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रवीन्द्रनाथ टैगोर के राजनीतिक विचार

रवीन्द्रनाथ टैगोर के राजनीतिक विचार के PYQ आधारित नोट्स बनाये गए हैं। जिसमें रवीन्द्रनाथ टैगोर का परिचय, रवीन्द्रनाथ टैगोर के राज्य का विचार, रवीन्द्रनाथ टैगोर के राष्ट्रवाद का विचार, रवीन्द्रनाथ टैगोर का आध्यात्मिक मानवतावाद का विचार, रवीन्द्रनाथ टैगोर के स्वतंत्रता के विचार, रवीन्द्रनाथ टैगोर से संबंधित अन्य महत्वपूर्ण विचार तथा रवीन्द्रनाथ टैगोर की पुस्तकों का विवरण है।

रवीन्द्रनाथ टैगोर का परिचय

प्रसिद्ध भारतीय लेखक, कवि, नाटककार, संगीतकार और चित्रकार रवीन्द्रनाथ टैगोर जी का जन्म 7 मई 1861 को कलकत्ता में हुआ। स्वयं के बारे इन्होंने कहा है कि, मेरा जन्म वर्ष इतिहास की एक महत्वपूर्ण तिथि नहीं था परंतु वह बंगाल में हमारे इतिहास के एक महान युग का अंग अवश्य है। इ्न्होंने स्वयं के पालन-पोषण के तरीके को ‘नौकर तंत्र’ कहा। महात्मा गांधी के द्वारा रवीन्द्र नाथ टैगोर को ‘गुरुदेव’ की उपाधी दी गई।

तीन वर्ष की आयु में इन्होंने ‘समस्त देशों में उनका घर और प्रत्येक देश उनका देश’ लिखकर, लिखना प्रारम्भ कर दिया। 8 वर्ष की उम्र में इन्होंने अपनी पहली कविता लिखी। 16 वर्ष की आयु में सन् 1877 में इनकी प्रथम लघुकथा का प्रकाशन हुआ। इनकी ‘गीतांजली’ नामक काव्यरचना को 14 नवम्बर 1993 में साहित्य का नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया। 2011 में हार्वर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस ने विश्व भारती विश्वविद्यालय के साथ अंग्रेजी में उपलब्ध टैगोर के कार्यों का सबसे बड़ा संकलन ‘द एसेंशियल टैगोर’ को प्रकाशित किया है।

1915 में जार्ज पंचम ने इन्हें ‘नाइटहुड’ की उपाधि से सम्मानित किया जिसे इन्होंने 1919 में जलियावाला बाग हत्याकाण्ड के विरोध में वापस कर दिया था। टैगोर जी के द्वारा कृषि अर्थशास्त्री, लिपोनार्ड एमहर्स्ट के साथ 1921 में ‘ग्रामीण पुनर्निर्माण संस्थान’ की स्थापना की। यही संस्था आगे चलकर ‘श्रीनिकेतन’ के नाम से जाना गया। वर्तमान में यह ‘विश्वभारती’ विद्यालय बन गया है।

रवीन्द्रनाथ टैगोर के राज्य का विचार

टैगोर जी के अनुसार राज्य से ज्यादा समाज का महत्व होता है। और व्यक्ति के लिए समाज का महत्व ज्यादा होता है। इसीलिए राज्य को समाज के कार्य छीनने की अनुमति नहीं होती है। राज्य का मुख्य कार्य कल्याणकारी होता है। रवीन्द्रनाथ टैगोर के राजनीतिक विचार के अंतर्गत रूस के समाजवादी प्रयोग की प्रशंसा की गई और इसे ज्यादा मानवीय व संवेदनशील होने कि सलाह भी दी गई। क्योंकि रूस में व्यक्ति की स्वतंत्रता पर संकट विद्यमान था।

रवीन्द्रनाथ टैगोर के राष्ट्रवाद का विचार

टैगोर जी का मानना था कि राष्ट्रवाद का विचार, वास्तविक स्वतंत्रता के विचार का विरोधी है। क्योंकि एक ओर जहाँ वास्तविक स्वतंत्रता राष्ट्रीयता के संकीर्ण दायरे से परे होती है, वहीं दूसरी ओर राष्ट्रवाद का विचार राष्ट्रीयता के संकीर्ण दायरे में सिमट जाता है।

वस्तुतः राष्ट्रवाद का विचार यूरोपीय संकल्पना है। टैगोर के अनुसार राष्ट्रवाद के विचार का जन्म वैज्ञानिक व तकनीकी प्रगति के परिणाम स्वरूप हुआ है। जो अंततः उपनिवेशवाद और साम्राज्यवाद की ओर बढ़ जाता है। परिणामतः यह राष्ट्रवाद युद्ध, हथियार दौड़ और हिंसा को जन्म देता है। इसीलिए इन्होंने यूरोपीय राष्ट्रवाद को आक्रामक राष्ट्रवाद बताया और इसका विरोध भी किया। इस संबंध में टैगोर जी कहा कि राष्ट्रवाद एक बहुत बड़ा उत्पात है।

टैगोर जी ने भारतीय और यूरोपीय राष्ट्रवाद के बीच अंतर किया है। इन्होंने अपने राष्ट्रवाद की आवधारणा में ‘राष्ट्र’ के स्थान पर ‘लोग’ की संकल्पना का समर्थन किया है। गुरूदेव अपने राष्ट्रवादी दर्शन में लोगों से यह आग्रह किया है कि हमें अपनी एकता के आध्यात्मिक आदेश में गहरा विश्वास होना चाहिए। और यह संसार मानवीय आत्मा के विकास हेतु है।

इनके अनुसार भारतीय राष्ट्रवाद का आधार विश्वव्यापी बंधुता एवं लोगों के बीच समरसता है। इन्हीं मूल्यों पर भारतीय राष्ट्रवाद का मूल उद्देश्य विश्व नागरिक समाज का विर्माण करना पूर्ण हो सकता है। इस प्रकार टैगोर जी का राष्ट्रवाद, मानववादी और अंतर्राष्ट्रीयतावादी है। अतः इनके अनुसार राष्ट्रवाद केवल स्वराज्य एवं राजनीतिक स्वतंत्रता तक सीमित नहीं है। बल्कि इसका मुख्य लक्ष्य आध्यात्मिक और नैतिक उत्थान है। टैगोर जी का कथन है कि राष्ट्र हमारा अंतिम आध्यात्मिक मंजिल नहीं हो सकता। मेरी शरणस्थली तो मानवता है।

रवीन्द्रनाथ टैगोर का आध्यात्मिक मानवतावाद का विचार

गुरूदेव रवीन्द्रनाथ सही अर्थों में मानवता के उपासक थे। इनका मानकतावाद, आध्यात्मिकता के धरातल पर विकसित हुआ है। टैगोर जी का मानना है कि मनुष्य इस दृश्यमान जगत में ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ रचना है क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति में परमात्मा का अंश व्याप्त है। इसलिए मानव का विश्व भाव मानव की अंतरात्मा की आवाज है जो मनुष्य को सम्पूर्ण विश्व को अपना परिवार मानने के लिए प्रेरित करता है। मनुष्य, मानवता के धर्म से विमुख होकर मानव का कल्याण नहीं कर सकता है बल्कि वह मानव को विनाश की ओर चला जाएगा। इस प्रकार टैगोर जी ने मानव धर्म (जिसे मानवता कहते है) को ही सबसे महत्वपूर्ण माना है।

रवीन्द्रनाथ टैगोर के स्वतंत्रता के विचार

टैगोर जी का अनुसार जो लोग राजनीतिक रूप से स्वतंत्र होते हैं, वे वास्तविक रूप से स्वतंत्र नहीं होते हैं। वे केवल शक्तिशाली होते हैं। रवीन्द्रनाथ टैगोर के राजनीतिक विचार में स्वतंत्रता को सच्ची स्वतंत्रता, पूर्ण जागरण, पूर्ण स्व-अभिव्यक्ति के रूप में माना है। टैगोर जी के अनुसार राजनीतिक स्वतंत्रता व्यक्ति के व्यक्तित्व को पूर्णता प्रदान नहीं करती है। वास्तविक स्वतंत्रता वहां होती है जहाँ समाज में ऐसी अनुकूल परिस्थितियां हो, जिसमें प्रत्येक व्यक्ति स्वयं को उस सर्वोच्च सत्ता तक ले जा सके। इन्होंने वास्तविक स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए चार चरण बताए है-

  1. व्यक्तिगत स्तर पर स्वतंत्रता की प्राप्ति।
  2. व्यक्ति से समुदाय के स्तर पर स्वतंत्रता।
  3. समुदाय से ब्रह्मांड के स्तर पर स्वतंत्रता।
  4. ब्रह्मांड से अनंत तक स्वतंत्रता की प्रगतिशील यात्रा।

टैगोर के लिए सच्ची स्वतंत्रता की प्राप्ति व्यक्ति के स्वयं को सांसारिक प्रलोभनों के संकुचित बंधनों से मुक्त करने की तथा अपने व्यक्तित्व के अनंत के अंतिम पड़ाव की ओर प्रगतिशील यात्रा की योग्यता पर निर्भर करती है। अतः वास्तविक स्वतंत्रता व्यक्ति की मौलिक रचनात्मकता पर बल देती है।

रवीन्द्रनाथ टैगोर से संबंधित अन्य महत्वपूर्ण विचार

  • टैगोर जी ने भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन की पद्धतियों की आलोचना की है। इनके अनुसार गांधी जी के असहयोग आंदोलन में आध्यात्मिक एवं नैतिक शक्ति का अभाव था। क्योंकि गांधी जी का आंदोलन केवल राजनीतिक और आर्थिक उद्देश्य से प्रेरित था। और इस आंदोलन के द्वारा शहरी बढ़ा-लिखा वर्ग राजनीतिक व आर्थिक शक्ति प्राप्त करना चाहता है।
  • टैगोर जी ने गांधी जी के व्यक्तित्व की प्रशंसा करते हुए ‘महात्मा’ की उपाधी दी। लेकिन इनके विचारों में मतभेद था।

रवीन्द्रनाथ टैगोर की पुस्तकें

  • काबुलीवाला 1892
  • चोकर बाली 1903
  • गोरा 1910
  • गीतांजलि 1910
  • द पोस्ट ऑफिस 1912
  • साधना 1913
  • घर और बहार 1916
  • स्ट्रे बर्डस् 1916
  • द स्प्रिट ऑफ जापान 1916
  • नैशनलिज्म 1917
  • क्रिएटिव यूनिटी 1922
  • द रिलिजन ऑफ मैन 1931
  • आमार सोनार बांग्ला
  • जन गण मन (राष्ट्रगान) 1911,
  • रक्ताकोरबी और मुक्ताधारा कृतियां हैं।

इन्हें भी पढ़े –

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