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हन्ना आरेंट के राजनीतिक विचार

हन्ना आरेंट के राजनीतिक विचार के PYQ आधारित नोट्स बनाये गए हैं। जिसमें हन्ना आरेंट का परिचय एवं प्रभाव, आरेंट के अनुसार राजनीति एवं राजनीति का रचनात्मक सिद्धांत, हन्ना आरेंट के सर्वाधिकारवादी विचार, आरेंट के अनुसार मानव की गतिविधियां, हन्ना आरेंट के क्रांति का विचार तथा हन्ना आरेण्ट की पुस्तकों का विवरण है।

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हन्ना आरेंट का परिचय

हन्ना आरेण्ट को आधुनिक अमेरिकी दार्शनिक और राजनीतिक विचारक के रूप में जाना जाता है। किन्तु इनका जन्म 1906 में जर्मनी के हैनॉवर में हुआ था। हिटलर (नाजीवाद) के उदय के कारण इन्हें जर्मनी से भागना पड़ा और फ्रांस होते हुए अमेरिका में पहुच गई, फिर वहीं की नागरिक भी बन गईं। आरेंट के विचारो पर जर्मन-अस्तित्ववादी ‘मार्टिन हाइडेगर’ व ‘कार्ल जैस्पर’ का प्रभाव है। हन्ना आरेंट की मूल विचार धारा समुदायवादी है। आरेंट पहली आधुनिक विचारक है जिन्होंने सार्वजनिक जीवन को महत्व देते हुए सरकार और नागरिक के मध्य विद्यमान परंपरागत संबंधों को पुनः परिभाषित किया है।

आरेंट के अनुसार राजनीति

हन्ना आरेंट के अनुसार राजनीति का अस्तित्व स्वतंत्रता है, उसके अनुभव का क्षेत्र उसका कार्य है। ‘द ह्यूमन कन्डीशन’ नामक अपनी पुस्तक में आरेंट ने कहा कि आधुनिक विश्व में राजनीति को आर्थिक गतिविधियों से द्वितीयक माना जा रहा है, और राजनीति को भौतिक व घरेलू आवश्यकताएं पूर्ण करने के प्रशासनिक यंत्र के रूप में देखा जा रहा है।

हन्ना आरेंट का मानना है कि राजनीति का अर्थ शक्ति प्राप्त करना न होकर न्याय व सम्मान प्राप्त करना है। आरेंट के अनुसार राजनीति एक गतिविधि है, और यही सार्वजनिक जगत है। इसी लिए हन्ना आरेंट ने सही मानवीय जीवन के लिए व्यक्ति का सार्वजनिक होना आवश्यक बताया है।

हन्ना आरेंट के राजनीतिक दर्शन में तीन प्रमुख धाराएं हैं।

  1. सहभागिता का सिद्धांत (यह राजनीतिक स्वतंत्रता की अवधारणा पर आधारित)।
  2. मानवीय गतिविधियों के बहुलता का सिद्धांत।
  3. मानवीय कार्यों का दार्शनिक मानव शास्त्रीय सिद्धांत।

राजनीति का रचनात्मक सिद्धांत

‘द प्रॉमिस ऑफ पॉलिटिक्स’ (2005) नामक अपने लेख में हन्ना आरेंट ने राजनीति के रचानात्मक सिद्धांत की व्याख्या की है। जिसमें इन्होंने राजनीति शब्द का प्रयोग दो अर्थों में किया है।

प्रथम शक्ति संघर्ष व हित स्पष्टीकरण के रूप में राजनीति, जिसमें राजनीति का आशय शासक व शासित के पारस्परिक संबंधों से है। इसमें शासक अपनी सत्ता को बनाये रखने के लिए स्वार्थ, धोखा, झूठ व प्रोपेगंडा का सहारा लेता है। यह राजनीति का घिनौना रूप है। ईमानदार और नैतिक व्यक्ति इस राजनीति से दूर रहते है। हन्ना आरेंट ने भी इसे मानवीय मामलो का निम्नतम स्तर या निम्न स्तर की राजनीति कहा है।

दूसरा परस्पर सहयोग व सहायता के रूप में राजनीति, जिसमें सामूहिक कार्यवाही, भ्रातृत्व व सामूहिक जीवन आनन्द प्राप्त होता है। राजनीति का यह रूप स्वतंत्रता से जुड़ा हुआ है। अर्थात् राजनीति का सार तत्व स्वतंत्रता से लगाव है। इसी कारण आरेंट ने इसे मानवीय मामलों का उच्चतम स्तर माना है।

हन्ना आरेंट के सर्वाधिकारवादी विचार

हन्ना आरेंट ने दल के स्थान पर व्यक्ति को महत्वपूर्ण माना है। इसलिए इन्होंने लोकतंत्र का समर्थन किया है। अपनी पुस्तक ‘द ओरिजन ऑफ टोटैलिटेरियनिज्म’ में इन्होंने सर्वाधिकारवाद का विरोध किया। क्योंकि सर्वाधिकारवाद में पूर्ण प्रभुत्व (सरकार) द्वारा समूची मानवता की वैयक्तिकता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का विनाश किया जाता है। आरेण्ट के अनुसार सर्वाधिकारवाद न केवल राजनीतिक क्षेत्र बल्कि व्यक्ति के जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में हस्तक्षेप करता है।

हन्ना आरेंट के अनुसार सर्वाधिकारवाद के उदय का मूल कारण व्यक्ति स्वयं है। प्रथम विश्व युद्ध के बाद जब जर्मनी में बेरोजगारी, मुद्रास्फीति अधिक थी तो लोगों ने आर्थिक समृद्धि प्राप्त करने के लिए हिटलर के नेतृत्व को स्वीकार कर लिया। ऐसा, व्यक्ति के निजी व सार्वजनिक जीवन का विभाजन समाप्त होने के कारण हुआ। हन्ना आरेंट ने केवल नाजीवाद, इटली के फासीवाद एवं स्टालिनवाद को ही सर्वाधिकारवादी शासन माना किन्तु स्टालिन के बाद के सोवियत साम्यवाद को सर्वाधिकारवादी शासन स्वीकार नहीं किया।

हन्ना आरेंट के समुदायवादी विचार

हन्ना आरेंट ने समाज की गतिविधियों को दो भागों में बांटा है।

  1. सार्वजनिक जीवन – यह राजनीतिक जगत से संबंधित है।
  2. निजी जीवन – जोकि पारिवारिक और आर्थिक जगत के मामलों से संबंधित है।

आरेंट ने अरस्तु के विचारों का समर्थन करते हुए, प्राचीन यूनानी नगर-राज्य को आदर्श राज्य के रूप में माना है। क्योंकि इनमें सार्नजनिक और निजी जीवन पृथक थे। जबकि आधुनिक राज्य में यह दोनो जीवन आपस में मिल जाते है। आरेंट के अनुसार मानव शक्ति का सामूहिक प्रयोग करे और स्वतंत्रता को बनाए रखने के लिए सार्वजनिक गतिविधियों में सक्रिय भागीदारी करे, तो भविष्य में सर्वाधिकारवाद को रोका जा सकता है।

इन्होंने व्यक्तिगत स्वतंत्रता को अत्यधिक महत्व तो प्रदान किया, परंतु व्यक्ति को सदैव नैतिक और सामुदायिक प्राणी माना। इसीलिए व्यक्ति प्रधान या अणुवादी समाज का आलोचना की है। स्वतंत्रता के लिए लोकतंत्र का समर्थन किया। इनके अनुसार लोकतंत्र में व्यक्ति की सक्रिय सहभागिता को बढ़ावा देने की आवश्यकता है। शक्तियां आम जनता में निहित होती हैं, सरकार में नहीं। इसलिए जनता की सहमति एवं लोगों का समर्थन सरकार के संचालन का मूल आधार है।

आरेंट के अनुसार मानव की गतिविधियां

हन्ना आरेंट के राजनीतिक विचार में मनुष्य की तीन प्रकार की गतिविधियां बताई हैं।

  1. एक्शन (कार्यवाही या क्रिया) – यह सर्वोच्च गतिविधि है। इसके तहत समान नागरिक ‘सार्वजनिक पारस्परिक क्रिया’ करते है। जीवन की सर्वश्रेष्ठ गतिविधि राजनितिक एवं नैतिक कार्य है।
  2. वर्क ( कृत्य या काम) – यह मध्य स्तरीय गतिविधि है। इसमें शिल्पकारों व कलाकारो की गतिविधियां है। जिनसे स्थाई वस्तुओं का निर्माण होता है।
  3. लेवर (श्रम या मजदूर) – यह सबसे निम्न स्तर की गतिविधि है। इसमें मनुष्य अपनी भौतिक जीवन की आवश्यकताएं पूरी करता है। अतः प्रतिदिन कार्य करना पड़ता है, मानव की ये आवश्यकताएं पशुओं के समान है।

आधुनिक समय में व्यक्ति ने क्रिया के बजाए, स्वयं को केवल काम और श्रम तक सीमित कर लिया। इसीलिए हन्ना आरेंट सर्वाधिक बल क्रिया पर देती हैं।

हन्ना आरेंट के क्रांति का विचार

‘ऑन रिवॉल्युशन’ (1963) नामक अपनी पुस्तक में आरेंट ने अमेरिकी एवं फ्रांसीसी क्रांति का तुलनात्मक विश्लेषण किया है। इन्होंने क्रांति का मूल उद्देश्य लोगों को मुक्ति दिलाना नहीं अपितु स्वतंत्रता दिलाना बताया है। हन्ना आरेन्ट का विश्वास था कि कोई क्रांति तभी सफल होती है जब वह राजनीतिक रहती है तथा समाज तक विस्तारित नहीं होती है।

आरेंट के अनुसार किसी भी देश में क्रांतिकारी परम्परा की सार्थकता इस बात में है कि लोग अपने सहचरों के साथ स्वतंत्र कार्यवाही में हिस्सा लेते हुए सार्वजनिक सुख को बढ़ावा दे सकें। इसीलिए इन्होंने गौरवपूर्ण क्रांति व अमेरिकी क्रांति की प्रशंसा कि है। क्योंकि इनमें भौतिक व आर्थिक कार्यवाही की बजाय राजनीतिक कार्यवाही पर बल दिया। जोकि स्वतंत्रता एवं सामाजिक सुख को बढ़ाती है।

आरेंट के अनुसार केवल शक्ति ही वैध सत्ता का निर्माण कर सकती है। इसलिए आरेंट का मानना था कि जहाँ यथार्थ शक्ति अनुपस्थित हो वहाँ रिक्त स्थान की पूर्ति के लिए हिंसा उभरकर आती है। और हिंसा शक्ति को नष्ट कर सकती है, इसका सृजन नहीं करती।

हन्ना आरेंट की पुस्तकें

  1. द ओरिजन ऑफ टोटैलिटेरियनिज्म 1951
  2. द ह्यूमन कंडीशन 1958
  3. बिटवीन पास्ट एंड फ्यूचर 1961
  4. ऑन रिवॉल्युशन 1963
  5. ऑन वायलैंस 1970

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