जॉन लॉक के राजनीतिक विचार के PYQ आधारित नोट्स (Notes) बनाये गए हैं। जिसमें जॉन लॉक के सामाजिक समझौते का सिद्धांत, लॉक का प्राकृतिक अधिकारों का सिद्धांत, जॉन लॉक का संपत्ति और श्रम संबंधी विचारों का विवरण है। जो TGT Civics, PGT Civics, LT Civics, GIC Political Science, UGC NET Political Science, Political Science Assistant Professor, UPPSC etc. के विगतवर्षों में आयोजित परीक्षाओं के प्रश्नो पर आधारित है।
जॉन लॉक का परिचय
जॉन लॉक का संबंध ब्रिटेन से है। यह ऑप्टिमिस्टिक विचारक हैं। अर्थात यह मानव व्यवहार के संबंध में सकारात्मक (पॉजिटिव) विचारधारा का विचारक है। यह पूंजीवादी वर्ग का समर्थक है। इसी कारण यह व्यक्तिवादी और व्यवहारवादी विचारक है। साथ ही यह सोशल कॉन्ट्रैक्ट ट्रेडीशन से संबंधित है। जॉन लॉक का जीवनकाल 1932 से 1704 ईस्वी तक का है। ये 1688 में ग्लोरियस रिवॉल्यूशन के साक्षी बने। जिसमें शांतिपूर्ण तरीके से क्रांति की जा रही थी।
जॉन लॉक के राजनीतिक विचार
- जॉन लॉक को फादर ऑफ लिबरलिज्म (उदारवाद) कहा जाता है। इसलिए यह राज्य को सीमित शक्तियां देते हैं। इसी कारण इन्होंने सीमित राज्य का सिद्धांत दिया। और कहते हैं कि राज्य को एक ट्रस्ट की तरह कार्य करता है।
- जॉन लॉक के विचार अमेरिकन राजनीतिक प्रणाली से समानता रखते हैं।
- यह पहला विचारक है जिसने शक्ति पृथक्करण सिद्धांत की बात की है। कानून की उचित प्रक्रिया की भी अवधारणा दी है। सहिष्णुता अर्थात् टॉलरेंस का सिद्धांत भी दिया। यह मेजॉरिटेरियन डेमोक्रेसी अर्थात बहुमत वाले जनतंत्र के समर्थक हैं।
- लॉक राज्य की विधायी, कार्यकारी और संघीय शक्तियों के अस्तित्व की बात करता है। लॉक का मुख्य योगदान सहमति सिद्धांत, सीमित एवं उत्तरदायी सरकार की स्थापना है। अल्पसंख्यक मत की समस्या को लॉक के द्वारा सुलझाई गई है।
- टू ट्रीटीज ऑन सिविल गवर्नमेंट के प्रथम भाग (पहली ट्रीटीज या निबंध) में लॉक ने रॉबर्ट फिल्मर की आलोचना की है।
- रिचर्ड एशक्राफ्ट ने इस विचार पर संदेह प्रकट किया कि लॉक गौरवपूर्ण क्रांति के समर्थक थे।
लॉक का प्राकृतिक अधिकारों का सिद्धांत
प्राकृतिक अधिकारों का सिद्धांत का प्रवर्तक जॉन लॉक है। लॉक ने तीन अधिकारों को प्राकृतिक अधिकार माना है। जो निम्न है- जीवन का अधिकार, स्वतंत्रता का अधिकार, संपत्ति का अधिकार। लॉक ने संपत्ति के अधिकार को सर्वाधिक महत्वपूर्ण अधिकार मानना है। उसके अनुसार जीवन और स्वतंत्रताओं का आधार सम्पत्ति का अधिकार है। लॉक का कहना है मनुष्यों के नागरिक समाज में सम्मिलित होने का उद्देश्य उनकी संपत्ति की सुरक्षा है।
रॉबर्ट फिल्मर ने सोशल कॉन्ट्रैक्ट थ्योरी की आलोचना
- रॉबर्ट फिल्मर ने सोशल कॉन्ट्रैक्ट थ्योरी की आलोचना दो आधारों पर की है। पहला राज्य को अधिकार देने का यह तार्किक सिद्धांत नहीं है। क्योंकि जरूरी नहीं है जिस कॉन्ट्रैक्ट के द्वारा हम अपने अधिकारों को राज्य को सौंपते हैं। यह कॉन्ट्रैक्ट आने वाली पीढ़ी को बाध्यकारी होगा। जिससे उनकी स्वतंत्रता बाधित होगी।
- यह भी जरूरी नहीं है कि आने वाली पीढ़ी इसे स्वीकार करें। दूसरा की संपत्ति का सामान्य अधिकार ना होकर व्यक्तिगत अधिकार होना चाहिए। जो कि परंपरागत रूप से पिता के द्वारा पुत्र को को प्राप्त होनी चाहिए। फिल्मर राज्य के दैवीये सिद्धांत के समर्थक हैं। इनके अनुसार राजा को शक्तियों की प्राप्ति भगवान से होती है। भगवान ने सबसे पहले अपनी शक्तियां एडम को प्रदान की थी। इसलिए संपत्ति का संपूर्ण अधिकार केवल राजा का है।
- इसकी आलोचना करते हुए जॉन लॉक कहते हैं, कि यह सही नहीं है, कि राज्य की उत्पत्ति भगवान के द्वारा हुई है। जो लोग मानते हैं कि भगवान के द्वारा पहला राजा एडम को बनाया गया। लेकिन आज के समय में यह कैसे पहचाना जाए कि मैडम का वंशज सही में कौन है। इसलिए यह है तार्किक आधार नहीं है अधिकार देने का।
- जॉन लॉक राज्य के पूर्ण अधिकार को अस्वीकार करते हैं।ये कहते हैं कि राज्य के पास संपूर्ण प्राधिकार नहीं होनी चाहिए। क्योंकि राज्य एक परिवार नहीं है बल्कि परिवारों का परिवार है। परिवार नागरिकों से बना है। नागरिक पूर्ण रूप से राज्य के ऊपर निर्भर नहीं होते। केवल कुछ ही जरूरतों के लिए (जैसे की सुरक्षा इत्यादि) राज्य पर निर्भर होते हैं।
- जॉन लॉक ने राइट टू लाइफ, राइट टू लिबर्टी और राइट टू प्रॉपर्टी को स्टेट के लिए नहीं दिया। क्योंकि यह मानव के मूलभूत अधिकार हैं। उन्हें समाप्त नहीं किया जा सकता। इन अधिकारों के अभाव में मानव जीवन संभव नहीं है।
लॉक की प्राकृतिक अवस्था
लॉक की प्राकृतिक अवस्था पूर्व राजनीतिक अवस्था है। परंतु पूर्व सामाजिक नहीं है। क्योंकि इस अवस्था में रहने वाले लोगों का समष्टिगत (व्यापक रूप से) सामाजिक जीवन के रूप में एक समाज है।
लॉक का प्राकृतिक अवस्था शांति, सुरक्षा, पारस्परिक सहायता तथा सद्भाव की अवस्था थी। उसकी एकमात्र दुर्बलता यह थी कि उसमें अधिकारों को लागू करने वाले मजिस्ट्रेट्स का अभाव था। लॉक का मानव प्राकृतिक अवस्था में स्वाभाविक रूप से अच्छा था। किन्तु कुछ स्वार्थी तत्वों के द्वारा प्राकृतिक व्यवस्था को नुकसान पहुचाया। जिनसे निपटने के लिए समझौता किया गया। लॉक ने माना की व्यक्तियों ने राज्य में प्राकृतिक अवस्था के अपने प्राकृतिक अधिकारों के साथ प्रवेश किया है। क्योंकि वह केवल एक अधिकार त्यागने के लिए सहमत होता है।
मैकफर्सन ने लॉक की प्राकृतिक अवस्था को अस्पष्ट प्राकृतिक अवस्था कहा है। और अपनी पुस्तक ‘द पोलिटिकल थ्योरी ऑफ पसेसिव इन्डिविजुअलिज्म’ में लिखा कि लॉक संपत्ति के अधिकार को नैसर्गिक अधिकार मानता है।
लॉक का सामाजिक समझौता सिद्धांत
लॉक ने अपनी पुस्तक ‘टू ट्रीटी ऑन सिविल गवर्नमेंट’ (1690) में दो समझौतों की बात बताई है। पहला लोगों का आपस में खुला समझौता जिससे प्राकृतिक अवस्था की समस्याओं को दूर करने के लिए नागरिक समाज की स्थापना की जाती है। इसके लिए सभी मनुष्यों के द्वारा केवल एक, प्रकृति के कानून का अधिकार (कानून की व्याख्या तथा क्रियांवयन दोनों) को त्यागने का समझौता होता है। जो सामाजिक समझौता होता है। यह अधिकार समुदाय को दे दिया जाता है। और दूसरा लोगों का संप्रभु (सरकार) के साथ शासन संबंधी समझौता। जिसमें शासक को प्रकृति के कानून का अधिकार नागरिक समाज के द्वारा प्रदान किया जाता है। जिसका प्रयोग के द्वारा शासक प्राकृतिक अवस्था में उत्पन्न हुई समस्याओं को दूर करने की जिम्मेदारी लेता है। यह राजनीतिक समझौता होता है।
यदि शासक (सरकार) जनसहमति के विरुद्ध कार्य करत है तो उसे हटाया भी जा सकता है। अतः दूसरा समझौता पहले समझौते के अधीन है। इस प्रकार लॉक ने सीमित संप्रभुता का समर्थन किया। और लॉक के द्वारा सामाजिक समझौते के द्वारा संवैधानिक राजतंत्र की नींव रखी गयी।
सामाजिक संविदा से संप्रभु सरकार स्थापित की थी लेकिन नागरिकों को सभी कानूनों का पालन करने अथवा किसी भी प्रकार की सरकार को स्वीकार करने की पूर्ण बाध्यता नहीं है।
लॉक के सामाजिक अनुबंध कि विभिन्न अवस्थाओं का क्रम –
- प्राकृतिक अधिकार,
- प्राकृतिक अवस्था,
- सामाजिक अनुबंध,
- नागरिक समाज,
- सरकार।
संविदा, एक बार किये जाने पर अपरिवर्तनीय हो जाती हैं। संविदा जिसके प्रति हर एक पीढ़ी को सहमति देनी चाहिए। संविदा प्रकृति के नियम पर विराम नहीं लगाती है। संविदा जिसमें व्यक्ति के कुछ अधिकार (प्राकृतिक अधिकार) छोड़ देते हैं जो वे प्राकृतिक अवस्था में रखते थे।
जॉन लॉक के राज्य का विचार
जॉन लॉक के राजनीतिक विचार के अनुसार राज्य को संवैधानिक और सहनशील राज्य होना चाहिए। सरकार के पास स्वविवेकीय अधिकार होना चाहिए। लॉक ने सामाजिक समझौते के सिद्धांत का उपयोग उदार लोकतांत्रिक राज्य को न्यायसंगत ठहराने के लिए किया।
लॉक के अनुसार राज्य के कार्य औऱ शक्तियाँ सीमित है क्योंकि राज्य का अस्तित्व जीवन, स्वतंत्रता और संपत्ति की सुरक्षा के लिए है। लॉक के लिए प्राकृतिक अधिकार प्रकृति के परिणाम हैं। राज्य को इन अधिकारों की सुरक्षा और संरक्षा करनी पड़ती है।
जॉन लॉक ने परिभाषित किया है कि “नागरिक शक्ति दण्ड के साथ कानून बनाने का अधिकार, संपत्ति का नियमन और संरक्षण एवं समुदाय की ताकत को ऐसे नियमों के कार्यान्वयन में लगाना उपर्युक्त सभी केवल आम जनता के भले के लिए है।”
जॉन लॉक के राजनीतिक विचार में नागरिक शक्ति की परिभाषा इस प्रकार कि है ” सम्पत्ति को विनियमित करने तथा उसके संरक्षण करने, तथा ऐसे कानून को लागू करने में समुदाय की शक्ति का उपयोग करने के लिए शक्ति के साथ विधि बनाने का अधिकार ये सभी सार्वजनिक हित के लिए होता है।”
जॉन लॉक का सम्पत्ति और श्रम सिद्धांत
जॉन लॉक ने लेबर थिअरी ऑफ प्रॉपर्टी (संपत्ति का श्रम सिद्धांत) दिया है। इसके अनुसार संपत्ति उस व्यक्ति से संबंधित होगी जिसने श्रम किया है। श्रम करने वाले व्यक्ति के द्वारा संपत्ति को अपने पुत्र को दिया जा सकता है। अर्थात उचित व्यक्ति को ही वंशानुगत संपत्ति का अधिकार मिलना चाहिए। सभी को संपत्ति का अधिकार प्राप्त होगा।
सम्पत्ति के श्रम सिद्धांत का प्रथम प्रस्तुत कर्ता लॉक है। लॉक का तर्क है कि सम्पत्ति व्यक्ति अपने शारीरिक और मानसिक श्रम से उत्पन्न करता है। अतः सम्पत्ति व्यक्ति का उत्पाद है। इसलिए सम्पत्ति पर व्यक्ति का अधिकार होता है। इसे लेबर थ्योरी ऑफ वैल्यू भी कहते है। लॉक के लिए श्रम संपत्ति का स्रोत और औचित्य है क्योंकि इसका कार्य पृथ्वी को उपभोज्य सामान में बदल देना है।
जॉन लॉक की पुस्तकें –
- टू ट्रीटीज ऑन गवर्नमेंट (1990),
- ए लैटर ऑन टॉलरेशन (1689),
- सेकण्ड लैटर ऑन टॉलरेशन, थर्ड लैटर ऑन टॉलरेशन, फोर्थ लैटर ऑन टॉलरेशन,
- द फण्डामैंटल्स ऑफ कॉन्टीट्यूशन ऑफ कैरोलीन (1692),
- एसेज ऑन द लॉ ऑफ नेचर,
- ऑन ज रिजनेबलनेस ऑफ क्रिश्चियनिटी
- लॉक का निबंध ‘कॉन्सर्निंग ह्यूमेन अंडरस्टैन्डिंग’ हॉब्स के लेवियाथन का खण्डन है।
लॉक ने अपनी रचनाओं में ‘संप्रभुता’ शब्द का कभी प्रयोग नहीं किया है। बल्कि ‘सर्वोच्च सत्ता’ शब्द का प्रयोग किया है।
जॉन लॉक की पुस्तक का नाम टू ट्रीटीज ऑन सिविल गवर्नमेंट है। अपनी इस पुस्तक में जॉन लॉक में रॉबर्ट फिल्मर की द थ्योरी ऑफ ऐप्सोल्यूट स्टेट की आलोचना की है।
महत्वपूर्ण तथ्य
- जॉन लॉक दो प्रकार के कॉन्ट्रैक्ट करने की बात करते हैं। पहले कॉन्ट्रैक्ट में परिवार और सरकार को छोड़कर सिविल सोसाइटी बनाई जाती है। सिविल सोसाइटी उदारवादी लोकतांत्रिक समाज की मुख्य विशेषता है। और द्वितीय कॉन्ट्रैक्ट के माध्यम से सरकार या गवर्नमेंट या राज्य की स्थापना की जाती है।
- जिसमें लोग अपने केवल तीन प्रकार के अधिकारों को सरकार को देते हैं जिसमें कानून बनाने का अधिकार (लेजिसलेशन), कानून को लागू करने का अधिकार (एग्जीक्यूटिव) और कानून पर निर्णय लेने का अधिकार (जुडिसरी) शामिल हैं। अर्थात राज्य की शक्तियां प्राकृतिक नहीं है। बल्कि राज्य की शक्तियां प्रदत्त शक्तियां हैं। जोकि लोगों के द्वारा दी गई हैं। अर्थात जॉन लॉक राज्य का यांत्रिक दृष्टिकोण रखते हैं।
- जॉन लॉक ने सोशल कॉन्ट्रैक्ट का प्रयोग करते हुए थ्योरी ऑफ गवर्नमेंट दी है। थॉमस हॉब्स से अलग जॉन लॉक मनुष्य में तर्क तथा पैशन दोनों को बराबर मात्रा में मांनता है और मनुष्य के व्यवहार को सकारात्मक रूप में देखता है। इसके अनुसार मनुष्य स्वयं के हितों के बारे में जागरूक होता है।
- स्टेट्स ऑफ नेचर के बारे में जॉन लॉक, थॉमस हॉब्स के विपरीत बात कहता है थॉमस हाउस के अनुसार स्टेट ऑफ नेचर अशांत तथा युद्ध का राज्य है जबकि लॉक कहता है इस में शांति पारस्परिक सहयोग तथा अच्छी शाख उपस्थित होती है। लॉक के अनुसार स्टेट ऑफ नेचर में सभी व्यक्ति अपने प्राकृतिक अधिकार रखते हैं। जिसमें प्राकृतिक कानून उपस्थित रहता है। और कानून की उचित प्रक्रिया का पालन किया जाता है।
- जब नेचर ऑफ़ स्टेट सही है तो फिर सोशल कॉन्ट्रैक्ट को क्यों लागू करना चाहिए क्योंकि मानव में रीजन के साथ-साथ पैशन भी होता है। इसी कारण अगर किसी व्यक्ति में फैशन की अधिकता हो गई।तो वह अपने लाभ के लिए दूसरों को हानि पहुंचाने लगा। इसके लिए राज्य की आवश्यकता होगी। इसीलिए सोशल कॉन्ट्रैक्ट की आवश्यकता होगी।
- सरकार की स्थापना सहमति के द्वारा होते हैं ।सहमति मनुष्य की स्वतंत्र इच्छा को दर्शाती है। जॉन लॉक में दो प्रकार की इच्छाएं बताइ हैं। पहली है स्पष्ट सहमति (Explicit content), यह इच्छा राज्य के बहुमत (Majority) की इच्छा है। और दूसरी मौन सहमति (Tacit consent), यह इच्छा राज्य के अल्पमत (Minority) की इच्छा है
- जॉन लॉक लोगों को सरकार को हटाने के लिए शांतिपूर्ण क्रांति करने का अधिकार देते हैं।
- “नो लॉ, नो लिबर्टी” — जॉन लॉक।
- जॉन लॉक शुरुआत से अंत तक व्यक्तिवादी था।