अरस्तु के सिद्धांत PYQ आधारित नोट्स (Notes) बनाये गए हैं। जिसमें अरस्तु के राज्य का सिद्धांत, न्याय का सिद्धांत, अरस्तु का अध्ययन पद्धति तथा परिक्षाओं में पूछे गए अन्य महत्वपूर्ण तथ्यों का विवरण है। जो TGT Civics, PGT Civics, LT Civics, GIC Political Science, UGC NET Political Science, Political Science Assistant Professor, UPPSC etc. के विगतवर्षों में आयोजित परीक्षाओं के प्रश्नो पर आधारित है।
अरस्तु के सिद्धांत
अरस्तु राजनीति को एक सर्वश्रेष्ठ विज्ञान मानता है जो अनिवार्यतः एक अच्छे समाज की रचना का प्रयास करती है। अतः राजनीति एक नैतिक प्रक्रिया है जिसका सरोकार एक न्यायपूर्ण समाज की रचना से है। इस लिए मनुष्य केवल राजनीतिक समुदाय में ही अच्छा जीनव जी सकता है। इसी कारण अरस्तु ने मनुष्य को स्वभाव से एक राजनीतिक प्राणी घोषित किया।
अरस्तु पहला राजनीतिक विचारक है जिसने तुलनात्मक राजनीति का आरंभ किया था। उसने तत्कालीन विद्यमान 158 राष्ट-राज्यों के संविधान और उनकी राजनीतिक प्रणालियों का तुलनात्मक अध्ययन किया। जिसमें वर्तमान में केवल एथेंस का संविधान ही विद्यमान है। अरस्तु ने राजनीति को एक आनुभविक विज्ञान के रूप में विकास किया।
जी. एच. सेबाइन ने कहा था कि “अरस्तु का नया समान्य राजनीतिक विज्ञान न केवल अनुभवजन्य और वर्णनात्मक है, बल्कि कुछ मामलों में यह किसी भी नैतिक उद्देश्य से स्वतंत्र भी है क्योंकि राजनेता को बुरे राज्य के शासन में विशेषज्ञ बनने की आवश्यकता पड़ सकती है।”
अरस्तु की अध्ययन पद्धति
अरस्तु राजनीति विज्ञान के जनक है। ‘पॉलिटिक्स’ (राजनीति) पुस्तक अरस्तु की है। अरस्तु ने राज्य के विकास का वर्णन करने के लिए सोद्देश्यात्मक पद्धति का प्रयोग किया किया है।
राजनीति करने के लिए टेलिओलॉजिकल दृष्टिकोण के अग्रणी के रूप में अरस्तु को माना जाता है। जिसने पश्चिम में दर्शन की पहली ऐसी पुस्तक लिखी जिसमें नीति, तर्क, विज्ञान, राजनीति और आध्यात्म का मेलजोल था।
अरस्तु के द्वारा सोद्देश्यात्मक सिद्धांत (Teleological Approach) की व्याख्या करते हुए कहा प्रत्येक चीज का उद्देश्य होता है बिना उद्देश्य के कुछ नहीं होता। इसे समझने के लिए अरस्तु ने कार्य कारण भाव सिद्धांत दिया जिसके मुख्य तथ्य है-
- भौतिक कारण – पदार्थ जिससे वह बना है
- निमित्त कारण – गति का कारण
- औपचारिक कारण – वस्तु का पदार्थ एवं सार
- अंतिम कारण – वह उद्देश्य जिसकी ओर गतिविधि लक्षित है।
अरस्तु के कार्योत्पादन सिद्धांत का अनुक्रम इस प्रकार है – भौतिक कारण, निमित्त कारण, औपचारिक कारण, अंतिम कारण।
अरस्तु का राज्य का सिद्धांत
अरस्तु यह मानता है कि राज्य का जन्म क्रमिक विकास के कारण हुआ है। इसलिए राज्य स्वभाविक संस्था है। अरस्तु के अनुसार राज्य परिवारों तथा गाँवों का समुदाय है, जिसका उद्देश्य एक पूर्ण तथा आत्मनिर्भर जीवन की प्राप्ति है। अरस्तु ने कहा है कि काल के क्रम में राज्य परिवार या व्यक्ति के बाद आता है लेकिन प्रकृति के क्रम में उनसे पहले आता है अर्थात राज्य व्यक्ति से पूर्व है। अरस्तु भी राज्य को सावयवी (जैविक धारणा) मानते हैं। अरस्तु का कहना है कि राज्य समुदायों का समुदाय नहीं है यह एक सर्वोच्च समुदाय है। अरस्तु ने फैलिस, हिप्पोडेमस के द्वारा प्रदर्शित आदर्श राज्यों के समीक्षात्मक अध्ययन के प्रति अपने को समर्पित किया है। वह आदर्शवादी विचारक नहीं है इस लिए प्लेटो के आदर्श राज्य की कटु आलोचना करता है।
अरस्तु के अनुसार राज्य का वर्गीकरण
अरस्तु प्रथम सिद्धांतवादी था जिसने सरकारों का एक सुव्यवस्थित वर्गीकरण प्रस्तुत किया था। सरकारों का वर्गीकरण शासन कार्य में शामिल लोगों की संख्या पर आधारित है। इस आधार पर भी वर्गीकरण है कि क्या शासक आम लोगों के हित (यथार्थ रूप) में आथवा अपने हित (विकृत रूप) में शासन करते हैं। अरस्तु का मत है कि वह सरकार अधिक प्रभावी तथा स्थाई होती है जो दीर्घकालिक हित में शासन करती है।
शासक | अच्छी शासन प्रणाली | भ्रष्ट शासन प्रणाली |
एक व्यक्ति का शासन | एकतंत्र या राजतंत्र (Monarchy) | निरंकुश शासन (Tyranny) |
कुछ व्यक्तियों का शासन | कुलीनतंत्र (Aristocracy) | अल्पतंत्र या स्वर्थीतंत्र (Oligarchy) |
अनेक व्यक्तियों का शासन | संयत प्रजातंत्र या बहुलतंत्र या संवैधानिकतंत्र (Polity or Moderate Democracy) | अतिवादी लोकतंत्र या भीड़तंत्र (Democracy) |
अरस्तु के संवैधानिक नियम की अभिव्यक्ति सार्वजनिक हित में शासन, विधिसम्मत शासन और इच्छुक प्रजा की सरकार के माध्यम से होती है। अरस्तु के अनुसार संवैधानिक शासक की अपने प्रजाजनों पर सत्ता दासों के ऊपर स्वामी की सत्ता से बिलकुल अलग है क्योंकि दास जन्म से ही निम्न एवं स्वयं शासन के लिए अयोग्य होता है।
परंतु अरस्तु ने पॉलिटी को सबसे अच्छी शासन प्रणाली माना। अरस्तु का दृष्टिकोण है कि सरकारें एक निश्चित चक्र के अनुसार परिवर्तित होती है।
अरस्तु का न्याय सिद्धांत
अपने गुरू प्लेटो की भांति अरस्तु ने भी न्याय को अत्याधिक महत्व प्रदान किया है अरस्तु का मानना है कि न्याय अपने व्यापक अर्थ में सदाचार का पर्यायवाची है। अतः समस्त नैतिक गुणों से संपन्न व्यक्ति को ही न्यायशील माना जाता है। इसलिए अरस्तु के अनुसार शासक का विशिष्ट गुण न्याय है।
अरस्तु ने वितरणात्मक न्याय का प्रतिपादन किया है। अरस्तु का सार्वजनिक हित का सिद्धांत वितरणात्मक न्याय की धारणा पर आधारित है। अरस्तु असमानता का समर्थन करता है। अरस्तु के अनुसार मनुष्य स्वभाव से असमान होते हैं। अतः समान लोगों के साथ समान और असमान लोगों के साथ असमान व्यवहार करना चाहिए। वह उच्च के प्रति निम्न की अधीनता को स्वीकार करता है और यहां तक कहता है कि स्त्रियाँ स्वभाव से पुरूषों के अधीनस्थ होती है। अरस्तु का कथन है कि अपने जन्म के समय से ही कुछ लोग पराधीनता के लिए नियत होते हैं और कुछ लोग शासन करने के लिए।
अरस्तु का संपत्ति सिद्धांत
अरस्तु सम्पत्ति को नैसर्गिक मानता है। अर्थात सम्पत्ति एक प्राकृतिक वस्तु है, जो जीवधारियों के लिए आवश्यक है। अरस्तु ने सम्पत्ति का सार्वजनिक उपयोग एवं उसके व्यक्तिगत अधिकार का समर्थन किया है।
अरस्तु के नागरिकता संबंधी विचार
अरस्तु ने नागरिकों को शासक के नागरिक जीवन का सहभागी तथा बदले में शासित होने वाले के रूप में परिभाषित किया है। अरस्तु के अनुसार एथेंस का नागरिक बनने की आवश्यक शर्तें –
उसके मानना है कि वह व्यक्ति नागरिक है जो स्थाई रूप से न्याय के प्रशासन तथा राजकीय पदों को ग्रहण करने की प्रक्रिया में भाग लेता है। अर्थात राज्य का नागरिक वही बन सकता है जो राजनीतिक कार्यों में सक्रिय रूप से भाग लेता है।
अरस्तु ने गुलाम, स्त्री, बच्चे, श्रमिक, शिल्पी और विदेशी व्यक्तियों को नागरिकता का अधिकार नहीं दिया है।
अरस्तु की दासता का विचार
अरस्तु दासता का औचित्य सिद्ध करता है वह कहता है दासता मालिक तथा दास दोनों के लिए उपयोगी है। क्योंकि मालिक को अतिरिक्त समय मिलता है और दास का विवेक बढ़ता है। अरस्तु का कहना है कि कुछ लोग बात तो समझते है परन्तु व्यक्त नहीं कर पाते वे प्राकृतिक रूप से दास होते है।
अरस्तु के क्रांति का विचार
अरस्तु कहा है कि निर्धनता और अपराध क्रांति की जननी है। अरस्तु का कथन है “क्रांति का कारण सदैव असमानता में पाया जाता है।” अरस्तु का मानना है ‘पॉलिटी (संवैधानिक जनतंत्र) कहीं अधिक स्थाई व्यवस्था है जिसमें क्रांति की संभावना कम रहता है।’
परिक्षाओं में पूछे गए अन्य महत्वपूर्ण तथ्य
- अरस्तु के शिक्षण संस्थान का नाम द लीसियम है।
- अरस्तु के किसी भी प्रामाणिक बोध के द्वारा इस विचार का समर्थन नहीं किया जा सकता कि उसकी दार्शनिक व्यवस्था प्लेटो के विपरीत थी। अरस्तु की व्यवस्था प्लेटो की व्यवस्था की त्रुटियों से मुक्त आदर्शवाद को दार्शनिक रूप देने का एक प्रयास है।
- अरस्तु के अनुसार “व्यक्ति में भौतिक आवश्यकताएँ विद्यमान होती है, जो पशुओं से मिलती है।”
- मध्ययुगीन विचारक सन्त टॉमस एक्विनास ने अरस्तु के मूल राजनैतिक विचारों को अपनाया है।
- अरस्तु इसलिए एथेंस से कालचिस भाग गया था कि एथेंसवासी दर्शनशास्त्र के विरुद्ध दूसरा अपराध न कर दें।
- अरस्तु की उपेक्षा करने वाला पहला आधुनिक राजनीतिक विचारक मैकियावेली है।
नोट – अरस्तु से संबंधित और ज्यादा पढ़ने के लिए यहाँ पर क्लिक करें – अरस्तु का जीवन परिचय और सिद्धांत।