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जॉन रॉल्स के राजनीतिक सिद्धांत

जॉन रॉल्स के राजनीतिक सिद्धांत के PYQ आधारित नोट्स बनाये गए हैं। जिसमें जॉन रॉल्स का परिचय एवं प्रभाव, रॉल्स के न्याय का सिद्धांत एवं जॉन रॉल्स के न्याय सिद्धांत के भाग,अज्ञानता के आवरण की धारणा, रॉल्स के न्याय के समाजिक समझौता सिद्धांत एवं इससे जुड़ी अवधारणाएँ, प्राथमिक वस्तुओं की अवधारणा, प्राथमिकता का सिद्धांत, न्याय के सिद्धांत के विभिन्न नाम, रॉन रॉल्स के लोकतंत्र का विचार एवं अन्य महत्वपूर्ण कथन तथा जॉन रॉल्स की पुस्तकों का विवरण है।

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जॉन रॉल्स का परिचय

उदारवादी विचारक जॉन रॉल्स का जन्म 21 फरवरी 1921 को अमेरिका में हुआ। ये अमेरिका के हार्वर्ड विश्वविद्यालय में दर्शनशास्त्र के प्रोफेसर थे। इन्होंने अपना लेखन कार्य 1950 से प्रारम्भ किया, जिसका प्रकाशन सर्वप्रथम 1957 में ‘मस्टिकल ऐज फेयरनेस : ए रीस्टार्टमेंट’ नाम से हुआ। इनके विचारों का केन्द्रीय विषय ‘न्याय’ है, जिसके द्वारा इन्होंने ‘न्यायपूर्ण समाज’ स्थापित करने का प्रयास किया। राल्स के विचारों पर कांट का प्रभाव स्पष्ट दिखाई पड़ता है। राल्स का न्याय, कांट के आदर्शवादी विचारों पर आधारित है। राल्स का प्रसिद्ध कथन “आत्मन, साध्य से पहले है।” या ‘अधिकार, शुभ से पहले है।’ (The self is prior to its ends) कांट के विचार ‘व्यक्ति, स्वयं में साध्य है’ से प्रभावित है।

रॉल्स के न्याय का सिद्धांत

रॉल्स का न्याय सिद्धांत 1960 से 70 के दशक में अमेरिकी समाज की अव्यवस्था का परिणाम है। जॉन रॉल्स ने 20वीं शताब्दी में अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘थ्योरी ऑफ जस्टिस’ में न्याय की अवधारणा को पुनः राजनीतिक विचारधारा के केन्द्र में स्थापित किया। जॉन रॉल्स के राजनीतिक सिद्धांत के अनुसार ‘न्याय, समाज का मुख्य सद्गुण है’ क्योंकि समाज के द्वारा न्याय के नियमों का निर्माण किया गया। अतः न्याय, मानव के तार्किक चयन का परिणाम है। रॉल्स ने ‘न्याय’ को ‘न्याय उचितता के रूप’ में घोषित किया है। रॉल्स के न्याय-सिद्धांत को ‘अधिकतम-न्यूनतम सिद्धांत’ (Maxi-Mini Principal) भी कहा जाता है। जिसका आशय है, समाज में न्यूनतम स्थिति में रहने वाले लोगों के लिए अधिकतम लाभ। इसके लिए रॉल्स ने अज्ञान के पर्दे की संकल्पना की।

अज्ञानता का आवरण (अज्ञान का पर्दा) –

जहां व्यक्ति समाज में अपना स्थान, अपनी वर्ग स्थिति अथवा सामाजिक हैसियत नहीं जानता और भविष्य के समाज में उसकी स्थिति क्या होगी उसके विषय में उसे ज्ञान नहीं होता है। यहां तक कि प्राकृतिक सम्पदाओं के वितरण तथा क्षमता में अपने भाग्य को कोई नहीं जानता। सभी पक्षकार अपनी विशिष्ट मनोवैज्ञानिक प्रवृत्तियों को नहीं जानते। सभी पक्षकार अच्छे की अपनी अवधारणा के बारे में भी नहीं जानते हैं। अतः इस स्थिति में व्यक्तियों ने परस्पर समझौता करके न्यायपूर्ण समाज के निर्माण का प्रयत्न किया।

रॉल्स के न्याय का सामाजिक समझौता

रॉल्स ने अपने न्याय के सामाजिक समझौते के विवेचन में ‘मूल स्थिति’ शब्दावली का प्रयोग किया है। मूल स्थिति में व्यक्ति समझौता करते समय अपनी समाजिक हैसियत, जातीय स्थिति, वर्गीय स्थिति, योग्यता, निपुणता, क्षमता आदि को नहीं जानता है। वह अपने रंग-रूप, अमीरी-गरीबी के बारे में भी नहीं जानता और न हि अपने दलित, पिछड़ा, हिन्दु और मुस्लिम होने के बारे में जानता है। क्योंकि यही बातें समाज में संघर्ष उत्पन्न करती है। इनके बारे में उस व्यक्ति को ज्ञान नहीं है। इसी अज्ञान के कारण वे निष्पक्ष रूप से समझौता करते हैं।

समझौते के पक्षकार निम्न बातों को जानते हैं

  • अपने समकालीन व्यक्तियों को जानते हैं।
  • समाज के सामान्य तथ्यों व नियमों को जानते हैं।
  • उन्हें आर्थिक सिद्धांतों व राजनीतिक मामलों की साधारण समझ होती है।
  • वे समाजिक संगठन न मानव मनोविज्ञान की साधारण बातें जानते है।
  • उनमें न्याय की चेतना उपस्थित होती है।

इस प्रकार निष्पक्षता के रूप में न्याय सभी विवेकशील मनुष्यों द्वारा स्वीकृत किए जाने की क्षमता रखता हैं, चाहे उनके अन्य विचार कितने भी भिन्न हों। निष्पक्षता के रूप में न्याय परस्पर व्यापी मतैक्य का प्रयोजन बन सकता है।

जॉन रॉल्स के न्याय सिद्धांत के भाग निम्न सिद्धांत है

समान स्वतंत्रता का सिद्धांत – इसका आशय है कि प्रत्येक व्यक्ति को ऐसा विस्तृत स्वतंत्रता का समान अधिकार प्राप्त होना चाहिए, जिसमें दूसरों की वैसी ही स्वतंत्रता का सम्मान किया जा सके। जॉन रॉल्स के द्वारा स्वतंत्रता और समानता के मध्य संतुलन बनाने का “सहयोगात्मक चेष्टा का सिद्धांत” एक सराहनीय सिद्धांत दिया गया।

जॉन रॉल्स के राजनीतिक सिद्धांत में स्वतंत्रता को सर्वाधिक महत्व दिया गया है। क्योंकि स्वतंत्रता को केवल स्वतंत्रता के लिए ही सीमित किया जा सकता है; अन्यथा नहीं।

भेदमूलक सिद्धांत (विभेद के नियम) – अर्थात् समाजिक व आर्थिक विषमताएँ इस तरह से व्यवस्थित की जाए कि इनसे हीनतम या न्यूनतम स्थिति वाले लोगों को अधिकतम लाभ मिल सके।

अवसर की उचित समानता का सिद्धांत – इसके अंतर्गत समाजिक व आर्थिक विषमताएँ उन पदों और स्थितियों के साथ जुड़ी हो जो अवसर की उचित समानता की शर्तों पर सबके लिए सुलभ हो।

जॉन रॉल्स के सिद्धांत से संबंधिक पदावली- अज्ञान का पर्दा, मूल स्थिति, विशेष पूर्वता क्रम 

रॉल्स के न्याय के समाजिक समझौता सिद्धांत से जुड़ी अवधारणाएँ –

मूल स्थिति की धारणा – यह एक काल्पनिक स्थिति है जिसके माध्य से न्याय के सिद्धांत की खोज वस्तुनिष्ठ व निष्पक्ष तरीके से की जा सके।

अज्ञान की पर्दा – मूल स्थिति में व्यक्ति अज्ञान के पर्दे में रहता है।

विमर्शी समत्व – इसका आशय है कि मूल स्थिति व न्याय के सिद्धांत, स्थिर एवं स्थाई नहीं है बल्कि समयानुसार बदलते रहते हैं।

विवेकशील वार्ताकार – वे मनुष्य जो मूल स्थिति में आपसी सहमति से समझौता करते हैं, विवेकशील वार्ताकार हैं।

प्राथमिक वस्तुएँ – ऐसी वस्तुएं जिनके बिना मनुष्य का विकास संभव नहीं। राल्स के अनुसार न्याय की समस्या मूलतः प्राथमिक वस्तुओं के वितरण की समस्या है।

प्राथमिक वस्तुओं के दो प्रकार –

  1. प्राकृतिक प्राथमिक वस्तुएं जैसे बुद्धि और स्वास्थय।
  2. सामाजिक प्राथमिक वस्तुएं जैसे अधिकार, स्वतंत्रता, संपत्ति और गरिमा का सम्मान।

प्राथमिक वस्तुओं का आवंटन केवल बदरत परिस्थितियों में लागू किया जाता है। तत्पश्चात व्यक्ति को स्वतंत्र प्रतिस्पर्धा के लिए अवसर दिया जाता है। जिसे रॉल्स न्यूनतम स्थिति में रहने वाले को अधिकतम लाभ के रूप में मानता है। अतः रॉल्स ऐसी विषमता को स्वीकार करता है जिससे वंचित व्यक्ति का कल्याण होता है। क्योंकि प्रतिभाशाली लोगों की प्रतिभा का प्रयोग वंचित लोगों के कल्याण में किया जाता है, इस कारण रॉल्स के न्याय सिद्धांत को ‘क्षतिपूर्ति का सिद्धांत’ कहा जाता है। उल्लेखनीय है, जॉन रॉल्स दक्षता और समानता के बीच सामन्जस्य (समंजन) को स्वीकार नहीं करता है।

प्राथमिकता का सिद्धांत

रॉल्स ने न्याय को सामाजिक कल्याण एवं कुशलता दोनों से प्राथमिक माना है। जॉन रॉल्स के अनुसार लोगों के लिए प्राथमिक सद्-वस्तुओं में स्वतंत्रता, अवसर और आत्मसम्मान निहित है। राल्स ने समान स्वतंत्रता के अधिकार को प्रथम प्राथमिकता, अवसर की समानता को द्वितीय प्राथमिकता और न्यूनतम स्थिति में रहने वाले लोगों का कल्याण को तृतीय प्राथमिकता पर रखा है। रॉल्स का मामना है कि इस क्रम में कोई परिवर्तन संभव नहीं है।

रॉल्स के न्याय के सिद्धांत को निम्न नामों से भी जाना जाता है

  1. शुद्ध प्रक्रियात्मक न्याय का सिद्धांत
  2. न्याय का अनुबंधमूलक या सामाजिक समझौता सिद्धांत
  3. न्याय का वितरणात्मक सिद्धांत
  4. न्याय का फल निरपेक्ष व परिणाम निरपेक्ष सिद्धांत
  5. परस्परव्यापी मतैक्य का सिद्धांत
  6. आच्छादित एकता का सिद्धांत
  7. क्षतिपूर्ती का सिद्धांत
  8. अधिकतम-न्यूनतम सिद्धांत (Maxi-Mini Principal)

रॉन रॉल्स के लोकतंत्र का विचार

मूल स्थिति में जब समझौता होता है तो धार्मिक, दार्शनिक, राजनीतिक या नैतिक सिद्धांतों पर वार्ताकार एकमत होते है। यह सहमति की व्यवस्था ‘संवैधानिक लोकतंत्र’ में आगामी पीढ़ियों के लिए भी होती है।

राल्स के अनुसार विमर्शी लोकतंत्र का आशय नागरिकों के द्वारा विभिन्न मुद्दों को लेकर आपस में विचार-विमर्श करने से है। जिसमें किसी मुद्दे पर वे पक्ष या विपक्ष में अपने विचार रखते है।

रॉल्स ने विमर्शी लोकतंत्र के तीन प्रमुख तत्व बताए हैं।

  1. सार्वजनिक विवेक
  2. संवैधानिक प्रजातांत्रिक संस्थाओं की उपस्थिति
  3. नागरिकों द्वारा सार्वजनिक विवेक का अनुसरण कर सार्वजनिक मुद्दों पर बहस करना।

जॉन रॉल्स के न्याय सिद्धांत के बारे में कथन

  • रॉल्स मानता है कि अज्ञान के पर्दे की अवधारणा काण्ट के नैतिक सिद्धांत में अंतर्निहित है।
  • माइकल सैण्डल का मानना है कि रॉल्स का न्याय, न्याय नहीं भ्रातृत्व समाज का प्रथम सद्गुण है।
  • रॉल्स ने न्याय और कल्याणकारी राज्य के बीच प्रभावी अंतर्सम्बंध स्थापित किया।
  • सी. बी. मैक्फर्सन के अनुसार रॉल्स का उदारवाद संशोधित उदारवाद है। रॉल्स के न्याय सिद्धांत में उदारवादी लोकतांत्रिक पूँजीवादी कल्याणकारी राज्य का परिष्कृत रूप है।
  • रॉल्स ने प्रक्रियात्मक न्याय और तत्वात्मक न्याय में समन्वय स्थापित किया है।
  • रॉल्स ने समाज में पारस्परिक लाभ के लिए एक सहयोगात्मक चेष्टा (Venture) की संकल्पना की।
  • जॉन रॉल्स ने अपनी पुस्तक ‘ए थ्योरी ऑफ जस्टिस’ में जॉन लॉक, जे. जे. रूसो और इमेन्युअल कॉन्ट के सामाजिक अनुबंध परंपराओं का पुनरूद्धार किया है किन्तु हॉब्स की परंपरा का नहीं।
  • जॉन रॉल्स अंतर सिद्धांत और समतावाद में विश्वास रखते है।
  • रॉल्स के अनुसार, न्याय कोई राजनीतिक मूल्य नहीं है बल्कि न्याय एक ‘मानक’ है। न्याय का आधार नैतिकता नहीं बल्कि विवेकशील चिन्तन है।
  • रॉल्स ने अपने न्याय के सिद्धांत के माध्यम से सबसे पहले उपयोगितावादी विचारों का खण्डन किया।
  • डेनियल बेल ने रॉल्स को समाजवादी नैतिकता का विचारक तथा उसके विचारों को समाजवादी नैतिकता का उदारवादी चिंतन माना है।
  • ब्रायन बैरी के अनुसार ‘रॉल्स का न्याय, ग्लेडस्टोनियम व स्पेन्सरीयन न्याय है।’
  • निस्बेट ने माना कि रॉल्स के न्याय सिद्धांत में रूसो की आत्मा है।
  • आमर्त्य सेन का कथन है कि रॉल्स बांसुरी तो सबको देता है परंतु बजाना किसी को नहीं सिखाता है।

जॉन रॉल्स की पुस्तकें

  • ए थ्योरी ऑफ जस्टिस 1971
  • जस्टिस ऐज फेयरनेस 1985
  • द लॉ ऑफ पीपल्स 1993
  • पॉलिटिकल लिब्रलिज्म 1993
  • लैक्चर्स ऑन द हिस्ट्री ऑफ मोरल फिलॉसोफी 2000

रॉल्स ने अपनी पुस्तक ‘द लॉ ऑफ पीपल्स’ में अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था के आधारों को बताया है जो निम्न है-

  1. लोगों के बीच उचित व्यापार
  2. सहकारी बैकिंग संस्थाओं से उधार
  3. संयुक्त राष्ट्र की स्वीकृति, जिसे उन्होंने पीपुल्स परिसंघ (Confederaion of People’s) कहा।

इसी पुस्तक (‘द लॉ ऑफ पीपल्स’) में इन्होंने आठ सिद्धांतों का भी प्रतिपादन किया है।

  1. लोग की स्वतंत्रता का सम्मान।
  2. संधियों एवं समझौतो का लोगों द्वारा पालन।
  3. समझौते में शामिल सभी व्यक्तियों की समानता।
  4. अहस्तक्षेप का पालन करना।
  5. आत्मसक्षा का अधिकार, इसके अलावा अन्य किसी कारण से युद्ध नहीं होगा।
  6. मावन अधिकारों का समान सम्मान।
  7. युद्ध के दौरान निश्चित प्रतिबंधों का पालन आवश्यक।
  8. व्यक्तियों की सहायता एवं न्यायपूर्ण राजनीतिक और सामाजिक व्यवस्था की स्थापना।

इन्हें भी पढ़े – 

रूसो के सिद्धांत
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