राजनीतिक सिद्धांत का अर्थ और राजनीतिक सिद्धांतों से संबंधित राजनीति विज्ञान की विभिन्न परिभाषाओं का विवरण है।
राजनीतिक सिद्धांत का अर्थ –
- सार्वजनिक कल्याण के विषयों के सभी पक्षों का क्रमबद्ध रूप से अध्ययन करना ही, राजनीतिक सिद्धांत कहलाता है।
- राजनीति का केंद्रीय विषय राज्य होता है। इसका निर्माण राजनीतिक रूप से संगठित समाज के द्वारा किया जाता है। समाज का निर्माण व्यक्ति के द्वारा होता है। अर्थात जैसे-जैसे व्यक्ति की विचारधारा मे परिवर्तन आएगा समाज भी परिवर्तित होगा। समाज में परिवर्तन होगा वैसे वैसे राज्य में परिवर्तन होगा। और राज्य में परिवर्तन के साथ ही राजनीति में भी परिवर्तन होगा।
- राजनीतिक सिद्धांत का उदय आधुनिक काल अर्थात 16वीं शताब्दी में यूनान में हुआ। लेकिन उनका विकास यूरोप के अंतर्गत हुआ। राजनीति अर्थात पॉलिटिक्स ग्रीक शब्द पॉलिश से बना है। जिसका अर्थ होता है, नगर राज्य।
- राजनीति अर्थात पॉलिटिक्स शब्द का प्रयोग करने वाले सबसे पहले विचारक अरस्तु हैं। और अरस्तू को भी राजनीति विज्ञान का जनक माना जाता है। इसमें राजनीति शास्त्र और नीति शास्त्र को अलग-अलग अध्ययन किया। जबकि प्लेटो ने नीति शास्त्र और राजनीति शास्त्र दोनों का एक साथ अध्ययन किया।
- राजनीति के लिए अरस्तु में राजनीति शब्द का प्रयोग किया।
- राजनीति एक प्राचीन कला के रूप में प्रचलित थी। इसी कारण चीनी विचारक कन्फ्यूशियस का भारतीय विचारक कौटिल्य ने राज्य सिद्धांत के स्थान पर राजनीति में नीतिशास्त्र तथा शासन कला पर अधिक जोर दिया। राजनीति से अलग होकर सामाजिक विषय का उदय आधुनिक काल में ही हुआ।
राजनीति के सिद्धांत
- राजनीति को विलियम गाडविल ने राजनीति विज्ञान कहा।
- राजनीति को बिस्मार्क ने संभाव्य कला कहा।
- राजनीति को फेडरिक पोलक ने राजनीति का विज्ञान कहा। और राजनीति को सबसे पहले दो भागों में बांटा। पहला सैद्धांतिक राजनीति जिसका संबंध राज्य की मूल समस्याओं से है। और दूसरा व्यवहारिक राजनीति जिसका संबंध राज्य की क्रियाकलापों से है।
- सामान्यतया राजनीतिक सिद्धांत दो भागों में बटा है।पहला परंपरागत राजनीतिक सिद्धांत 16 वीं शताब्दी से 19वीं शताब्दी तक अर्थात द्वितीय विश्वयुद्ध के पहले। दूसरा आधुनिक राजनीतिक सिद्धांत 19वीं शताब्दी से बीसवीं शताब्दी अर्थात द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद।
- परंपरागत राजनीतिक सिद्धांत का दार्शनिक दृष्टिकोण है। इस कारण यह आदर्शों, मूल्यों एवं मानकों पर आधारित है। इन सिद्धांतों के अंतर्गत संस्थाओं के अध्ययन पर अधिक बल दिया जाता है। जिस कारण राज्य, सरकार और संप्रभुता के अध्ययन पर अधिक बल दिया जाता है। ना कि मानव के राजनीतिक व्यवहार पर। इन सिद्धांतों की अध्ययन सामग्री अर्थात विषय वस्तु इतिहास, दर्शन और कानून आदि विषयों से प्राप्त की जाती है। इन सिद्धांतों का अध्ययन पद्धति ऐतिहासिक, कानूनी एवं दार्शनिक है। जो निगमनात्मक होती है। जिसके अंतर्गत निर्णय पूर्व निर्धारित होता है। उसके बाद उसके तथ्यों को तलाशा जाता है। या उसे सिद्ध करने का प्रयास किया जाता है। इन सिद्धांतों के अंतर्गत ऐतिहासिक उपागम, कानूनी उपागम और दार्शनिक उपागम के अध्ययन पर बल दिया जाता है। साथ ही यह सिद्धांत चिंतन मूलक पद्धति पर आधारित है। जिसके अंतर्गत किसी तथ्यों को तर्क वितर्क के आधार पर सिद्ध करने का प्रयास किया जाता है। इसी कारण इसे दार्शनिक पद्धति भी कहा जाता है।
राजनीतिक सिद्धांतों से संबंधित राजनीति विज्ञान की विभिन्न परिभाषाएं
- गार्नर के अनुसार ” राजनीति विज्ञान का उदय और अंत राज्य में ही होता है”। गार्नर की परिभाषा ही सर्वश्रेष्ठ परिभाषा मानी जाती है।
- गेटल के अनुसार ” राजनीति के अंतर्गत राज्य के अतीत, वर्तमान और भविष्य के साथ-साथ राजनीति के मूल तथ्यो का अध्ययन किया जाता है”।
- फेडरिक पोलक के अनुसार ” राजनीति शास्त्र उसी प्रकार एक विज्ञान है जिस प्रकार नीति शास्त्र, विज्ञान है”।
- लार्ड ब्राइस के अनुसार ” राजनीति विज्ञान मौसम विज्ञान की तरह एक अनिश्चित विज्ञान है”।
- विलोवी के अनुसार ” राजनीति शास्त्र में राज्य, सरकार व कानून की व्याख्या की जाती है”।
- आधुनिक राजनीतिक सिद्धांत वैज्ञानिक दृष्टिकोण पर आधारित है। इसी कारण यह तथ्यों के अध्ययन पर बल देता है। इन सिद्धांतों की पद्धति वैज्ञानिक है। तथा उपागम की वैज्ञानिक है। यह मनुष्य के राजनीतिक व्यवहार पर अधिक बल देते है, ना कि राजनीतिक संस्थाओं पर। इसी कारण इन्हें व्यवहारवादी राजनीतिक सिद्धांत भी कहा जाता है। यह सिद्धांत अनुभव मूलक पद्धति पर आधारित है। यह सिद्धांत प्राकृतिक विज्ञान पर आधारित है। और यह सिद्धांत पूर्णता स्वायत्त सिद्धांत है। यह सिद्धांत आगमन पद्धति पर आधारित है। जिसमें पहले तथ्य का विश्लेषण किया जाता है। उसके बाद निष्कर्ष निकाला जाता है।
- ग्राहम वालेश ने अपनी पुस्तक ‘ह्यूमन नेचर इन पॉलिटिक्स’ में मनोविज्ञान पर अधिक बल दिया।
- आर्थर बेंटले मैं अपनी पुस्तक ‘द प्रोसेस ऑफ गवर्नमेंट’ में सामाजिक विज्ञान पर अधिक बल दिया।
- चार्ल्स मेरियम की अध्यक्षता में 1925 ईस्वी में अमेरिका के शिकागो विश्वविद्यालय में एक सम्मेलन आयोजित किया गया। जिसमें व्यवहारवाद का समर्थन किया। इसी कारण चार्ल्स मेरियम को व्यवहारवाद का बौद्धिक जनक कहा जाता है। चार्ल्स मेरियम ने एक पुस्तक लिखी जिसका नाम ‘प्राइमरी इलेक्शन’ है।
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