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महात्मा गाँधी के राजनीतिक विचार

महात्मा गाँधी के राजनीतिक विचार के PYQ आधारित नोट्स बनाये गए हैं। जिसमें महात्मा गाँधी का परिचय, और गांधी के विचारों पर प्रभाव, महात्मा गाँधी के स्वराज्य का विचार, सर्वोदय का विचार, अहिंसा का विचार, सत्याग्रह का विचार, न्यासिता का सिद्धांत तथा गाँधी जी के अनुसार राजनीति और धर्म के विचार का विवरण है। जो TGT Civics, PGT Civics, LT Civics, GIC Political Science, UGC NET Political Science, Political Science Assistant Professor, UPPSC etc. के विगतवर्षों में आयोजित परीक्षाओं के प्रश्नो पर आधारित है।

महात्मा गाँधी

गाँधी जी की आत्मकथा का नाम ‘सत्य के साथ मेरे प्रयोग’ है। जिसमें गाँधी जी के बचपन से 1921 तक के जीवन का उल्लेख है। यह मूलतः गुजराती भाषा में लिखी गई थी। गाँधी ने हिन्द स्वराज में अपनी व्याख्या तात्विक या दर्शनात्मक अराजकतावादी के रूप में की है। क्योंकि गाँधी राज्य विरोधी थे। गाँधी जी ने अपने विचारों को प्रयोग के आधार पर प्रकट किया है। गाँधी जी ने कहा ‘मेरे लिए ईश्वर सत्य और प्रेम है।’ ‘गीता बोध’ महात्मा गाँधी के द्वारा लिखी गई रचना है।

गाँधी जी के विचारों पर प्रभाव

पश्चिमी स्रोत –

  • बाइबिल का पर्वत प्रवचन,
  • टॉलस्टाय की कृतियों
  • रस्किन की कृतियों
  • थोरो की कृतियों से गाधी के असहयोग या सविनय अवज्ञा का विचार प्रभावित है।

पूर्वी स्रोत –

  • माता से प्राप्त वैष्णव हिन्दू धर्म,
  • गीता व उपनिषद
  • जैन व बौद्ध धर्म

अहिंसा का विचार

महात्मा गाँधी के राजनीतिक विचार में अहिंसा का स्थान स्वराज्य से पहले है। अहिंसा की एक अनिवार्य शर्त, संघर्ष का सामना करना और सम्बद्ध खतरे का जोखिम उठाना है। गांधी का मानना था कि अहिंसा निर्बल का शस्त्र नहीं है यह सबल का शस्त्र है।

गाँधी का कथन है ‘अहिंसा के साथ-साथ सत्याग्रह को मिला देने से आप विश्व को अपने कदमों में ले आयेंगे।’

अहिंसा के प्रकार

गाँधी के अनुसार अहिंसा तीन प्रकार की होती है।

  1. जागृत अहिंसा – यह वीर पुरूषों की अहिंसा होती है। जो अन्तरात्मा की स्वाभाविक पुकार से जन्म लेती है।
  2. कायरों की अहिंसा – यह डरपोक व्यक्तियों की अहिंसा होती है।
  3. औचित्यपूर्ण की अहिंसा – यह आवश्यकता पड़ने पर नीति के रूप में अपनायी जाती है।

सत्याग्रह का विचार

गांधी ने साधन और साध्य दोनों की पवित्रता पर बल दिया है। उनके अनुसार साध्य को छोड़ दो यदि साधन अपवित्र है। वह साधन को साध्य से पहले रखते हैं। गांधी जी का मानना था जैसे साधन होंगे, साध्य भी वैसा ही होगा। क्योंकि साध्य की उत्पत्ति साधन से होती है। इसलिए स्वराज्य प्राप्ति के लिए गांधी जी ने सत्याग्रह का मार्ग चुना। गांधी जी के शब्दों में “मेरे लिए अहिंसा का स्थान स्वराज से पहले है।”

गाँधी जी के लिए सत्याग्रह निष्क्रिय विरोध के समान नहीं है। क्योंकि सत्याग्रह से तात्पर्य क्रूर राज्य सत्ता के विरुद्ध लोगों द्वारा विधिसम्मत, नैतिक और सच्चाईयुक्त राजनीति कार्यवाही है। जबकि अहिंसात्मक या निष्क्रिय प्रतिरोध के सिद्धांत के जनक अरबिन्दो घोष हैं। जिसमें हिंसा को पूर्ण रूप से नकारा नहीं जाता है अर्थात पूर्ण अहिंसा को नहीं मानते हैं।

सत्याग्रह प्रतिरोध की अवधारणा का एक आध्यात्मिक एवं नीतिवादी स्वरूप है। क्योंकि यह अवधारणा नैतिक सोदेश्यवाद पर बल देती है।

गाँधी जी के सत्याग्रह के साधन

  1. असहयोग,
  2. सविनय अवज्ञा,
  3. उपवास,
  4. सामाजिक बहिष्कार

महात्मा गाँधी ने सत्याग्रह के अस्त्र का सर्वप्रथम प्रयोग दक्षिण अफ्रीका में किया।

गाँधी का स्वराज

गाँधी के हिन्द स्वराज में 20 अध्याय है। हिंद स्वराज की रचना गाँधी जी ने 1909 में दक्षिण अफ्रीका से लौटते समय जहाज पर की थी। हिन्द स्वराज बिस्मार्क के जर्मनी का समर्थन करता है। हिन्द स्वराज की कथा को आख्यान की श्रेणी में संवाद के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है। एम. के. गाँधी के हिन्द स्वराज के विचारों को निम्न प्रकार समझ सकते है।

  • हिन्द स्वराज में गाँधी के होमरूल की संकल्पना की रूपरेखा दी गई है। जिसमें आत्म निर्भरता, सामाजिक सुधार और ग्राम गणराज्य शामिल है। संसदीय शासन शामिल नहीं है।
  • गाँधी जी के स्वराज की अवधारणा स्वशासन थी।
  • हिन्द स्वराज हिंसक राष्ट्रवादियों का प्रत्युत्तर है।
  • हिन्द स्वराज ब्रिटिश राज को आधुनिक सभ्यता के रूप में देखती है।
  • हिन्द स्वराज संवाद शैली में लिखी गई है।

गाँधी जी का स्वदेशी विचार मुलतः आर्थिक व राजनीतिक पहलू धारण करता है। धार्मिक नहीं पहलू नहीं।

महात्मा गाँधी का रामराज्य

गाँधी जी का स्वराज्य एक आदर्श समाज है। जिसमें सभी व्यक्ति सत्ता के दुरुपयोग का प्रतिरोध करने की क्षमता के युक्त है। गाँधी ने स्वराज को रामराज्य के समरूप माना है। जिसका अर्थ यह नहीं है कि यह हिन्दू राज्य है। गाँधी जी के शब्दों में “मैं रामराज्य का अर्थ दैवी राज्य की ईश्वर का साम्राज्य मानता हूँ। रामराज का आदर्श सच्चे प्रजातंत्र का आदर्श है।”

इस प्रकार स्वराज पूर्ण सामाजिक न्याय, समानता तथा स्वतंत्रता की अवस्था है। रामराज्य स्वराज्य की चरम अवस्था है। रामराज्य गाँधी जी की कल्पना में आदर्श राज्य है। वास्तव में गांधी जी के स्व शासन से अभिप्राय शासकीय नियंत्रण से स्वतंत्र होना है।

स्वराज्य की विशेषताएँ

  • स्वशासन
  • सर्वहित की खोज
  • नैतिक रूप से श्रेष्ठ व्यक्ति का शासन

गाँधी के अनुसार राजनीति और धर्म

महात्मा गांधी के राजनीतिक विचार में गाँधी जी ने धर्म, नैतिकता एवं आध्यात्म तीनो को एक ही माना हैं। गाँधी ने राजनीति के आध्यात्मिकरण पर बल दिया है। वे सत्य, अहिंसा, ईमानदारी, नैतिकता, परोपकार, सादगी, सदाचार जैसे नैतिक मानवीय मूल्यों को राजनीति में लाने के लिए राजनीति का आध्यात्मिकरण करना चाहते थे।

गांधी के अनुसार धर्म से अलग राजनीति मृत्युजाल है। राजनीति में धर्म का प्रवेश आवश्यक है क्योंकि धर्म के अभाव में यह साम्प्रदायिक रंग ले सकती है। गाँधी जी को राजनीति के आध्यात्मीकरण की प्रेरणा उनके राजनीतिक गुरू गोपाल कृष्ण गोखले से मिली थी। गाँधी आध्यात्मिक, धार्मिक और नैतिक ये तीनों अभिव्यक्तियों का एक ही अर्थ मानते थे।

  • गाँधी ने कहा है कि “जो लोग यह कहते है कि धर्म का राजनीति से कोई लेना-देना नहीं है वे धर्म का अर्थ नहीं जानते।”
  • गाँधी जी ने कहा था, मैं जिन भी धार्मिक व्यक्तियों से मिला उनमें से अधिकतर छद्मवेश में राजनितिज्ञ थे। लेकिन, मैं राजनीतिज्ञ का वेष धारण करता हूँ, जो छद्मवेष में हृदय से एक धार्मिक व्यक्ति है।
  • गाँधी जी के अनुसार धर्म से रहित राजनीति मात्र कूड़ा है। गांधी जी ने कहा कि मेरी दृष्टि में धर्म के बिना कोई राजनीति नहीं। धर्म के बिना राजनीति मौत का जाल है जो आत्मा की हत्या कर देता है।

ट्रस्टीशिप या न्यासिता का सिद्धांत

ट्रस्टीशिप की अवधारणा का प्रतिपादन महात्मा गाँधी के द्वारा किया गया। गाँधी जी का मानना था की पुँजीपतियों को स्वयं को संपत्ति का मालिक नहीं मानना चाहिए उन्हें संपत्ति और उत्पादन के साधनों को संपूर्ण समाज की धरोहर मानकर उनका प्रयोग केवल लोक कल्याण के लिए करना चाहिए न कि निजी लाभ के लिए। इस प्रकार गांधी जी पूँजीपतियों के ह्रदय परिवर्तन की बात करते हैं।

गाँधी के न्यासधारिता के सिद्धांत को संक्षेप में मानवीय चेहरे के साथ पूँजीवाद कहा जा सकता है। क्योंकि इसके अंतर्गत पूँजीपति स्वयं को अपनी सम्पत्ति का मालिक नहीं बल्कि ट्रस्टी समझता है। न्यासिता का सिद्धांत गांधीवाद का एक महत्वपूर्ण आर्थिक सिद्धांत है। गाँधीजी द्वारा प्रतिपादित न्यायधारिता का लक्ष्य समाज की नैतिक तथा आर्थिक समस्या को सुलझाना है। इसे निम्न प्रकार समझ सकते हैं।

  • अमीरो का नैतिक विकास
  • गरीबों का आर्थिक विकास
  • वर्ग विहीन समाज की स्थापना
  • आर्थिक समानता की स्थापना

गाँधी जी के सर्वोदय का विचार

गांधी जी का सर्वोदय का विचार गांधी दर्शन में समाजवाद का विकल्प है। गांधी सभी प्रकार के शोषण के विरोधी है। उन्होंने समाज में समानता और स्वतंत्रता का प्रबल समर्थन किया है। और गरीबी को दूर करने का प्रयास भी किया है। गाँधी जी ने लुई फिशर से कहा, “मैं सच्चा समाजवादी हूँ। मेरे समाजवाद का अर्थ सर्वोदय है।” गाँधी की सर्वोदय अवधारणा के संबंध में समाज के सभी वर्गों का कल्याण का विचार है।

महात्मा गाँधी के राजनीतिक विचार में गाँधी ने कहा है कि प्रत्येक ग्राम पंचायत एक गणराज्य होगी, यदि गाँव नष्ट होंगे तो भारत नष्ट हो जाएगा। गांधी जी ने कहा है कि जो छोटा है वही सुन्दर है। गाँधी जी राज्य को एक आत्मा विहीन यंत्र मानते है।

निर्धारणवाद और गाँधी जी

निर्धारणवाद ऐसी अवधारणा है जो इस बात में विश्वास करती है कि सभी कुछ पूर्व निश्चित है। निर्धारणवाद के बारे में गाँधी की आलोचना तुलनात्मक सत्य में उनका विश्वास प्रकट करती है।

गाँधी भौतिक सभ्यता के आलोचक थे और वह विशेष रूप से औद्योगिक क्रांति को पसंद नहीं करते थे। उनका विश्वास था कि औद्योगिक क्रांति गहरे मूल्यों को नष्ट कर रही है।

सत्यवीर की कथा, जिसका अनुवाद गाँधी जी द्वारा गुजराती में किया गया था वह डायलॉग्स ऑफ प्लेटो थी।

गाँधी जी द्वारा संचालित घटनाएँ

  • एशियाटिक रजिस्ट्रेशन ऐक्ट के विरुद्ध विरोध प्रकटीकरण
  • महात्मा गाँधी द्वारा बर्ष 1917 में आरम्भ किया गया चंपारन सत्याग्रह प्रथम सत्याग्रह था। जो नील फसल की खेती के विरूध विरोध किया गया था।
  • भू-राजस्व की वसूली के विरुद्ध कैरा में सत्याग्रह आन्दोलन।
  • अहमदाबाद में औद्योगिक श्रमिकों को उच्च मजदूरी के लिए 1918 में संगठित किया।

गांधी के कार्य

  • ग्राम उद्योग संघ
  • गो रक्षा संघ
  • तालिमी संघ (निःशुल्क प्राथमिक शिक्षा)

गांधी जी के प्रमुख विचार

  • सत्य और अहिंसा
  • समाजवाद
  • पंचायती राज

महात्मा गांधी द्वारा स्थापित आश्रम

  1. फिनिक्स सेटलमेंट – 1904
  2. टालस्टाय फार्म – 1910
  3. कोचराव आश्रम – 1915
  4. सेवाग्राम आश्रम – 1936

गांधी पर लिखी गई पुस्तकें

  • स्टडीज इन गांधीज्म – के. एन. बोस
  • पोलिटिकल फिलॉसफी ऑफ महात्मा गांधी – जी. एन. धवन
  • महात्मा गांधी – बी. जोन
  • दि गांधीयन फिलॉसफी ऑफ कॉन्फ्लिक्ट – स्टेम्ले जोन्स

नोट इन्हें भी पढ़े –

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