प्लेटो के सिद्धांत PYQ आधारित नोट्स (Notes) बनाये गए हैं। जिसमें प्लेटो के राज्य का सिद्धांत, न्याय का सिद्धांत, साम्यवाद का सिद्धांत, प्लेटो की पुस्तकों तथा परिक्षाओं में पूछे गए महत्वपूर्ण तथ्यों का विवरण है। जो TGT Civics, PGT Civics, LT Civics, GIC Political Science, UGC NET Political Science, Political Science Assistant Professor, UPPSC etc. के विगतवर्षों में आयोजित परीक्षाओं के प्रश्नो पर आधारित है।
प्लेटो का राज्य
प्लेटो का आदर्श राज्य
प्लेटो को राज्य के आदर्शवादी सिद्धांत का जनक इसलिए माना जाता है क्योंकि उसने अपने सिद्धांत को अच्छे विचार पर आधारित किया है। प्लेटो का मानना है कि आदर्श राज्य नागरिकों के श्रेष्ठ चरित्र पर निर्भर करता है और नागरिकों में सदचरित्र एवं सदगुणों का विकास शिक्षा के द्वारा ही संभव है। प्लेटो कहता है शिक्षा मानसिक रोग को दूर करने का मानसिक उपचार है। प्लेटो ने आदर्श राज्य की जनसंख्या गुणनफल के आधार पर 5040 निश्चित की है। यहां प्लेटो पर पाइथागोरस का प्रभाव नजर आता है।
प्लेटो के अनुसार मनुष्य की आत्मा में तीन गुण (घटक) होते हैं – विवेक (रीजन), साहस (करेज़) और क्षुधा (एपेटाइट)। उसी प्रकार सामज (राज्य) में भी यही तीन घटक विद्यमान होते है इसलिए राज्य व्यक्ति का विराट रूप होता है।
प्लेटो का दार्शनिक राजा
आदर्श शासक (दार्शनिक राजा) के निर्माण और उसके कर्त्तव्यों का विवरण प्लेटो ने रिपब्लिक में किया है।
प्लेटो का कथन है “जब तक दार्शनिक राजा नहीं होंगे या विश्व के राजा दर्शन की भावना से प्रेरित नहीं होंगे तब तक राज्यों को उनकी बुराइयों से कभी मुक्ति प्राप्त नहीं होगी।” प्लेटो ने अधिकारों की तुलना में कर्त्तव्यों पर अधिक बल दिया है।
प्लेटो का वास्तविक राज्य
प्लेटो ने वास्तविक राज्य का विचार लॉज नामक पुस्तक में दिया है। प्लेटो सभी राज्यों का उदगम सामाजिक जरूरतों के आधार पर मानता है।
प्लेटो के राज्य का वर्गीकरण
प्लेटो ने परिपब्लिक और स्टेट्समैन में राज्य का वर्गीकरण प्रस्तुत किया है। स्टेट्समैन का वर्गीकरण अधिक व्यवस्थित और विस्तृत है। मौलिक वर्गीकरण सात प्रकार बताए हैं और प्रचलित शासन व्यवस्था के आधार पर छः प्रकार बताए है –
- आदर्शराज्य
- वास्तविक राज्य – कानून प्रशासित राज्य, स्वेच्छाचारी राज्य
- कानून प्रशासित राज्य –
- राजतंत्र,
- कुलीनतंत्र,
- लोकतंत्र
- स्वेच्छाचारी राज्य –
- आततायी तंत्र,
- धनिक तंत्र,
- अतिवादी लोकतंत्र
प्लेटो ने राजतंत्र को सर्वश्रेष्ठ और लोकतंत्र को सबसे खराब (निम्नतर) राज्य (शासन) माना है।
प्लेटो के अनुसार राजनीतिज्ञों की अनभिज्ञता और अक्षमता लोकतंत्र का कारण है।
एथेंस की महिलाओं को राजनीति में भाग लेने की अनुमति नहीं थी।
प्लेटो का न्याय सिद्धांत
प्लेटो ने न्याय के लिए ग्रीक शब्द ‘डायकियोसाइन’ (Dikaiosyne) का प्रयोग किया है। जिसका अर्थ सदाचरण होता है। प्लेटो का न्याय कोई बाहरी वस्तु नहीं बल्कि मानव की आत्मा में अंतर्निहित एक गुण (भाव) है। अतः प्लेटो का न्याय सही कार्य करने की प्रवृत्ति का प्रतिपादन (विकास) करता है।
प्लेटो के अनुसार न्याय से आशय यह है कि मनुष्य अपने उन सभी कर्त्तव्यों का पालन करे जो समाज या राज्य के द्वारा अपनी आवश्यकता और व्यक्तियों की योग्यताओं के अनुसार निर्धारित किए जाते है। प्लेटो का कथन है कि ‘न्याय मानवीय आत्मा का गुण तथा मन की आदत है।’ प्लेटो के लिए न्याय एक व्यक्ति एक कार्य, एक वर्ग एक कर्त्तव्य है।
प्लेटो का न्याय सिद्धांत के दो आधार स्तंभ है पहला शिक्षा सिद्धांत और दूसरा साम्यवाद।
एम. बी. फोस्टर ने प्लेटो की न्याय की अवधारणा को रचना प्रकल्प न्याय कहा है। उसने कहा प्लेटो के सामाजिक न्याय का विचार भवन निर्माण करने वाली शिल्पी (वास्तुकार) जैसा है। फोस्चर ने प्लेटो के न्याय का अर्थ नैतिकता बताया है।
सेबाइन के अनुसार प्लेटो द्वारा प्रतिपादित न्याय सार्वजनिक तथा व्यक्तिगत दोनों ही सद्गुण है जो राज्य तथा उसके सदस्यों के सर्वोत्तम कल्याण को परिलक्षित करता है। सेबाइन का कथन है “प्लेटो का न्याय संबंधी सिद्धांत स्थिर या निष्क्रिय, आत्मानुवादी, अनैतिक, अव्यावहारिक और अमनोवैज्ञानिक है।”
प्लेटो का साम्यवाद
प्लेटो के परिवार तथा संपत्ति के साम्यवाद के सिद्धांत की व्युत्पत्ति मुख्यतः स्पार्टा में प्राप्त हुए अनुभवों से हुई है। प्लेटो का मत है की शासकों (आभिभावक वर्ग – शासक और सैनिक) को संपत्ति और पत्नि का स्वामी नहीं होना चाहिए।
मैक्सी की कथन है कि “यदि प्लेटो आज जीवित होते तो वे आधुनिक साम्यवादियों के अधिक साम्यवादी होते।”
प्लेटो का शिक्षा सिद्धांत
यह सामाजिक सदाचार तथा सत्य की अनुभूति का एक साधन है। बचपन से लेकर छः वर्ष की उम्र तक प्राथमिक शिक्षा आरंभ होती है। सार्वजनिक परीक्षा बीस वर्ष की उम्र में होती है। तीस वर्ष की उम्र में दूसरी चयन परीक्षा होती है।
प्लेटो की दार्शनिक शिक्षा में तीन विषय शामिल थे जो अंकगणित, खगोलशास्त्र और संवादशास्त्र (तर्कशास्त्र) है।
अरस्तु की भांति प्लेटो ने भी ज्ञान और राय में अंतर किया है। ज्ञान स्थाई, निर्विकार और अपरिवर्तनशील होता है जबकि राय अस्थाई एवं देश-काल के अनुसार बदल जाती है। प्लेटो ने सद्गुण को ज्ञान की पहली सीढ़ी माना है।
प्लेटो का श्रम विभाजन
प्लेटो श्रम विभाजन में विश्वास करता है और कार्य विशेषीकरण की अवधारणा देता है। कार्यों का विभाजन अभिवृत्तियों के अंतर पर निर्भर करता है। जिसमें विवेक की प्रधानता होगी वह शासक (राजा), जिसमें साहस की प्रधानता होगी वह सैनिक और जिसमें भूख (एपेटाइट) की प्रधानता होगी वह उत्पादक बनेगा। बुभुक्षा शब्द का प्रयोग प्लेटो के द्वारा शिल्पकार के लिए किया गया है।
प्लेटो के विचार का सिद्धांत
प्लेटो के विचार का सिद्धांत; सुकरात की अवधारणाओं का सिद्धांत, हेराक्लिटस का संभूति के क्षेत्र का विचार और एलियाटिक्स का निरपेक्ष संभूति के क्षेत्र का विचार पर आधारित था।
प्लेटो के अनुसार विचार तत्व होते हैं, विचार सभी चीजों के सार होते हैं, विचार सार्वभौमिक होते हैं। किन्तु विचार चीजों के प्रतिबिंब नहीं होते हैं।
आकृति का सिद्धांत (थ्योरी ऑफ फॉर्म), गुफाओं का रूपक (एलेगरी ऑफ केब्स) या गुफा और परछाइयाँ और विभक्त पंक्ति के रूपक के माध्यम से प्लेटो के द्वारा मानव-मन की क्रियात्मकता का वर्णन किया गया है।
प्लेटो का ज्ञान का सिद्धांत
प्लेटो के विचारों उसके गुरू सुकरात का गहरा प्रभाव है इसके अलावा वह पारमेनाइडिज और हेराक्लीट्स के विचारों से भी प्रभावित था। पारमेनाइडिज ने सत्ता को अपरिवर्तनशील माना और हेराक्लीट्स ने सत्ता को परिवर्तनशील माना। प्लेटो ने इन दोनों के विचारों को मिलाकर अपना ज्ञान का सिद्धांत दिया।
प्लेटो की पुस्तकें (Plato Books)
- द रिपब्लिक,
- द लॉज,
- द स्टेट्समैन,
‘द रिपब्लिक’ पुस्तक प्लेटो की है। रिपब्लिक का उपशीर्षक न्याय से संबंधित है। रिपब्लिक संवाद शैली में लिखी गई पुस्तक है। रिपब्लिक के प्रमुख पात्रों में सुकरात, सिफेलस, पॉलिमार्कस, थ्रेसीमेकस, ग्लाकॉन और एडीमेंट्स है। रूसो ने रिपब्लिक को शिक्षा पर लिखा गया सर्वश्रेष्ठ (या सर्वप्रथम) ग्रंथ कहा है।
डनिंग ने कहा है कि रिपब्लिक इस कारण से एक आदर्श-राज्य की तस्वीर नहीं देता है कि यह एक रोमांस है बल्कि प्लेटो चाहते थे कि यह भलाई के विचार पर एक वैज्ञानिक आक्रमण की शुरूआत बने।
बार्कर का कथन है “रिपब्लिक केवल राजनीति पर लिखी गई पुस्तक मात्र ही नहीं, वरन शिक्षा पर लिखी गई एक ऐसी उत्कृष्ट रचना है जो इसके पहले कभी नहीं लिखी जा सकी”
श्रेष्ठ परिषद (नोक्टुरनल कौंसिल) का उल्लेख प्लेटो ने ‘द लॉज’ में किया है।
प्लेटो के लेख डायलॉग (वार्ता) के रूप में है। मुख्य लेख (संवाद) और उनके विषय –
- सिम्पोजियम – प्रेम की तत्व मीमांसा
- फिलेबस – विचारों के सिद्धांत को नीतिशास्त्र के क्षेत्र पर लागू करना
- टाइमेयस – भौतिक अस्तित्व के सिद्धांत का क्षेत्र
- रिपब्लिक – राजनीति का क्षेत्र
प्लेटो की आलोचना
प्लेटो के दर्शन में सर्वाधिकारवादी विचारधारा के तत्व विद्यमान है। इसीलिए प्लेटो को सर्वाधिकारवाद का भी दार्शनिक प्रणेता कहा जाता है। और कार्ल पॉपर , आर. एच. एस. क्रॉसमैन और बर्ट्रेन्ड रसेल ने प्लेटो को सर्वाधिकारवादी विचारक माना है।
कार्ल पॉपर ने अपनी रचना ‘ओपन सोसाइटी एंड इट्स एनिमीज’ (1945) में प्लेटो, हीगल और मार्क्स को मुक्त समाज का शत्रु कहा है। पॉपर के अनुसार प्लेटो पहला फासीवादी चिंतक है।
हन्ना आरेंट ने भी प्लेटो को फासीवाद का दार्शनिक प्रणेता कहा है।
मैक्सी के द्वारा प्लेटो को पहले स्वपनलोकी (कल्पनालोकीय) राजनीतिक विचारक के रूप में माना जाता है।
परिक्षाओं में पूछे गए अन्य महत्वपूर्ण तथ्य
- प्लेटो का पुनः प्रगटन सर थॉमस मोर का युटोपिया, कैम्पानेला का सिटी ऑफ दी सन् और बेकन का न्यू अटलांटिस में पाया जाता है।
- प्लेटो ने अनंत वास्तविकता का प्रकृति का अपना सिद्धांत विकसित किया और ‘दी टिआमोस’ नामक संवाद के अंदर वास्तविक विश्व की व्याख्या कर स्पष्ट किया।
- प्लेटो ने सद्गुण के चार संघटक बताये है जो क्रमशः इस प्रकार हैं- बुद्धिमानी या विवेक (विजडम), साहस (करेज), संयम (टेंपरेंस), न्याय (जस्टिस)।
- आदर्शवाद और नैतिक मूल्यों के लिए चिंता – प्लेटो
- उसका आदर्श राज्य केवल एक विचार था, न कि वास्तविकता।
- प्लेटो के समर्थक विचारक – लैविंसन,
नोट – प्लेटो के विस्तृत नोट्स पढ़ने के लिए क्लिक करें – प्लेटो का जीवन परिचय और सिद्धांत।