फ्रेडरिक हीगल के राजनीतिक विचार के PYQ आधारित नोट्स बनाये गए हैं। जिसमें फ्रेडरिक हीगल के आदर्शवाद का विचार, फ्रेडरिक हीगल के राज्य का विचार, फ्रेडरिक हीगल की द्वंद्वात्मक पद्धति का विचार तथा फ्रेडरिक हीगल की पुस्तकें तथा परिक्षाओं में पूछे गए अन्य महत्वपूर्ण कथन का विवरण है। जो TGT Civics, PGT Civics, LT Civics, GIC Political Science, UGC NET Political Science, Political Science Assistant Professor, UPPSC etc. के विगतवर्षों में आयोजित परीक्षाओं के प्रश्नो पर आधारित है।
फ्रेडरिक हीगल
फ्रेडरिक हीगल को दार्शनिकों का दार्शनिक कहा जाता है। हीगल प्रमुखतः एक आदर्शवादी विचारक है जिसके दर्शन में आदर्शवाद का चरम रूप मिलता है। हीगल ने अपनी पुस्तक ‘फिलास्फी ऑफ राइट’ (1820) में लिखा है “बौद्धिक ही वास्तविक है और वास्तविक ही बौद्धिक है।”
हीगल का राज्य
हीगल ने राज्य की उत्पत्ति के दैवीय सिद्धांत का समर्थन किया है। हीगल का मानना है राज्य आत्मा के उच्चतम विकास का प्रतीक है। इसके आगे और कुछ शेष नहीं रह जाता है। हीगल राज्य को ईश्वरीय बताता है जो कभी गलती नहीं करता है।
हीगल का कथन है कि “राज्य पृथ्वी पर ईश्वर की यात्रा है।” या “राज्य/राष्ट्र कारण का अवतरण है यह पृथ्वी पर भगवान की पदयात्रा है।” हीगल के अनुसार राज्य का मूल कार्य सिविल सोसाइटी को नैतिक निर्देश देना है।
हीगल के राज्य के सिद्धांत की विशेषताएं –
राज्य एक महासंस्थान है।
राज्य ईश्वर की पृथ्वी पर गति है।
राज्य अपने आप में साध्य है।
राज्य किसी नैतिक कानून द्वारा नियंत्रित नहीं होता है क्योंकि यह स्वयं नैतिकता का सृजनकर्त्ता है।
हीगल का पूर्ण विकसित राज्य-
व्यक्ति परिवार में आत्मअभिव्यक्ति और पूर्णता प्राप्त करता है।
नागरिक समाज स्व-निश्चियन का दायरा और स्वहित की साधना है।
राज्य जनता की नीतिपरक इच्छा को मूर्त रूप देता है।
हीगल की द्वंद्वात्मक पद्धति
जी. डब्ल्यू. एफ. हेगेल (हीगल) को द्वंद्वात्मक विचारवाद की कार्यप्रणाली के लिए जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। हीगल सृष्टि के विकास का मूल आधार चेतना को मानता है। हीगल ने वाद प्रतिवाद संवाद के माध्यम से व्यक्ति, समाज, राज्य व इतिहास सभी के विकास का विश्लेषण किया। वाद और प्रतिवाद विरोधी विचार हैं तथा संवाद दोनों के अच्छे विचारों का मिश्रण है।
हीगल का मानना है कि द्वन्द्वात्मक विधि मूलतः प्रतिवाद की समस्या सुलझाना है। क्योंकि संवाद स्थापित होने के बाद वाद बन जाता और उसके सामने प्रतिवाद की चुनौती होती है। हीगल के राजनीतिक विचार के अनुसार, “परिवार – वाद, बुर्जुआ समाज – प्रतिवाद और राज्य – संवाद है।
हीगल का नागरिक समाज
हीगल ने आधुनिक पाश्चात्य राजनीतिक चिंतन में नागरिक समाज की अवधारणा को सर्वप्रथम प्रस्तुत किया। हीगल का मानना है कि राज्य और नागरिक समाज के मध्य संबंध परस्पर पूरक और विरोधाभासी दोनो होते है। हीगल कहता है कि नागरिक समाज प्रशासनिक, न्यायिक व वैधानिक कार्य का कार्य करेगा।
हीगल के सिद्धांत या अवधारणाएँ
- सकारात्मक स्वतंत्रता
- सिविल सोसाइटी
- परिवार व्यक्तिगत परार्थवाद का क्षेत्र
- नागरिक समाज सार्वभौमिक स्वार्थवाद का क्षेत्र
- राज्य सार्वभौमिक परार्थवाद का क्षेत्र
हीगल की पुस्तकें
- फिनोमिनोलॉजी ऑफ स्पिरिट (1807) – यह पहली पुस्तक है।
- द फिलास्फी ऑफ राइट (1820) – राजनीतिक सिद्धांतो का व्यवस्थित रूप में वर्णन और स्वतंत्रता की अवधारणा।
- साइंस ऑफ लॉजिक (1816)
- एनसाइक्लोपीडिया ऑफ द फिलोसीफिकल साइंस (1817)
- फिलॉसफी ऑफ हिस्ट्री (1857)
- एलीमेंट ऑफ द फिलॉसफी ऑफ राइट (1821)
- द जर्मन कॉन्टीट्यूशन (1802)
- लेक्चर ऑन एस्थेटिक्स (1818)
- फिलास्फी ऑफ रिलीजन (1827)
परिक्षाओं में पूछे गए अन्य महत्वपूर्ण कथन
- हीगल का कथन है कि “युद्ध हितकर है, क्योंकि इससे देशप्रेम और राज्य भक्ति की भावना की पुष्टि होती है।”
- हीगल के राजनीतिक विचार में नौकरशाही को ‘सार्वभौमिक वर्ग’ की संज्ञा दी गई है।
- हीगल के अनुसार “संविधांन का निर्माण ईश्वर की देन है, मानव निर्मित संस्था नहीं।” वह संवैधानिक राजतंत्र को स्वीकार करता है।
नोट – जेरेमी बेंथम के राजनीतिक विचार के PYQ आधारित नोट्स पढ़ने के लिए क्लिक करें – बेंथम के राजनीतिक विचार