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स्वतंत्रता का सिद्धांत

स्वतंत्रता का सिद्धांत के PYQ आधारित नोट्स बनाये गए हैं। इसमें स्वतंत्रता का अर्थ और परिभाषा, स्वतंत्रता और समानता का संबंध और स्वतंत्रता के आयाम बताए हैं। जो TGT Civics, PGT Civics, LT Civics, GIC Political Science, UGC NET Political Science, Political Science Assistant Professor, etc. के विगतवर्षों में आयोजित परीक्षाओं के प्रश्नो पर आधारित हैं। 

स्वतंत्रता के सिद्धांत का अर्थ

स्वतंत्रता का अंग्रेजी पर्याय ‘लिबर्टी’ लैटिन भाषा के ‘लिबर’ शब्द से बना है। जिसका अर्थ मुक्तता होता है। जर्मन दार्शनिक इमेंनुएल काण्ट ने स्वतंत्रता को स्व-आरोपित कर्त्तव्यभाव के परमादेश के अनुपालन के रूप में परिभाषित किया है। अर्थात स्वयं के द्वारा निर्धारित नियमों का कर्त्तव्य पूर्वक पालन करना ही स्वतंत्रता है। कांट ने विवेकसंगत इच्छा की स्वायत्ता की संकल्पना प्रस्तुत की है।

स्वतंत्रता की परिभाषा

  • लिबर्टी शब्द लैटिन भाषा के शब्द लिबर से बना है। जिसका तात्पर्य प्रतिबंधों का अभाव होता है।
  • डी. डी. मैक्कीन के अनुसार, स्वतंत्रता सभी प्रतिबंधों का अभाव वहीं बल्कि अतार्किक प्रतिबंधों का अभाव है।
  • सीले के अनुसार, स्वतंत्रता अतिशासन का विलोम है।
  • एल. टी. हॉबहाउस के अनुसार, सबको स्वतंत्रता तभी प्राप्त हो सकती है जब सब पर कुछ न कुछ प्रतिबंध लगा दिये जाऐ।
  • लिओस्ट्रॉस के अनुसार, मानव जीवन में ऐसा कोई संबंध नहीं है जिसमें वह दूसरों से संबंधित न हो। अर्थात् स्वतंत्रता के व्यापक व्याख्या में उस पर प्रतिबंध आवश्यक होते हैं

टी. एच. ग्रीन के अनुसार स्वतंत्रता

सकारात्मक स्वतंत्रता का प्रतिपादन टी. एच. ग्रीन ने किया है। ग्रीन ने कहा कि स्वतंत्रता एक सकारात्मक वस्तु है। यह मात्र प्रतिबंधों का अभाव नहीं है। टी. एच. ग्रीन के अनुसार, “स्वतंत्रता उन कार्यों को करने का अधिकार है जो एक दूसरे के विरुद्ध नहीं हो।”

दूसरे शब्दों में ‘स्वतंत्रता ऐसा करने या पाने की एक सकारात्मक शक्ति है, जो करने योग्य या पाने योग्य हो।’ इसे प्राप्त करने की इच्छा ही सद्-इच्छा (Good Will) है। ग्रीन के द्वारा स्वतंत्रता के सकारात्मक सिद्धांत की विवेचना की है। और स्वतंत्रता को ईश्वरीय अंश से युक्त मानवीय अन्तःकरण का एक आवश्यक गुण माना है।  ग्रीन ने स्वतंत्रता के दो प्रकार बताए है –

  1. आन्तरिक स्वतंत्रता
  2. बाह्य स्वतंत्रता

ग्रीन का मत है कि “मानवीय चेतना स्वतंत्रता को सारे चिंतन का आधार मानती है, स्नतंत्रता के साथ अधिकार जुड़े होते हैं और अधिकार राज्य की माँग करते हैं।” ग्रीन के विचार को बार्कर ने अच्छे शब्दों व्यक्त किया है, “मानव चेतना स्वतंत्रता की माँग करती है, स्वतंत्रता का संबंध अधिकारों से है तथा अधिकार राज्य की माँग करते हैं।” इन्हें उदार आदर्शवाद के जनक के रूप में भी जाना जाता है।

जॉन स्टुअर्ट मिल के अनुसार स्वतंत्रता

‘ए ट्रीटीज ऑन लिबर्टी’ (1859), पुस्तक के लेखक जे. एस. मिल है। जिसने नकारात्मक स्वतंत्रता का समर्थन किया है। जॉन स्टुअर्ट मिल ने स्वतंत्रता के संदर्भ में सभी मानवीय कार्यों का विभाजन दो भागों में किया है। पहला स्व-संबंधित एवं दूसरा पर-संबंधित कार्य है स्व-संबंधि कार्य जिन्हें आत्मपरक कार्य भी कहा जाता है इनका सरोकार स्वयं कार्य करने वाले से होता है अन्य व्यक्तियों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है जबकि पर-संबंधि कार्य जिन्हें अन्यपरक कार्य भी कहा जाता है इनका प्रभाव सीधे अन्य व्यक्तियों व समाज पर पड़ता है।

मिल की पुस्तक का नाम ‘ऑन लिबर्टी’ है। जिसमें वह लिखता है कि ’10 व्यक्तियों में से यदि 9 सामान्य बुद्धि के हैं और एक व्यक्ति सनकी है तो उसे भी स्वतंत्रता प्राप्त होनी चाहिए क्योंकि वह 10 वाँ व्यक्ति समाज के लिए इतना उपयोगी हो सकता है। जितना की 9 व्यक्ति सम्मिलित रूप से नहीं हो सकते।’ अर्थात मिल स्वतंत्रता को सनकीपन तथा चारित्रिक विषमता की हद तक न्याायोचित ठहराता है। बार्कर मिल के बारे में कहता है कि, ‘मिल खोखली स्वतंत्रता और अमूर्त (काल्पनिक) व्यक्ति का पैगम्बर लगता है।’

आइजिया (ईसा) बर्लिन के अनुसार स्वतंत्रता

आइजिया (ईसा) बर्लिन ने अपनी पुस्तक “टू कान्सेप्ट्स ऑफ लिबर्टी” में स्वतंत्रता की अवधारणा को सकारात्मक एवं नकारात्मक नामक दो घटकों में वर्गीकृत किया है। इनके अनुसार राज्य का काम केवल नकारात्मक स्वतंत्रता की रक्षा करना है। अर्थात बंधनों को हटाना है। हालांकि बर्लिन स्वतंत्रता के नाम पर सर्वाधिकाराद को बढ़ावा देता है। ‘फोर एसेज़ ऑन लिबर्टी’ (1969) नामक पुस्तक भी इनके द्वारा लिखी गई थी।

स्वतंत्रता की अवधारणाएं

स्वतंत्रता की मुख्यतः दो अवधारणाएं मिलती है-

1. नकारात्मक स्वतंत्रता

इस अवधारणा के प्रमुख समर्थको में परंपरागत उदारवादियों में, बेंथम, जे. एस. मिल, डी. टॉकविले, स्पेंसर, एडम स्मिथ, रिकार्डो, हॉब्स, लॉक, कोंस्टेंट, माइकल ओकशॉट और लॉर्ड एक्टन प्रमुख हैं, जबकि स्वेच्छातंत्रवादियों में बर्लिन, फ्रीडमैन, हेयक, और नॉजिक प्रमुख हैं।

इन विचारकों के अनुसार नकारात्मक स्वतंत्रता कि मूल मान्यताएं निम्न है-

  • सभी प्रकार के प्रतिबंध को बुरा है।
  • सभी को चयन करने की स्वतंत्रता।
  • व्यक्ति विवेकशील है। अतः उसे अकेला छोड़ दिया जाए।
  • निजी क्षेत्र में सभी प्रकार के हस्तक्षेप का अभाव
  • राजनीतिक वैधानिक स्वतंत्रता
  • उदारवादी व पूंजीवादी व्यवस्था

नकारात्मक स्वतंत्रता से संबंधित विचारकों के मत

बर्लिन ने स्वतंत्रता को दूसरों के द्वारा हस्तक्षेप के अभाव के रूप में परिभाषित किया है।

हॉब्स के अनुसार, वह व्यक्ति स्वतंत्र है जो बिना किसी बाधा के अपनी शक्ति, बुद्धिमानी एवं क्षमता अनुसार अपनी इच्छा से कार्य कर सके। सामाजिक अनुबंध के द्वारा नागरिक समाज कि स्थापना के लिए बनाये गये कानूनों को हॉब्स सबसे बड़ी बाधा मानता है। उसके अनुसार, कानून का मौन रहना ही स्वतंत्रता है।

जे. एस. मिल ने अपने निबंध ऑन लिबर्टी (1859) में कहा कि दूसरों को सीधे भौतिक क्षति पहुँचाने से बचाने को छोड़कर, किसी व्यक्ति के स्वयं-संबंधित क्रियाकलापों के क्षेत्र में अहस्तक्षेप स्वतंत्रता हैं। जिसके तीन विशिष्ट क्षेत्र हैं

  1. विचार-अभिव्यक्ति का क्षेत्र (यह पूर्णतः प्रतिबंध रहित)
  2. अभिरुचि और वृत्ति-व्यवसाय (पेशा) का क्षेत्र
  3. अन्य व्यक्तियों के साथ संबंध, मेल-जोल का क्षेत्र

मिल के अनुसार, सुधार का एकमात्र अचूक और स्थाई स्रोत स्वतंत्रता है अर्थात् स्वतंत्रता की उपयोगिता मानवमात्र के चरित्र में सुधार करने में है। उसका मानना है कि, स्वतंत्रता को सीमित करने वाला सबसे बड़ा माध्यम बहुमत समाज है न कि राज्य या सरकार।

हेयक के अनुसार स्वतंत्रता का आशय, बाध्यकारी कार्यों को प्रतिबंधित करना है। तथा दूसरों की स्वेछाचारी इच्छा से स्वतंत्रता है।

2. सकारात्मक स्वतंत्रता

इसके समर्थकों में आदर्शवादी रूसो, कांट, हीगल और ग्रीन तथा बोसांके, बार्कर, लास्की, लियोस्ट्रॉस, मैकफर्सन (समतावादी) जैसे विचारक है।

इन विचारकों के अनुसार सकारत्मक स्वतंत्रता कि मूल मान्यताएं निम्न है-

  • युक्तियुक्त प्रतिबंध उचित
  • क्षमता निर्माण पर बल
  • अधिकारों को महत्व
  • कानूनों का पालन करना
  • समाजवादी व लोककल्याणकारी शासन व्यवस्था

सकारात्मक स्वतंत्रता से संबंधित विचारकों के मत

रूसो के अनुसार, महज भूख का संवेग दासता है, जबकि एक आत्म-विहित संहिता का पालन स्वतंत्रता है। रूसो ने नागरिक-स्वतंत्रता की संकल्पना, हमें हमारी लालसाओं का दास बनने के बचाती है। क्योंकि उनके अनुसार, अपनी वास्तविक इच्छा (रियल विल) के अनुसार कार्य करना ही स्वतंत्रता है।

टी. एच. ग्रीन अनुसार, स्वतंत्रता उन कार्यों को करने और भोगने का नाम है, जो करने और भोगने योग्य हों और जिसका समाज के अन्य व्यक्तियों के साथ साझा उपयोग किया जा सके। अर्थात् उसने माना कि सच्ची स्वतंत्रता का आदर्श ही मानव समाज के सभी सदस्यों हेतु समान रूप से उन्हें स्वयं को सर्वश्रेष्ठ बनाने के लिए शक्ति की सर्वोच्च मात्रा है।

लास्की के अनुसार स्वतंत्रता का अर्थ ऐसी दशाओं की उपलब्धता से है, जिसमें मनुष्य के विकास का सर्वोत्तम अवसर उपलब्ध हो। अतः इसलिए स्वतंत्रता अधिकारों से उत्पन्न होती है। उनके अनुसार अधिकार अवसर व उत्तरदायी सरकार स्वतंत्रता के लिए आवश्यक है।

आमर्त्य सेन के अनुसार, स्वतंत्रता का आशय, व्यक्ति की क्षमता का विकास है।

हीगल के अनुसार, राज्य की आज्ञा का पालन करना ही स्वतंत्रता है।

रॉल्स एवं मेकलॉवेन जैसे विचारकों नें स्वतंत्रता के नकारात्मक और सकारात्मक विभाजन को नहीं माना है।

विचारधाराओं या अवधारणाओं के अनुसार स्वतंत्रता

लेसेज फेयर का सिद्धांत एडम स्मिथ के द्वारा दिया गया। जिसरा राजनीतिक क्षेत्र में विकास नकारात्मक स्वतंत्रता के रूप में हुआ। लेसेज फेयर (laissez faire) का अर्थ होता है सभी प्रकार के सरकारी हस्तक्षेप का अभाव अर्थात मनुष्य को अकेला छोड़ देना।

सकारात्मक स्वतत्रंता, विकल्प के चयन की स्वतंत्रता है। जिसके समर्थक विचारको में रूसो, कांट, हीगल, ग्रीन, वोसाके, बार्कर, लास्की, लियोस्ट्रास, मैकफर्सन आदि प्रमुख है।

राजनीतिक स्वतंत्रता के अंतर्गत मतदान की स्वतंत्रता, निर्वाचित होने की स्वतंत्रता, सार्वजनिक पद धारण करने की स्वतंत्रता और सरकार के कार्यों की आलोचना की स्वतंत्रता सम्मिलित है।

नॉजिक स्वेछातंत्रवादी विचारक है। उसने व्यक्तिगत स्वतंत्रता और यथोचित संपत्ति का समर्थन किया है। नॉजिक के अनुसार ‘सर्वप्रमुख मानव अधिकार संपत्ति का अधिकार है।’ यदि किसी व्यक्ति को आवागमन की स्वतंत्रता नहीं प्राप्त है तो उसे नागरिक स्वतंत्रता से वंचित किया जा रहा है।

समाजवाद के अनुसार स्वतंत्रता

जनतंत्रीय समाजवाद व्यक्ति की स्वतंत्रता पर अधिक बल देता है उसका मत है कि इससे राज्य का विकास होता है जबकी मार्क्सवादी समाजवाद व्यक्ति को स्वतंत्रता नहीं देता बल्कि राज्य को सभी शक्तियां देता है। जिसके द्वारा सामाजिक-आर्थिक समानता स्थापित करने का प्रयास करता है।

उदारवाद के अनुसार स्वतंत्रता

“स्वतंत्रता इसके अलावा और कुछ नहीं कि इस इच्छा को प्रोत्साहित करना जो विनम्र व्यक्तियों के अनुदिष्ट अंतःकरण पर आधारित हो” – उदारवादी इसका समर्थन करते है। ये नकारात्मक स्वतंत्रता पर बल देते हैं। शास्त्रीय उदारवाद के अनुसार व्यक्ति की स्वतंत्रता तथा राज्य की सत्ता परस्पर विरोधी है। अर्थात इनके अनुसार कानून स्वतंत्रता का विरोधी है।

मार्क्सवाद के अनुसार स्वतंत्रता

स्वतंत्रता की मार्क्सवादी धारणा उदारवादी-व्यक्तिवादी धारणा से भिन्न है। मार्क्सवादायों के अनुसार ‘स्वतंत्रता राज्य में एक व्यक्ति के शासन को बदलकर पूरे समाज के शासन के अधीन लाना है। यह ऐसी चीज़ या स्थिति नहीं है जिसका उपभोग व्यक्ति एकांत में कर सके।’ स्वतंत्रता की मार्क्सवादी संकल्पना मानवीय रचनाधर्मिता की अभिव्यक्ति, विच्छिन्नता का अंत और आत्मसिद्धि का समर्थन करती है।

सर्वाधिकारवाद के अनुसार स्वतंत्रता

रूसो की जनरल विल की संकल्पना की आलोचना स्वतंत्रता के विरोधाभास के रूप में की गई है। क्योंकि एक ओर रूसो ने सामान्य इच्छा को बाध्यकारी बनाकर सर्वाधिकारवाद का रास्ता बनाया वही दूसरी ओर सामान्य इच्छा को सबकी इच्छाओं का प्रतिनिधि बताकर लोकतांत्रिक मूल्यों की स्थापना की और स्वतंत्रता का समर्थन किया।

व्यक्तिवाद के अनुसार स्वतंत्रता

स्वतंत्रता की अवधारणा व्यक्तिवाद से घनिष्ठ रूप से जुड़ी हुई है। व्यक्ति-स्वतंत्रता की धारणा में सामाजिक व्यवहार के परिचालन के लिए कानून का क्रियान्वयन होना अर्थात कानून का शासन और कुछ खास प्रकार के प्रतिबंधों को लगाना संमिलित है। बार्कर के अनुसार “जिस प्रकार बदसूरती का न होना खूबसूरती नहीं है उसी प्रकार बन्धनों का अभाव भी स्वतंत्रता नहीं है।”

अमेरिकी घोषणपत्र के अनुसार स्वतंत्रता

अमेरिकी स्वाधीनता के घोषणापत्र (1776) के अनुसार, इस स्वयं सिद्ध सत्य की पुष्टि की गई थी कि सब मनुष्य जन्म से समान हैं उनके जन्मदाता या सृजनकर्ता ने उन्हें कुछ अपक्रम्य अधिकार प्रदान किए हैं। इनमें जीवन, स्वतंत्रता और सुख की साधना (सुखानुसीरण) का अधिकार संमिलित है। 1765 में अमेरिका के अंदर राजनीतिक स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए ‘बिना प्रतिनिधित्व के कर नहीं’ का नारा लगाया।

स्वतंत्रता और समानता का संबंध

समानता और स्वतंत्रता का सिद्धांत दोनों लोकतंत्र के आधार स्तंभ है जोकि व्यक्ति के सर्वांगीण विकास के लिए अति आवश्यक है। इन दोनों सिद्धांतों सर्वश्रेष्ठ व्यवहारिक समन्वय लोकतांत्रिक समाजवाद के अंतर्गत संभव है। दूसरे शब्दों में स्वतंत्रता और समानता का सर्वश्रेष्ठ सामंजस्य लोकतांत्रिक समाजवादी व्यवस्था में प्राप्त करना संभव है। क्योंकि इस व्यवस्था में सामाजिक-आर्थिक समानता का ध्येय पूँजीवाद की त्रुटियों को दूर करने के लिए समाज समाजवाद को बढ़ावा देने था।

स्वतंत्रता और समानता एक-दूसरे के विरोधी

लार्ड एक्टन के अनुसार, “स्वतंत्रता और समानता साथ-साथ नहीं रह सकते”। एक्टन का एक प्रसिद्ध कथन है कि “समानता की तीव्र इच्छा ने स्वतंत्रता को निष्फल बना दिया है।” इनके इसी कथन को इस प्रकार भी कहा जाता है कि “समानता की उत्कृष्ट अभिलाषा ने स्वतंत्रता की आशा को व्यर्थ बना दिया है।” इस विचार को मानने वालो में डी टाकविले, फ्रीडमैन व परेटो प्रमुख है।

परंतु एच. जे. लॉस्की, एक्टन के इस कथन से सहमत नहीं थे। बार्कर ने कहा कि, “यदि स्वतंत्रता और विधि में संघर्ष नहीं होगा तो स्वतंत्रता स्वयं से संघर्ष करने लगेगी।” अर्थात स्वतंत्रता अपने आप में कलह कर सकती है। अराजकतावादियों के द्वारा इस विचार का समर्थन किया गया कि विधि और स्वतंत्रता एक दूसरे के विरुद्ध है। अरस्तु का मानना है कि “असमानता क्रान्ति को जन्म देती है।”

स्वतंत्रता और समानता एक-दूसरे के पूरक

लॉस्की ने अपनी पुस्तक ‘ए ग्रामर ऑफ पॉलिटीज’ में लिखते हुए कहा कि ‘डी. टाकविले और लॉर्ड एक्टन के मस्तिष्क में स्वतंत्रता के प्रति उत्कृष्ट अभिलाषा होने के कारण ही उनके द्वारा स्वतंत्रता और समानता को परस्पर विरोधी समझा गया, किन्तु यह एक गलत निष्कर्ष है। उनके द्वारा समानता का तात्पर्य गलत रूप से लेने के कारण ही ऐसा किया गया।’

लॉस्की का कथन है कि, ‘बिना कुछ समानता के स्वतंत्रता खोखली होगाी और स्वतंत्रता के बिना समानता निर्रथक होगी।’ स्वतंत्रता और समानता एक दूसरे के विरुद्ध नहीं अपितु एक दूसरे के पूरक है। यह कथन भी लॉस्की का है। मैकाइवर, लॉस्की के समान ही स्वतंत्रता और समानता को पूरक मानता है।

प्रो. पोलार्ड का मानना है कि, “स्वतंत्रता की समस्या का एकमात्र हल समानता में निहित है।” ये भी स्वतंत्रता और समानता को पूरक मानते है। लास्की, ग्रीन तथा रूसो इत्यादि विचारक भी इसी विचार के समर्थक है। आर. एच. टॉनी ने कहा है कि अधिकतम समानता स्वतंत्रता के लिए घातक नहीं है बल्कि अनिवार्य है।

परीक्षाओं में पूछे गये स्वतंत्रता से संबंधित महत्वपूर्ण कथन

  • सीले प्रसिद्ध कथन है कि, “स्वतंत्रता अति शासन की विरोधी है”।
  • सीले के अनुसार, “स्वतंत्रता समस्त प्रतिबंधों का अभाव है।” अर्थात राज्य व्यक्ति पर किसी भी करह का प्रतिबंध नहीं लगा सकता।
  • फ्रीडमैन के अनुसार ‘राजनीतिक स्वतंत्रता को मनुष्य द्वारा अपने सहयोगियों के उत्पीड़न के अभाव के रूप में परिभाषित किया है।’
  • लेनिन के अनुसार, “जब राज्य होगा तो स्वतंत्रता नहीं सकती, जब स्वतंत्रता रहेगी तो, राज्य अस्तित्व में नहीं रहेगा।”
  • “जहाँ कानून नहीं है वहाँ स्वतंत्रता नहीं है।” यह कथन लॉक का है।
  • “मनुष्य स्वतंत्र उत्पन्न या पैदा होता है किन्तु वह सर्वत्र बंधनों में बँधा हुआ है।” – रूसो ।
  • “निरंतर जागरुकता, स्वतंत्रता का मूल्य है।” – ब्राइस ।
  • जेफर्सन ने कहा है कि “ईश्वर जिसने हमें जीवन प्रदान किया उसी समय उन्होंने स्वतंत्रता भी प्रदान की।”
  • प्रसिद्ध व्यवहरवादी विचारक बी. एफ. स्कीनर ने अपने चिंतन में मानवीय स्वतंत्रता एवं प्रतिष्ठा को इरादों (Intention), प्रयोजन (Purpose), प्रेरणा (Motive) से जोड़ा है।

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