डॉ. भीमराव अम्बेडकर के राजनीतिक विचार के PYQ आधारित नोट्स बनाये गए हैं। जिसमें अम्बेडकर जी का परिचय एवं योगदान, सामाजिक सुधार के विचार, लोकतंत्र का विचार, राज्य का स्वरूप तथा अम्बेडकर साहेब की पुस्तकों का विवरण है।
डॉ.बी.आर.अम्बेडकर का परिचय
अम्बेडकर साहेब का जन्म 14 अप्रैल 1891 को मध्य प्रदेश के महु नगर के महार परिवार में हुआ था। इन्हें उच्च शिक्षा के लिए बड़ौदा के महाराज ने 1912 में अमेरिका भेजा। 1916 में ‘नेशनल डिवीडेन्ड ऑफ इंडिया : ए हिस्टोरिकल एंड एनालिटिकल स्टडी’ नामक थीसिस पर पी. एच. डी. पूर्ण की थी। 1921 में एम. एससी. कि डिग्री करने के लिए ‘प्रोविन्सियल डीसेन्ट्रलाइजेशन ऑफ इम्पीरियल फाइनेन्स इन ब्रिटिश इंडिया’ नामक थीसिस लिखी। और 1923 में ‘द प्रॉबलेम ऑफ द रुपी, इट्स ओरिजन एंड इट्स सॉल्यूशन’ नामक थीसिस लिख कर डी. एससी. की डिग्री प्राप्त की।
बाबासाहेब अम्बेडकर को ‘आधुनिक भारत का मनु’ कहा जाता है। कोलंबिया विश्वविद्यालय ने डॉ. अम्बेडकर को ‘ज्ञान का प्रतीक’ (Symbol of Knowledge) का उपाधि दी थी। उन्होंने कहा कि कांग्रेस और गाँधी ने अछूतों के लिए क्या किया?
अम्बेडकर जी ने गोलमेज सम्मेलन के अवसर पर अपना वक्तव्य दिया कि “मैं उस वर्ग से आता हूँ जो प्रजातंत्र पर सभी प्रकार एवं आकार के एकाधिकारवाद को समाप्त करने का पक्षधर हैं।” बी. आर.अम्बेडकर ने तीनों गोलमेज सम्मेलनों में भाग लिया था।
डॉ बी. आर. अम्बेडकर का योगदान
अम्बेडकर जी ने बर्ष 1920 में कोल्हापुर के महाराजा की सहायता से ‘मूकनायक’ नामक साप्ताहिक का प्रकाशन किया। आगे चलकर 1927 में उन्होंने ‘बहिष्कृत भारत’ नामक पाक्षिक पत्र का भी प्रकाशन किया।
1936 में बी.आर.अम्बेडकर ने बॉम्बे प्रांत के चुनाव में 17 सीटों पर चुनाव लड़ने के लिए ‘इंडिपेंडेंट लेबर पार्टी ऑफ इंडिया’ का गठन किया। अम्बेडकर जी के नेतृत्व में ‘इंडिपेंडेंट लेबर पार्टी ऑफ इंडिया’ ने 1937 के बम्बई विधानसभा चुनाव में 15 सीटें प्राप्त की थी।
समाज के व्यापक वर्गों को लामबंद करने के लिए अम्बेडकर ने 1942 में ‘अखिल भारतीय अनुसूचित जाति फेडरेशन’ (AISCF) स्थापित किया था। साथ ही ‘बहिष्कृत हितकारिणी सभा’ (1924), ‘लेबर पार्टी'(1936), और ‘रिपब्लिकन पार्टी’ के माध्यम से भी दलितों के उत्थान का प्रयास किया।
अम्बेडकर जी स्वतंत्र भारत के प्रथम विधि (कानून) मंत्री बने। इन्होंने 5 फरवरी 1951 को संसद में ‘हिन्दू कोड बिल’ पेश किया किन्तु यह बिल पास नहीं हो पाया जिस कारण अम्बेडकर जी ने अपने मंत्री पद से त्याग पत्र दे दिया।
बाबासाहेब ने 1951 में भारतीय बुद्ध जनसंघ की स्थापना की तथा बुद्ध उपासना पथ नामक पुस्तक का सम्पादन किया। इनके द्वारा 1955 में भारतीय बुद्ध महासभा की स्थापना भी की गई। जीवन के अन्तिम वर्ष में 14 अक्टूबर 1956 को बुद्धधर्म को अपना लिया। इसी समय काठमांडु में आयोजित विश्व बौद्ध सम्मेलन में इन्हें नवबुद्ध की उपाधि दी गई। इसी वर्ष 6 दिसम्बर 1956 को अम्बेडकर जी का निधन हो गया।
अम्बेडकर ने सामुदायिक बंधन को बनाए रखने का सुझाव दिया। जिनमें अंतर्जातीय विवाह और भोजन करने का सुझाव प्रमुख है। अम्बेडकर जी का मानना था कि वर्णाश्रमधर्म की रक्षा करने वाले शास्त्रों को त्याग दिया जाना चाहिए क्योंकि वे न्यायसंगत नहीं है और समाज के वर्गीकृत संगठन को वैध बनाते हैं।
सामाजिक सुधार के विचार
बाबा साहेब ने जाति व्यवस्था का घोर विरोध किया है इनका कहना था कि हिंदू समाज की अनेक विकृतियों और अन्यायों के लिए जाति व्यवस्था उत्तरदायी है। क्योंकि इनका मानना था कि जाति व्यवस्था में सामाजिक ऐक आर्थिक विकास के लिए कोई स्थान नहीं है।
अम्बेडकर जी ने ब्राह्मणवादी वर्णव्यवस्था का भी विरोध किया है। तथा वर्णव्यवस्था को पूर्णतया अवैज्ञानिक, अव्यावहारिक, अन्यायपूर्ण व गरिमाहीन माना है। इनके अनुसार अस्पृश्यता की जड़ें वर्णव्यवस्था में विद्यमान है। और समाज के उत्थान के लिए अस्पृश्यता का निवारण आवश्यक है।
अम्बेडकर साहब ने चतुर्वर्णीय व्यवस्था में शूद्रों को निम्न स्थान दिए जाने के आधार का भी घोर विरोध किया। अपनी रचना ‘शूद्र कौन थे?’ में बाबासाहेब ने शूद्रों की उत्पत्ति का विचार दिया जिसके अनुसार शूद्र कोई पृथक वर्ण वहीं, अपितु क्षत्रिय वर्ण का ही भाग थे। शूद्र ऐसे क्षत्रिय थे जिनका ब्राह्मणों ने उपनयन संस्कार बंद कर दिया था।
लोकतंत्र का विचार
अम्बेडकर जी ने संवैधानिक लोकतंत्र का समर्थन किया। उनका कहना था कि राजनीतिक लोकतंत्र की सफलता के लिए सामाजिक एवं आर्थिक लोकतंत्र एक पूर्व शर्त है।
अम्बेडकर के अनुसार लोकतंत्र शासन का एक ऐसा रूप तथा पद्धति है जिसमें बिना रक्त बहाए क्रांतिकारी, सामाजिक और आर्थिक परिवर्तन का मार्ग प्रशस्त होता है। इनका माना है कि स्वतंत्र शासन तथा लोकतंत्र तब वास्तविक होते है, जब शासक वर्ग की सत्ता को सीमित किया जा सके।
राज्य का स्वरूप
डॉ. भीमराव अम्बेडकर के राजनीतिक विचार के अंतर्गत राज्य के उदारवादी रूप का समर्थन किया गया है तथा इन्होंने कल्याणकारी राज्य की वकालत की है। डॉ. अम्बेडकर ने शक्ति के विभाजन पर आधारित शासन व्यवस्था का समर्थन किया है। अर्थात् कार्यपालिका, व्यवस्थापिका व न्यायपालिका की शक्तियों में उचित विभाजन हो न कि शक्तियाँ एक ही जगह केंद्रित हों।
अम्बेडकर के शब्दों में ‘धर्म में भक्ति आत्मा की मुक्ति का मार्ग हो सकता है। परंतु राजनीति में भक्ति या वीर पूजा अपकर्ष और संभावित तानाशाही के लिए मार्ग सुनिश्चित करती है।’ इसी कारण इन्होंने संसदीय शासन पद्धति का समर्थन किया है। क्योंकि इनके अनुसार इस प्रणाली में वंशीनुगत शासन नहीं होता, कोई व्यक्ति सत्ता का प्रतीक नहीं होता तथा निर्वाचित प्रतिनिधियों में जनता का विश्वास जैसी विषेशताऐं विद्यमान है।
डॉ.बी.आर.अम्बेडकर जी की पुस्तकें
- गाँधी एंड गाँधीज्म
- हु वेयर सुद्राज (शूद्र कौन थे) 1946
- एनीहिलेशन ऑफ कास्ट (जातिभेद का उन्मूसन) 1936
- द बुद्धा एण्ड हिज धम्म (बुद्ध और उनका धम्म)
- थॉट ऑन पाकिस्तान
- रानाडे, गाँधी एण्ड जिन्ना
- द प्राब्लम ऑफ द रूपी 1923
- ह्वाट कांग्रेस एण्ड गाँधी हैव डन टू द अनटचेूल्स 1945
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