सिद्धांत
साम्यवादी चीन के जनक माओ त्से तुंग ने अन्तर्विरोधी का सिद्धांत दिया। अन्तर्विरोध निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है। एक विरोध शांत होता है तो एक नया विरोध उत्पन्न हो जाता है। माओ के अनुसार समाजवादी व्यवस्था में अंतर्विरोध अनंत काल तक विद्यमान रहेंगे। प्रतिरोधी तथा अप्रतिरोधी अंतर्विरोध के बीच माओ ने अंतर किया है।
माओ ने विरोध के दो प्रकार बताए है। प्रथम सामंजस्यशील विरोध, जो जनता के मध्य आपस में होते हैं। इस प्रकार के विरोध को अहिंसा के माध्यम से सुलझाया जा सकता है। ये विरोध साम्यवादी क्रांति के बाद भी विद्यमान रहते हैं। द्वितीय गैर-सामंजस्यशील विरोध, जो शोषक और शोषितों के बीच होता है। जिसे सुलझाने के लिए हिंसा की आवश्यकता होती है।
लोकयुद्ध (People’s War) की संकल्पना
लोकयुद्ध (People’s War) की संकल्पना विकसित करने का श्रेय माओ त्से तुंग को जाता है। माओ के अनुसार युद्ध में हथियारों का अपना महत्व है, पर वे निर्णायक तत्व नहीं हैं, निर्णय मनुष्य के द्वारा किया जाता है जड़ वस्तुओं के द्वारा नहीं। इन्होंने युद्ध की रणनीति के अंतर्गत आक्रमणकारी से सामरिक रक्षा, लोगों का प्रति-आक्रमण एवं लोगों की आक्रमणकारी नीति और दुश्मन का पीछे हटना शामिल है।
नव लोकतंत्र का विचार
माओ ने किसानों और श्रमिकों का जनवादी लोकतांत्रिक अधिनायकत्व स्वीकार किया। माओ के द्वारा पहली बार साम्यवादी क्रांति में बुर्जुआ वर्ग को सम्मिलित करने का विचार दिया। माओ का महिला स्वतंत्रता का समर्थन करते का कथन है कि महिलायें आधे आकाश को उठाये हुए हैं। इन्होंने लोकतांत्रिक सहभागिता की मान्यता को स्वीकार किया और आधारभूत स्तर पर लोगों की सहभागिता को प्रोत्साहित किया है।
माओ त्से तुंग द्वारा प्रतिपादित नव लोकतंत्र का मुख्य लक्षण संयुक्त तानाशाही के तहत सभी साम्राज्यवाद विरोधी और सामंतवाद विरोधी लोगों के नेतृत्व में सर्वहारा वर्ग का एक लोकतांत्रिक गणतंत्र तथा संयुक्त समाजवादी सोवियत गणतंत्र के जैसा एक लोकतांत्रिक गणतंत्र इत्यादि हैं। माओ त्से तुंग का मानना है कि लोगों के लिए लोकतंत्र होता है तथा प्रतिक्रियावादियों के लिए अधिनाटकत्व होता है।
माओ के क्रांति संबंधी विचार
माओ के राजनीतिक विचार के अंतर्गत माओ का मानना था कि क्रांति लगातार चलने वाली एक प्रक्रिया है। क्योंकि माओ का मानना है कि समाज में क्रांतियों का एक दौर चलेगा, जिसमें लोंगों का वैचारिक परिवर्तन किया जा सकेगा। समाजवाद के अंतर्गत सांस्कृतिक क्रांति (1996-76) एवं स्थाई क्रांति के सिद्धांत का प्रतिपादन राजनेता माओ के द्वारा किया गया।
इस लिए माओ को सांस्कृतिक क्रांति के लिए जाना जाता है। सांस्कृतिक क्रांति के कार्यान्वयन की जिम्मेदारी लाल सुरक्षा कर्मी (रेड गार्ड) और चांडाल चौकड़ी (गैंग ऑफ फोर) नामक संगठनों को सौंपी गई। चांड़ाल चौकड़ा का मुख्य उद्देश्य सांस्कृतिक क्रांति को सफल बनाना था। जिसका मुखिया जियांग क्विंग था।
माओ की क्रांति की अन्य योजनाएं-
- पंचवर्षीय योजना क्रांति (1953 से 1957)
- सैकड़ो फूल खिलने दो और अनेक विचार संप्रदायों को शामिल होने दो (1957) – वैचारिक परिवर्तन से संबंधित यह माओ का प्रथम जन आंदोलन है।
- लंबी छलांग का आंदोलन (1958 से 1960) – आर्थिक विकास से संबंधित
माओ की पुस्तकें और लेख
- ऑन न्यू डेमोक्रेसी 1940
- ऑन कोएलिशन गवर्नमेंट
- ऑन पीपुल्स डेमोक्रेटिक डिक्टेटरशिप 1949
- माओ ने ऑन कॉनट्राडिक्शन नामक निबंध भी लिखा है।
माओ के संबंध में महत्वपूर्ण तथ्य
- माओ जेडोंग ने कहा है कि राजनीतिक कार्य समस्त आर्थिक कार्य का जीवन रक्त है।
- माओ ने भौतिक तत्वों के स्थान पर चेतना को ज्यादा महत्वपूर्ण माना है।
- माओ त्से तुंग ने प्रथम बार किसानों को क्रांति का अगुआ बनाया।
- माओ का कथन है कि राजनीतिक शक्ति बंदूक की नली से निकलती है।
- साम्यवाद को एशियाटिक फार्म में माओत्से तुंग ने अनुकूलित किया।
- माओ के अनुसार क्रांति खाने की दावत या निबंध लिखने जैसा नहीं है बल्कि यह सैकड़ो वर्षों के विद्रोह एवं दमन का परिणाम होता है।
- माओ, क्रांति का केन्द्र शहरों के स्थान पर गाँवों को बनाता है तथा क्रांति के लिए गुरिल्ला युद्ध पद्धति के प्रयोग का सुझव देता है।
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