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कबीर के विचार

कबीर के विचार के PYQ आधारित नोट्स बनाये गए हैं। जिसमें कबीरदास का परिचय, कबीर के सामंतवाद संबंधी विचार, कबीर के आदर्श राज्य का विचार, कबीर के आदर्श समाज का विचार, कबीर के मानववादी समानता का विचार, कबीर एक क्रांतिकारी सुधारक, कबीर के एकेश्वरवाद संबंधी विचार तथा कबीर की पुस्तकों का विवरण है।

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कबीर का परिचय

15वीं सदी के भारतीय रहस्यवादी कवि व संत, कबीरदास एक समाज सुधारक और सामाजिक समानता के पक्षधर थे। कबीर का जन्म काशी के जुलाह परिवार में हुआ था। तथा इनकी मृत्यु गोरखपुर के मगहर नामक स्थान पर हुई थी। 

कबीरदास जी के गुरू वैष्णव संत रामानंद थे। भारतीय इतिहास के मध्यकाल जिसे हिंदी साहित्य में भक्तिकाल कहा जाता है, में इन्होंने ज्ञानाश्रयी निर्गुण शाखा का प्रर्वतन किया। इनका संबंध भक्ति और पंचवाणी से है।

कबीर के विचार पर दादू, नानक आदि का प्रभाव स्पष्ट दिखता है। कबीरदास ने हिन्दू एवं इस्लाम दोनों धर्मों में प्रचलित कुरीतियों, अंधविश्वास और पाखण्ड का घोर विरोध किया है। साथ ही दोनों धर्मों में व्याप्त सामाजिक बुराइयों की कड़ी आलोचना की है। 

कबीर के विचार एवं शिक्षाओं को आधार कबीरपंथी नामक धार्मिक संप्रदाय की स्थापना हुई। जिन्हें आज कबीरदास के अनुयायी कहा जाता है। कबीर एक आध्यात्मिक व्यक्ति थे जो स्वार्थों से मुक्त, निर्भीक तथा निडर थे। इनका मूल उद्देश्य समाज की भलाई करना था।

कबीर के सामंतवाद संबंधी विचार

कबीर के विचार 15वीं सदी में समय से आगे और अत्यधिक क्रांतिकारी थे। जो समाज में विद्यमान सामंतवादी सत्ता को चुनौती देते है। जिसने आम जनता का शोषण किया हैं। कबीरदास के विचार वैचारिक क्रांति का समर्थन करते हैं लेकिन हिंसा का नहीं। इन्होंने अपने विचारों में जन सामान्य की पीड़ा को दर्शाया है। और अहिंसात्मक रूप में समाज के परिवर्तन का मार्ग दिखाया है।

कबीर के आदर्श राज्य का विचार

कबीर जी ने प्लेटो की तरह एक आदर्श राज्य की कल्पना की है। जिसकी तुलना तुलसीदास जी के रामराज्य से की जा सकती है। जिसे कबीरदास जी ने अमर देशवा कहा है। जिसमे किसी प्रकार का भेदभाव और शोषण नहीं होगा तथा समाज का संचालन मानवीय मूल्यों के आधार पर होगा। जहां सभी व्यक्तियों को इच्छानुसार जीवनयापन की स्वतंत्रता होगी। इस प्रकार कबीर के विचारों में लोकतंत्र की झलक दिखाई देती है। 

कबीर के आदर्श समाज का विचार

वस्तुतः कबीर जी ने राज्यविहीन काल्पनिक समाज का विचार दिया जिसे बेगमपुरा कहा है। जिसमें गरीबी, जाति-व्यवस्था, कर प्रणाली का कोई स्थान नहीं होगा। ऐसे समाज का निर्माण आम प्रजा के माध्यम से होगा जिसमें सभी लोग क्षमतानुसार कार्य करेंगे, आगे चलकर मार्क्स ने भी यही विचार स्वीकार किया है।

इन्होंने प्रशासनिक एवं राजसत्ता की विशेषकर तत्कालीन न्यायिक व्यवस्था व राजस्व व्यवस्था की आलोचना की है। और राजसत्ता को शोषण का माध्यम बताया है। कबीरदास जी अपने समय से आगे की बात करते हुए पितृ-सत्तात्मक समाज की आलोचना करते हैं। और घर में काम करने वाली महिला के श्रम का मूल्य मिलने का समर्थन किया है। 

कबीर के मानववादी समानता का विचार

कबीरदास जी ने समाज में मानवीय संबंधों के बीच सभी प्रकार का विषमता की आलोचना की है। इनके अनुसार मनुष्य के बीच धर्म, ईश्वर, जाति व समाजवाद के नाम पर विषमता के पैदा किया गया। इसलिए कबीर ने ईश्वर एवं व्यक्ति के बीच सीधा संबंध स्थापित करने पर बल दिया।

कबीर एक क्रांतिकारी सुधारक

कबीर जी ने समाज में प्रचलित अंधविश्वासों, कुरीतियों एवं जातिवाद का घोर विरोध किया है। इन्होंने मुस्लिम व हिन्दू दोनों धर्मो में सुधार पर बल दिया है। वस्तुतः कबीर जी ने समतामूलक समाज को स्थापित करने का प्रयत्न किया। इसीलिए डॉ भीमराव अम्बेडकर ने कबीरदास को अपना गुरु माना था।

कबीरदास जाति से जुलाहा थे। उन्होंने सामाजिक भेद-भाव का अनुभव किया था। इसलिए बहुजन समाज की अवधारणा दी और अस्पृश्यता का विरोध किया। इनके अनुसार उच्च कुल में जन्म लेने और वाह्य रूप से अच्छे आचरण कारने मात्र से कोई बड़ा या छोटा नहीं होता है बल्कि बड़ा व्यक्ति वह है, जिसके हृदय में राम बसते हैं। और छोटा वह है, जो भक्ति-भाव से रहित है।

कबीर ने वर्ण व्यवस्था की आलोचना की है। आश्रम व्यवस्था में ग्रहस्थ-आश्रम को श्रेष्ठ माना है। आर्थिक समानता पर बल दिया है। कबीर के बारे में प्रोफेसर महावीर सरन जैन ने कहा कि इनका सारा जीवन सत्य की खोज व असत्य का खण्डन है। 

कबीर के एकेश्वरवाद संबंधी विचार

कबीर के विचार स्वानुभूति पर आधारित है। कबीर जी के अनुसार धर्म मानवीय उत्थान का साधन होना चाहिए न कि प्रभुत्व बनाए रखने का माध्यम। इन्होंने निराकार, निर्गुण भक्ति का समर्थन किया और निर्गुण ईश्वर को उन्होंने “राम” कहा। इनका मत है कि परम ब्रह्म (ईश्वर) इस विश्व में सर्वव्याप्त है। और यह विश्व (संसार) नश्वर है।

कबीर के अनुसार आत्मा ईश्वर का अंश है, इसलिए आत्मा अजर-अमर है। अतः आत्मा और परमात्मा अभेद है इनमें अंश व अंशी का भाव रहता है। व्यक्ति की आत्मा का लक्ष्य ईश्वर में मिलना है। इसलिए व्यक्ति को सांसारिक मोह माया से मुक्त होकर ईश्वर प्राप्ति का प्रयास करना चाहिए।

माया व्यक्ति के वास्तविक लक्ष्य (ईश्वर प्राप्ति) में बाधक होती है। जो व्यक्ति ईश्वर की शरण में आता है वह माया से बच जाता है। कबीर के द्वारा जीवन मुक्ति ( ईश्वर प्राप्ति) के लिए ज्ञान मार्ग, योग साधना और भक्ति तीनों का अनुसरण किया गया।

कबीर की पुस्तकें

कबीरदास जी को लिखना पढ़ना नहीं जाता था अर्थात वे निरक्षर थे। इन्होंने अपने विचार को बोलियों में प्रस्तुत किया था। इसलिए इनकी भाषा को पांचमेल खिचड़ी कहा जाता है। इनके शिष्यों के द्वारा इनकी वाणियों (विचारों) का संग्रह ‘बीजक’ नाम से किया।

बीजद को तीन प्रमुख भागों में बांटा गया है। प्रथम साखी, द्वितीय सबद (पद) और तृतीय रमैनी हैं। साखी में कबीरदास की शिक्षाओं व सिद्धांतों का वर्णन मिलता है। सबद में कबीरदास जी के प्रेम व अंतरंग साधना का वर्णन मिलता है। तथा रमैनी में कबीर के रहस्यवादी व दार्शनिक विचारों का विवरण मिलता है।

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