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कौटिल्य के राजनीतिक विचार

कौटिल्य के राजनीतिक विचार के PYQ आधारित नोट्स बनाये गए हैं। जिसमें कौटिल्य का परिचय,  कौटिल्य का अर्थशास्त्र, कौटिल्य के राज्य एवं राजा का विचार, राज्य का सप्तांग सिद्धांत, मंडल सिद्धांत और कौटिल्य का शड़गुण सिद्धांत का विवरण है। जो TGT Civics, PGT Civics, LT Civics, GIC Political Science, UGC NET Political Science, Political Science Assistant Professor, UPPSC etc. के विगतवर्षों में आयोजित परीक्षाओं के प्रश्नो पर आधारित है।

कौटिल्य के राजनीतिक विचार

कौटिल्य को भारत का मैकियावेली के नाम से जाना जाता है। विशाखदत्त द्वारा रचित मुद्राराक्षस के अनुसार कौटिल्य का नाम विष्णुगुप्त है किन्तु कथासरित्सागर में चाणक्य मिलता है। कौटिल्य राजनीतिक अर्थशास्त्र को एक स्वतंत्र विषय बनाने वाले प्रथम व्यक्ति थे। पहली बार उन्होंने ही भारत में एक सुदृढ़ राजनीतिक नियंत्रण की जरूरत पर जोर दिया। उन्होने राजनीति के एक ऐसे सिद्धांत का प्रतिपादन किया जो राज-व्यवस्था के प्रत्यक्ष व्यवहारिक सरोकारों से संबंधित था।

कौटिल्य की पुस्तक अर्थशास्त्र

कौटिल्य की प्रसिद्ध पुस्तक या कृति अर्थशास्त्र है। यह संस्कृत भाषा में लिखा गया राजनीति शास्त्र का ग्रंथ है। जिसमें 15 अधिकरण (भाग), 180 प्रकरण तथा 150 अध्याय हैं। अर्थशास्त्र के छठे अधिकरण के दूसरे अध्याय में कौटिल्य ने सुरक्षा एवं विदेश संबंधों के बारे में मण्डल सिद्धांत का वर्णन किया है।

अर्थशास्त्र की विषयवस्तु

  • अर्थशास्त्र में कौटिल्य ने समसामयिक राजनीति, अर्थनीति, यथार्थवाद, राज्यशासन कला, नैतिकता निरपेक्ष, विधि, समाजनीति एवं धर्म आदि पर प्रकाश डाला है।
  • अर्थशास्त्र में सरकार के 34 विभागों का उल्लेख किया गया है। विभागाध्यक्षों एवं अधिकारी वर्गों को कौटिल्य अष्टादश तीर्थों की संज्ञा देते हैं।
  • कौटिल्य ने अर्थशास्त्र में सरकारी धन के गबन के 40 तरीकों का उल्लेख किया है।

वेबर का कथन है कौटिल्य का अर्थशास्त्र उग्र मैकियावेली का उदाहरण है, इसकी तुलना में मैकियावेली का प्रिंस अहानिकारक है।

कौटिल्य का राजा

कौटिल्य राजतंत्र का समर्थक था। कौटिल्य का कथन है कि जो राजाओं का अनादर करते हैं उन पर दैवीय सजा होती है।

राजा की विशेषताएँ

उसके अनुसार राजा को कुलीन, धर्म की मर्यादा चाहने वाला, कृतज्ञ, दृढ़निश्चय, विचारशील, सत्यवादी, विवेकपूर्ण, वृद्धों के प्रति आदरशील, दूरदर्शी, उत्साही, युद्ध में चतुर होना चाहिए।

राजा के उत्तरदायित्व का सिद्धांत

राजा के लिए उत्तरदायित्व के सिद्धांत का जिक्र करते हुए, कौटिल्य ने कहा है कि, “अपनी प्रजा की खुशी में उसकी खुशी है, प्रजा के कल्याण में उसका कल्याण है।”

राजा के कार्य

  • कौटिल्य के अनुसार राजा का मुख्य कार्य विधि को लागू करना है।

कौटिल्य के अनुसार राजा के लिए उत्तम अभिशासन के सिद्धांत है-

  1. वैयक्तिकता का कर्तव्यों के साथ विलय।
  2. आचार संहिता के साथ अनुशासित जीवन व्यतीत करना।
  3. कानून एवं व्यवस्था बनाए रखना।

राजा की मंत्रिपरिषद

कौटिल्य के अनुसार मंत्रिपरिषद में मंत्रियों की नियुक्ति का आधार योग्यता थी। मंत्री सुयोग्य और परीक्षित होते थे। परीक्षा के विषय भय तथा सदाचार होते थे।

राज्य का सप्तांग सिद्धांत

कौटिल्य द्वारा राज्य के सप्तांग सिद्धांत का प्रतिपादन किया गया। सप्तांग सिद्धांत का संबंध राजनीतिक व्यवस्था से है। कौटिल्य ने राज्य के सप्तांग सिद्धांत का वर्णन करते हुए राज्य को ‘प्रत्यांग भूत’ भी कहा है।  कौटिल्य के अनुसार राज्य के सात अंग निम्न प्रकार है।

  1. स्वामी,
  2. अमात्य,
  3. जनपद,
  4. दुर्ग,
  5. कोष,
  6. दण्ड,
  7. मित्र

कौटिल्य के अनुसार राज्य के अंगों की मानव शरीर के अंग से तुलना।

  • अमात्य – आँखे
  • सुहरिद या सुह्रद – कान
  • दुर्ग – भुजाएँ
  • कोष – मुख

मण्डल सिद्धांत

कौटिल्य का मंडल सिद्धांत विजिगीषु राजा द्वारा अपने पड़ोसी देशों के साथ अपनाई जाने वाली नीति है। इसमें राजाओं या राज्यों की संख्या 12 होती है। जिसे द्वादशः राजमण्डल कहा जाता है। मंडल के सभी राजाओं की प्रकृतियों की संख्या कौटिल्य ने 72 बताई है। जबकी महाभारत में इनकी संख्या 60 बताई गई है।

द्वादशः राजमण्डल

यह चार मंडलों से मिलकर बनता है जिसमें विजिगीषु और उसके मित्र, शत्रु, मध्यम और उदासीन राज्यों के चार समूह होते हैं। इन समूहों में तीन-तीन राज्य शामिल होते है। इस प्रकार ये सभी 12 राज्य मिलकर वृहद् राज्य मंडल की रचना करते हैं।

  • कौटिल्य ने अपने राज्यमंडल से विजिगिषु का राजा के रूप में उल्लेख किया है। जो विजेता होगा।
  • ए. एस. अल्टेकर ने कौटिल्य के मंडल सिद्धांत को शक्ति संतुलन पर आधारित माना है।

कौटिल्य के अंतर्राष्ट्रीय राजनीति के विचार

कौटिल्य के अंतर्राष्ट्रीय राजनीति के संबंध में यथार्थवादी विचार हैं। कौटिल्य ने राज्य की सुरक्षा व शक्ति को बढ़ाने के लिये शड़गुण नीति (Six-Fold Theory) का प्रतिपादन किया। जिसके 6 अवयव निम्न प्रकार है

शड़गुण नीति (Six-Fold Theory)

  1. संधि – शांति बनाए रखने के लिए दो राज्यों के बीच परस्पर संबंध स्थापित करना।
  2. विग्रह – एक दूसरे राज्य के बारे में दुराग्रह फैलाना अर्थात युद्ध करने का निर्णय।
  3. यान – आक्रमणकारी नीति अर्थात युद्ध घोषित किए बिना युद्ध के लिए चढ़ाई करना।
  4. आसन – विशेष परिस्थिति में मौन रहना अर्थात उदासीनता या तटस्थ की नीति।
  5. संश्रय – दूसरे के लिये स्वयं को समर्पित कर देना अर्थात अन्य राजा का संरक्षण प्राप्त करने का प्रयत्न।
  6. द्वैधीभाव – एक राज्य का, दूसरे राज्य के साथ संधि अर्थात एक राजा से शांति की संधि करके दूसरे के साथ युद्ध करने की नीति।

कौटिल्य द्वारा दिए योगक्षेम सिद्धांत का अर्थ अच्छा प्रशासन है।

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