लोकतंत्र के PYQ आधारित Notes बनाये गए हैं। इसमें लोकतंत्र किसे कहते है? लोकतंत्र की परिभाषा क्या है? लोकमत क्या है? आदि प्रश्नों के उत्तर भी है। इसमें Democracy के प्रकारों और Democracy (लोकतंत्र) में दलीय व्यवस्था का विस्तार से विवरण है। जो TGT Civics, PGT Civics, LT Civics, GIC Political Science, UGC NET Political Science, Political Science Assistant Professor, UPPSC etc. के विगतवर्षों में आयोजित परीक्षाओं के प्रश्नो पर आधारित है।
लोकतंत्र (Democracy) का अर्थ क्या है?
यद्यपि लोकतंत्र का बीज हमें 2500 वर्ष पूर्व यूनान में मिलता है किन्तु उसका विकास आधूनिक समय में होता है। लोकतंत्र, ग्रीक भाषा के शब्द डेमोक्रेसी का हिन्दी भाषा में अनुवाद है। डेमोक्रेसी, ग्रीक भाषा के शब्द डेमोस एवं क्रेशिया से मिलकर बना है। इनमें डेमोस का अर्थ प्रजा या लोग तथा क्रेशिया का मतलब शासन होता है। अर्थात् लोकतंत्र का अर्थ लोगों का शासन होता है।
लोकतंत्र केवल एक शासन प्रणाली ही नहीं है बल्कि यह वैचारिक, सामाजिक तथा आर्थिक परिवर्तन की जटिल अंतःक्रिया का परिणाम है ये परिवर्तन अठारहवीं शदी के मध्य में ब्रिटेन में प्रारंभ हो गये थे। इसलिए ब्रिटेन को प्रथम आधुनिक लोकतंत्र माना जाता है।
लोकतंत्र की परिभाषा क्या है?
- अब्राहम लिंकन के (गैटिसबर्ग भाषण में) अनुसार, “लोकतंत्र, जनता का, जनता के द्वारा, जनता के लिए शासन है।”
- सीले के अनुसार, “लोकतंत्र, ऐसी सरकार है, जिसमें सभी का हिस्सा होता है।”
- जेम्स ब्राइस के अनुसार, “लोकतंत्र, लोगों का शासन है, जिसमें लोग संप्रभु इच्छा को वोट के रूप में व्यक्त करते हैं।”
- डायसी के अनुसार, “लोकतंत्र, ऐसा शासन है, जिसमें देश का बड़ा भाग शासन करता है।”
- सीले के अनुसार, जनतंत्र (लोकतंत्र) एक ऐसी शासन प्रणाली है, जिसमें प्रत्येक व्यक्ति भागीदार होता है।
- टी. वी. स्मिथ ने लोकतंत्र को एक जीवन शैली के रूप में परिभाषित किया है।
- सी. डी. बर्न्स ने परिभाषित करते हुए कहा कि सभी शासन शिक्षा की एक पद्धति है, परंतु श्रेष्ठ शिक्षा स्वशिक्षा है, इसलिए श्रेष्ठतम शासन स्वशासन है जो कि लोकतंत्र है।
- विल किमलिका का विचार है कि एक प्रजातांत्रिक व्यवस्था में अपने भीतर की विभिन्नता का प्रतिनिधित्व होना चाहिए।
- लोकतांत्रिक प्रणाली में सभी व्यक्तियों को एक समान और आम आदमी को सरकार का द्योतक माना जाता है। जबकी आम धारणा है कि सरकार ज्यादातर शक्ति अभिजन (शक्तिशाली वर्ग) के नियंत्रण व प्रबंधन में कार्य करती है।
आधुनिक समय में लोकतंत्र शासन का सर्वश्रेष्ठ रूप माना जाता है। स्वथ्य लोकतंत्र के निर्माण के लिए स्वतंत्र प्रेस, स्वस्थ व सुदृढ़ राजनीतिक दल और सांप्रदायिकता का अभाव सहायक है। जबकि निरक्षरता एवं दूषित शिक्षा प्रणाली बाधक है। लोकतंत्र में अंतिम सत्ता जनता में निहित होती है। भारत ने प्रजातंत्र के लोकतांत्रिक गणतंत्र स्वरूप को अपनाया है।
सामाजिक संविदा के सिद्धांत के अनुसार डेमोक्रेसी क्या है?
अवधारणात्मक तथा ऐतिहासिक दृष्टि से सामाजिक संविदा के सिद्धांत से प्रजातंत्र की संवृद्धि तथा उत्थान में जीवंत भूमिका का निर्वाह किया गया है। क्योंकि संविदा सिद्धांत और लोकतंत्र दोनों में व्यक्ति के आत्म-निर्णय का अधिकार मूलाधार है।
लोकतंत्र की विशेषताएँ क्या है?
लोकतंत्र के लिए राजनीतिक समानता अपेक्षित है। राजनीतिक समानता का अर्थ एक व्यक्ति एक मत, एक मत एक मान है। स्वतंत्रता और समानता दोनों प्रजातंत्र के आधार स्तंभ है। क्योंकि दोनों मानव व्यक्तित्व के सर्वांगीण विकास के लिए परमावश्यक हैं। प्रजातंत्र की सफलता व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार पर निर्भर करती है। सभी नागरिकों को निर्वाचन में खड़े होने का हक प्राप्त हैं, चाहे उनकी नस्ल, लिंग, रंग या धर्म कुछ भी हो। सभी नागरिकों के पास एक मत अवश्य होना चाहिए अर्थात सर्वसुलभ वयस्क मताधिकार। शक्ति भ्रष्ट बनाती है तथा पूर्ण शक्ति पूर्णतया भ्रष्ट बनाती है लेकिन लोकतंत्र में शक्ति के दुरुपयोग के विरुद्ध सर्वोत्तम नियंत्रण होता है क्योंकि शक्ति विविध समूहों में विभाजित हो जाती है।
लोकतंत्र के विकास के चरण
सैमुअल हटिंग्टन ने लोकतंत्र के विकास के तीन चरण बताये है।
- पहला चरण (1828 – 1926)
- ब्रिटेन, अमेरिका और फ्रांस मे इसी चरण के अंतर्गत लोकतंत्र की स्थापना हुई।
- पहला चरण (1828 – 1926)
- द्वतीय चरण (1943 – 1962)
- इस चरण में लोकतंत्र की स्थापना इटली, पश्चिमी जर्मनी, भारत, जापान और इजरायल में हुई।
- द्वतीय चरण (1943 – 1962)
- तीसरा चरण (1947 से अब तक)
- इस दौर में साम्यवादी देशों में लोकतंत्र की स्थापना हुई।
- तीसरा चरण (1947 से अब तक)
लोकतंत्र के सिद्धान्त का दार्शनिक आधार
लोकतंत्र की संकल्पना के अन्तर्गत अधिकार, स्वतंत्रता एवं समानता की संकल्पनाएँ सबसे प्रमुख है। प्ररम्भिक उदारवादी हॉब्स व लॉक के व्यक्तिवाद और वैयक्तिक स्वायत्तता का सिद्धान्त इन्हीं विचारों पर बल देते हैं।जिसमें व्यक्ति को मूल इकाई माना जाता है। परंपरात उदारवादियों के द्वारा लोकतंत्र को जीवन शैली माना जाता है। जिसका आशय दूसरे के विचारों के प्रति सहिष्णु होना है।
मिल के अनुसार, “दूसरे के विचारों का सम्मान करना ही लोकतांत्रिक जीवन शैली है।”
जबकि लोकतांत्रिक समाज में व केवल जाति, लिंग और धर्म के आधार पर कोई भदभाव नहीं होगा। बल्कि किसी को विशेषाधिकार भी प्राप्त नहीं होंगे।
लोकतांत्रिक शासन प्रणाली की विशेषताएँ
- शासन सीमित और संवैधानिक होता है।
- लोगों की आपसी सहमति पर आधारित शासन व्यवस्था।
- जनता के प्रति उत्तरदायी शासन प्रणाली।
- शासक वर्ग जनता के प्रतिनिधि होता है।
- नियमित चुनाव, जो लोकतंत्र की एक आवश्यक शर्त है।
सुषुप्त श्वान सिद्धान्त क्या है?
प्रजातांत्रिक संस्कृति के सुषुप्त श्वान सिद्धान्त का आशय निम्न जन सहभागिता से है जो सरकार को शासन करने के लिए वृहद संतोषप्रद है। आम लोग की सरकार के कार्यों में भागीदारी कम होती है। सरकार को शासन चलाने में कोई दिक्कत नहीं होती है।
लोकमत (जनमत) क्या है?
लोकमत (जनमत) का अभिप्राय, ऐसी राय (मत) जिसका उद्देश्य संपूर्ण समुदाय का कल्याण करना है। न कि बहुमत का कल्याण करना। अतः लोकमत समुदाय हित, नागरिक समाज के हित और सामान्य जनता के हित के लिए प्रबंध है। लोकमत को लोकतंत्र की प्रेरणा शक्ति कहा जाता है।
जे. एस. मिस ने कहा कि मत देने का अधिकार उन्हीं को प्राप्त होना चाहिए, जिनमें बौद्धिक योग्यता की एक सुनिश्चित मात्रा विद्यमान है, चाहे वे स्त्री हों अथवा पुरूष। उसका मानना है कि सार्वजनिक मताधिकार देने से पहले सबको शिक्षित करना आवश्यक है ताकि वे अपने मत का उचित प्रयोग कर सकें। जे. ब्राइस के अनुसार जनमत की निरंतर प्रक्रिया ही लोकतंत्र की गतिशीलता है।
जनमत (लोकमत) के अभिकरण (एजेंसियां)
इनके माध्यम से जनता के विचारों या मत की अभिव्यक्ति होती है। इनकी सूची निम्न प्रकार है-
- विधान मंडल,
- प्रेस,
- राजनीतिक दल व दबाव समूह,
- परिवार तथा प्रथमिक समूह,
- शिक्षण संस्थाएँ,
- संचार के साधन – टेलीविजन एवं रेडियो, पत्रिकायें,
बहुल वोट पद्धति या भेददर्शी वोट पद्धति
इसमें मतों का मूल्य और महत्व समान नहीं होता है। इस पद्धति का समर्थन जे. एस. मिल ने किया है। मिल के अनुसार, अज्ञानता, मूर्खता और उदसीनता की अपेक्षा बुद्धि, शिक्षा और उच्च स्तर के गुण अधिक मूल्यवान होते है। अतः उसके अनुसार विद्वानों को मूर्खों की अपेक्षा अधिक वोट देने का अधिकार मिलना चाहिए।
प्रतिनिधित्व की पद्धतियाँ
प्रतिनिधित्व की मुख्यतः दो पद्धतियाँ है।
- प्रत्यक्ष चुनाव की पद्धति
- अप्रत्यक्ष चुनाव की पद्धति
प्रतिनिधित्व का रूढ़िवादी सिद्धांत प्रतिनिधित्व के न्यासी प्रतिरूप का समर्थन करता है। प्रजातांत्रिक व्यवस्था में अल्पसंख्यकों के प्रतिनिधित्व को सुनिश्चित करने वाली विधियाँ निम्न है-
- आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली (सर्वश्रेष्ठ) ,
- एकल संक्रमणीय मत पद्धति,
- सूची प्रणाली,
- सीमित मत व्यवस्था,
- एकल मत व्यवस्था
- मनोनयन
लोकतंत्र के प्रकार
मैक्फर्सन ने उदारवादी लोकतंत्र के चार प्रतिमान बताए है – संरक्षात्मक, विकासात्मक, संतुलनकारी और सहभागी लोकतंत्र। मैक्फर्सन लोकतंत्र के आदर्शपरक सिद्धांत का प्रतिपादक है। मैक्फर्सन के अनुसार सच्चा लोकतांत्रिक समाज मनुष्य की सृजन शक्ति और समाजिक सहयोग की प्रवृत्ति को बढ़ावा देगा, केवल उपयोदिता (संतुष्टि) का अधिकतम विस्तार नहीं करेगा। उसका मानना है कि उत्तर उदारवादी लोकतंत्र मनुष्य को कर्ता (सृजनकारी) के रूप में देखेगा, केवल उपयोगिताओं के उपभोगता के रूप में नहीं। मैकफर्सन का विचार है कि लोकतंत्र का कोई क्रमबद्ध समर्थन संभव नहीं है क्योंकि लोकतंत्र स्वयं किसी क्रमबद्ध सिद्धांत की देन नहीं है।
लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था को सामान्यतः दो प्रकारों में बाँटा जाता है-
- प्रत्यक्ष लोकतंत्र,
- प्रतिनिध्यात्मक (अप्रत्यक्ष) लोकतंत्र
प्रत्यक्ष लोकतंत्र – जन लोकतंत्र, जनमत संग्रहमूलक लोकतंत्र, प्रतिनिधि लोकतंत्र – बहुलतंत्र,
प्रत्यक्ष प्रजातंत्र
इसको मानने वाले विचारकों में रूसों हैं। रूसो का निर्वाचनात्मक कुलीनतंत्र आधुनिक प्रजातंत्र का ही प्रतिरूप है। रूसो का विचार है कि प्रत्येक विधिक सरकार प्रजातांत्रिक होती है। आधुनिक काल में प्रत्यक्ष लोकतंत्र संभव नहीं है क्योंकि आधुनिक राज्य के आकार और जनसंख्या द्वारा व्यवहारिक कठिनाईयाँ उत्पन्न हो गई हैं।
यद्यपि प्रत्यक्ष लोकतंत्र में जन प्रतिनिधियों के द्वारा शाषन नहीं किया जाता बल्कि जनता के द्वारा जनमत संग्रह, प्रत्याहार (रीकॉल) तथा स्थानीय इकाइयों द्वारा सीधे शासन किया जाता है जो लोकतंत्र का आदर्श रूप है। इसका पहली बार प्रयोग एथेंस में हुआ था। वर्तमान में स्वट्जरलैण्ड में यह व्यवस्था है।
प्रतिनिधियात्मक लोकतंत्र
चूँकि प्रत्यक्ष लोकतंत्र बड़े व जटिल समाजों में प्रयोग करना संभव नहीं है इसलिए लोगों के द्वारा शासन में भागीदारी करने के लिए अपने प्रतिनिधियों को चुना जाता है। इसे ही प्रतिनिधियात्मक लोकतंत्र कहते है। मिल और लॉक जैसे विद्वानों ने इसका समर्थन किया है। इस प्रणाली के अंतर्गत निश्चित समयावधि में चुनाव, सार्वजनिक वयस्क मताधिकार जैसी विशेषताएं होती हैं।
लोकतंत्र का विशिष्ट वर्गीय (अभिजन) सिद्धांत
यह मानता है कि शासन सदैव मुट्ठी भर लोगों के हाथों में होता हैं बाकी सब हमेशा सहयोगी की भूमिका में होते हैं। अतः यह धारणा लोकतंत्र को निरर्थक मानती है। अभिजनवादियों ने इस विचार की वकालत की है कि जनता का शासन एक कल्पना (मिथ) है, कुछ लोगों की शासन हकीकत है। समर्थन करने वाले चिंतक वी. पैरेटो, जी. मोस्का, रॉबर्ट मिचेल्स, विल्फ्रेडो है।
रॉबर्ट मिचेल्स ने गुटतंत्र के लौह नियम का प्रतिपादन किया। उसके अनुसार, अधिकांश मनुष्य स्वभाव से जड़, आलसी और दास मनोवृत्ति वाले होते हैं जो अपना शासन स्वयं चलाने में समर्थ नहीं होते है। मिचेल्स (मिशेल्स) की पुस्तक का नाम पॉलिटिकल पार्टीज (1911) है। रेमंड आरो का मत है कि अभिजन की बहुलता से शासन, समझौते का व्यवसाय बन जाता है। रेमंड की पुस्तक का नाम सोशल स्ट्रक्चर एंड द रूलिंग क्लास है।
लोकतंत्र का चिर संमत सिद्धांत
यह लोकतंत्र का एक पूर्व उदारवादी सिद्धांत है। यह एक प्रत्यक्ष-सहभागी लोकतंत्र का रूप है। यह सद्जीवन अर्जित करने की ओर लक्षित सामान्य हित को पूरा करता है
लोकतंत्र का बहुलवादी सिद्धांत
शुम्पीटर तथा डाहल द्वारा लोकतंत्र के बहुलवादी सिद्धांत का प्रतिपादन किया गया। यह सिद्धांत व्यक्ति को प्राथमिकता प्रदान करता है इसके अनुसार व्यक्ति एक उपयोगिताओं का उपभोक्ता है।
विमर्शी लोकतंत्र
यह लोकतंत्र खुली एवं बलप्रयोगविहीन बहसों पर आधारित सहमतियों से संचालित होता है। इसमें भाषण देने की आदर्श दशा पाई जाती है।
राजनीतिक लोकतंत्र
राबर्ट ए. डहल ने तीन मानकों पर विशेष बल देते हुए लोकतंत्र के प्रतिक्रिया मूलक सिद्धांत पर बल दिया है तीन मानक प्रतिनिधि शासन, मतदान और वयस्क मताधिकार हैं। इसी सिद्धांत को राजनीतिक लोकतंत्र का नाम दिया जाता है। डेमोक्रेसी एण्ड इट्स क्रिट्क्स (1989) नामक पुस्तक आर. ए. डहल की है।
मार्क्स के अनुसार लोकतंत्र
प्रबोधन परंपरा में वे लोकतंत्र को एक आंगिक समुदाय के रूप में मानते है। और उनके अनुसार बुर्जुआ लोकतंत्र अवसरानुकूल बुर्जुआ आतंक में बदल जाता है।
परीक्षाओं में पूछे गये लोकतंत्र के सिद्धांत और उनके प्रतिपादक
- शास्त्रीय लोकतंत्र – अरस्तु
- लोकतंत्र का क्लासिकीय सिद्धांत – ए. डी. लिन्डसे
- प्रजातंत्र का शास्त्रीय सिद्धांत – जॉन स्टुअर्ट मिल
- प्रजातंत्र का नव उदारवादी सिद्धांत – जोसेफ शुम्पीटर
- लोकतंत्र का कार्यविधिक सिद्धांत – जोसेफ शुम्पीटर
- लोकतांन्त्रिक अभिजनवाद – शुम्पीटर
- प्रजातंत्र का अभिजन सिद्धांत – मिचेल्स
- प्रजातंत्र का आनुभाविक सिद्धांत की कमियां बताई – मैक्फर्सन
- सहभागी लोकतंत्र का सिद्धांत – सी. बी. मैक्फर्सन
- लोकतंत्र का आर्थिक सिद्धांत – एन्थॅनी डाउन्स
- बहुतंत्र (बहुलवादी लोकतंत्र) का सिद्धांत – राबर्ट डहल
- संरक्षक लोकतंत्र – जेरेमी बैथम
- विकासात्मक लोकतंत्र – जे एस मिल, रूसो
- सुरक्षात्मक लोकतंत्र – जॉन लॉक
- पीपुल्स लोकतंत्र – लेनिन
लोकतंत्र में दलीय व्यवस्था
आधुनिक दल व्यवस्था का सर्वप्रथम उद्भव संयुक्त राज्य अमेरिका में हुआ। किन्तु दल व्यवस्था का सर्वप्रथम प्रदुर्भाव इंग्लैण्ड में हुआ। राजनीतिक दलों को लोकतंत्र का प्राण कहा जाता है क्योंकि राजनीतिक दलों के अभाव में लोकतंत्र के किसी भी रूप की कल्पना नहीं की जा सकती है। और लोकतांत्रिक व्यवस्था में राजनीतिक दल अनिवार्तः चुनावों में भाग लेते हैं क्योंकि राजनीतिक दलों का लक्ष्य सत्ता प्राप्त करना होता है।
स्विट्जरलैंड संघात्मक शासन व्यवस्था वाला देश है। इसकी कार्यकारिणी में सभी प्रमुख राजनीतिक दलों को प्रतिनिधित्व प्राप्त हो जाता है। स्विट्जरलैंड में जनता के लोकप्रिय मत द्वारा संविधान के संशोधन की पद्धति अपनायी जाती है।
बहुदलीय व्यवस्था – विधानमंडल को अधिक प्रतिनिधिपूर्ण बनाता है। एकदलीय व्यवस्था – प्रजातांत्रिक सिद्धांत के प्रतिकूल है। द्विदलीय व्यवस्था – चयन की स्वतंत्रता को परिसीमित करती है। एकदल प्रधान व्यवस्था – प्रजातांत्रिक सुस्थिरता प्रदान करती है।
शासन तथा भौतिक सामाजिक पर्यावरण के बीच सहसंबंध – माण्टेस्क्यू दलीय व्यवस्था तथा निर्वाचनिक व्यवस्था के बीच सहसंबंध – डुवर्जर अल्पतंत्र का लौह नियम – राबर्ट मिचेल्स उदार एवं चरम बहुदलीय व्यवस्था – सारटोरी
लोकतंत्र में मीडिया
समकालीन लोकतंत्र में प्रिंट मीडिया की भूमिका हाशिए पर आ गई है। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की भूमिका निर्णायक हो गई है। मीडिया के अभिकरण (एजेंसी) औद्योगिक और कार्पोरेट समूहों के नियंत्रण में रहते हैं।
लोकतंत्र में नौकरशाही
हरबर्ट मौरिसन ने कहा कि नौकरशाही संसदात्मक प्रजातंत्र का मूल्य है। प्रजातंत्र में लोकसेवक की प्रतिबद्धता निम्न के प्रति होती है-
- लोकनीति के कार्य-नियमन के प्रति
- संविधान के लक्ष्य के प्रति
- सामान्य-हित (सार्वजनिक हित) के प्रति
लोक कल्याणकारी सिद्धांत और लोकतंत्र
लोक कल्याणकारी सिद्धांत लोकतंत्र के सिद्धांत पर आधारित है। कल्याणकारी राज्य की अवधारणा का प्रतिपादन टी. एच. ग्रीन ने किया है। यह एक ऐसा राज्य होता है जो अपने नागरिकों को विस्तृत स्तर पर सामाजिक सेवाएं उपलब्ध करवाता है। यह एक ओर साम्यवाद एवं दूसरी ओर अनियंत्रित व्यक्तिवाद के बीच समझौता है। कल्याणकारी राज्य किसी भी प्रकार के मानवोचित एवं प्रगतिशील समाज के लिए एक आदर्श स्थापित करता है। कल्याणकारी राज्य निजी क्षेत्र के उत्प्रेरकों (इन्सेंटिब्स) को हटाए बिना जीवन-निर्वाह के न्यूनतम स्तर की गारंटी देता है।
परीक्षाओं में पूछे गये लोकतंत्र से संबंधित महत्वपूर्ण तथ्य
- रजनी कोठारी ने अपनी पुस्तक कास्ट इन इंडियन पॉलिटिक्स (1973) में सर्वप्रथम भारतीय राजनीति में जाति के राजनीतिकरण धारणा को प्रस्तुत किया था।
- कान्स्टीट्यूशनल गवर्नमेन्ट एंड डेमोक्रेसी (1937) कार्ल जे. फ्रडरिक की पुस्तक है।
- डेमोक्रेटिक थियरी नामक पुस्तक के लेखक सी. बी. मैक्फर्सन हैं।
- लोकतंत्र में दबाव समूह का प्रकार्य हित स्पंदन है।
- बर्क ने लिखा कि प्रजातंत्रीय समानता एक भयानक प्रपंच है।
- कार्ल मैन्हीम इस विचार का समर्थन करते है कि अभिजन तथा राजनीतिक प्रजातंत्र एक-दूसरे के विरोधी नहीं है।
- प्रजातांत्रिक समाजवाद विविधता में एकता को महत्व देता है। सामाजिक लोकतांत्रिक राज्य मुख्य रूप से एक हस्तक्षेपी राज्य है क्योंकि यह सामाजिक न्याय पर आधारित सामाजिक पुनर्निर्माण का कार्य करता है।
- राजनीति का समूह सिद्धांत आर्थर बेण्टले ने प्रतिपादित किया था।
- फासीवादी, अधिकार को व्यक्तिगत नेतृत्व या प्रभाव की एक मिसाल के रूप में देखते हैं, एक गुण जो असामान्य रूप से प्रतिभाशाली व्यक्तियों के पास होता है।
- स्वेच्छा, नागरिक समाज की महत्वपूर्ण विशेषता है।
- व्यक्ति के शासन की अपेक्षा विधि का शासन अधिक अच्छा होता है। यह कथन डायसी का है।
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