राज्य की उत्पत्ति का मार्क्सवादी सिद्धांत के PYQ आधारित Notes बनाये गए हैं। इसमें राज्य की उत्पत्ति से संबंधित मार्क्सवादी विचारकों के विचारों का विवरण है। जो TGT Civics, PGT Civics, LT Civics, GIC Political Science, UGC NET Political Science, Political Science Assistant Professor, UPPSC etc. के विगतवर्षों में आयोजित परीक्षाओं के प्रश्नो पर आधारित है।
मार्क्सवादी सिद्धांत
मार्क्सवाद निजी संपत्ति को राज्य की उत्पत्ति का कारण मानता है। इसका सर्वप्रथम उल्लेख फ्रेड्रिक एंजिल्स की पुस्तक ‘द ओरिजिन ऑफ फैमिलीस प्राइवेट प्रॉपर्टी एंड स्टेट’ (1884) में मिलता है। एंजेल्स के अनुसार राज्य, सामाजिक विकास प्रक्रिया के एक निश्चित अवस्था की उत्पत्ति है। यह अवस्था उस समय उत्पन्न होती है जब समाज अमीर और गरीब वर्ग में विभाजित हो जाता है तब अमीर वर्ग की सम्पत्ति की रक्षा के लिए राज्य की उत्पत्ति होती है। एंजेल्स का मानना है कि राज्य का अस्तित्व अनंत काल से नहीं है ऐसे भी सामज रहे है जिनमें राज्य नहीं था और न ही सार्वजनिक शक्ति की कोई कल्पना थी।
मार्क्सवादी सिद्धांत के अनुसार राज्य की उत्पत्ति उत्पादक के शोषणकारी संबंधों की रक्षा के हेतु हुई है। मार्क्सवाद न्यायसंगत समाज, उत्पादन एवं वितरण पर आधारित समाज तथा शोषण विहीन और वर्ग विहीन समाज की स्थापना करना चाहता है। यह मार्क्सवाद का अंतिम उद्देश्य है।
क्लासिकी मार्क्सवादी सिद्धांत
क्लासिकी मार्क्सवादी सिद्धांत सामाजिक जीवन को दो भागों में बांटता है। पहला आधार और दूसरा अधिरचना (सुपरस्ट्रक्चर) है। आर्थिक प्रणाली या उत्पादन प्रणाली को आधार कहा और अन्य को जैसे नैतिक आदर्श, विचार, धर्म राजनीति आदि को सुपरस्ट्रक्चर माना है।
कार्ल मार्क्स
कार्ल मार्क्स ने अपने 1844 के ‘इकॉनॉमिक एण्ड फिलासफिक मैनुस्क्रिप्ट’ में श्रम के प्रति उदासीनता संबंधी विचार मिलते है। कार्ल मार्क्स का कहना है कि दुनिया के मजदूरों संगठित हो जाओ इससे तुम्हारी दासता की बेड़ियां कटेगी। मार्क्स का कहता है कि आज तक दार्शनिकों ने दुनिया की व्यवस्था की है, अब उसे बदलने का समय आ गया है। वह जर्मन दार्शनिक हीगल के बारे में कहता है कि हीगल का दर्शन सिर के बल खड़ा धा, मैंने उसे पैर के बल खड़ा कर दीया।
मार्क्स का कहना है कि भौतिक जीवन में उत्पादन की पद्धति जीवन की सामाजिक, राजनीतिक तथा आध्यात्मिक प्रक्रिया के सामान्य चरित्र का निर्धारण करती है। अतः कार्ल मार्क्स राज्य की उत्पत्ति जीवन की भौतिक दशाओं में खोजता है। किन्तु मार्क्स ने राज्य संबंधी व्यवस्थित सिद्धांत विकसित नहीं किया था।
मार्क्स के द्वारा अलगाव के सिद्धांत का प्रतिपादन किया गया है। जिसकी व्याख्या में मार्क्स कहता है कि पूँजीवादी समाज में मानव के अन्दर अपनापन नहीं रहता है। वह अपनी प्रकृति, अपने समाज और अपने आप से भी पराया हो जाता है। अर्थात् मनुष्य का उत्पादन, श्रम कार्यों और व्यक्ति का व्यक्ति से भी अलगाव हो जाता है।
माओत्से तुंग
माओ के अनुसार मार्क्सवादी क्रांति में कृषकों की भूमिका महत्वपूर्ण होगी न कि श्रमिकों की। माओत्से तुंग का कहना है कि सैन्य शक्तियों का केन्द्रीयकरण देखने में आसान मालूम होता है किंतु अमल में यह बहुत कठिन काम है।
ब्लादिमीर इलियच लेलिन
ब्लादिमीर इलियच लेलिन ने अपनी पुस्तक ‘स्टेट एण्ड रिवोल्यूशन’ (1917) में संशोधनवादियों का विरोध करते हुए कहा कि सर्वहारा या श्रमिकों की तानाशाही मार्क्स के सिद्धांत का सार है। लेनिन रूस की बोल्शेविक क्रांति का कर्णधार है। लेनिन का कहना है कि वे लोग खतरनाक है जो यह नहीं समझते कि साम्राज्यवाद के खिलाफ संघर्ष तब तक दिखावा है जब तक कि इसे अवसरवाद की लड़ाई के साथ बाँध न दिया जाए।
लेनिन ने अपनी पुस्तक ‘इंपीरियलिज्म, द हाइएस्ट स्टेज ऑफ कैपिटलिज्म’ (1916) में साम्राज्यवाद पूँजीवाद का उच्चतम चरण का विचार प्रतिपादित किया। लेनिन के द्वारा ही मार्क्सवाद के व्यवहारिक प्रयोग में सर्वाधिक योगदान दिया गया।
लेनिन का कथन है कि पूँजीवाद के सागर के बीच का सामाजवादी द्वीप सारे संसार के सर्वहारा वर्ग के क्रांतिकारी आन्दोलन के लिए एक प्रकाश पुंज का कार्य करेगा। यह बात सोवियत समाजवादी व्यवस्था स्थापित होने के वाद कही थी।
मार्क्सवादी विचारक स्टालिन ने सर्वप्रथम राष्ट्रवाद के अभिमत को स्वीकार किया। स्टालिन के यह विचार उसकी पुस्तक ‘प्रॉब्लेम ऑफ लेनेनिज्म’ में मिलते हैं। सर्व प्रथम लेनिन ने एक देश में समाजवाद का नारा दिया।
द्वन्द्वात्मक पद्धति
इसमें परस्पर दो विपरीत विचारों एवं तर्क के टकराने से सत्ता की प्राप्ती होती है। जिसके तीन चरण वाद, प्रतिवाद और संवाद हैं। इस प्रकार समाज के परिवर्तन एवं विकास की प्रक्रिया तीन अवस्थाओं में संपन्न होती है। इस पद्धति का प्रयोग मार्क्स और हीगेल ने किया है।
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