जे एस मिल के राजनीतिक विचार के PYQ आधारित नोट्स (Notes) बनाये गए हैं। जिसमें जे एस मिल के उपयोगितावाद का विचार, बेंथम के सुखवाद में संशोधन का विचार, जे एस मिल की स्वतंत्रता, लोकतंत्र, शासन व्यवस्था, मत प्रणाली का विचार तथा जे एस मिल की पुस्तकें तथा परिक्षाओं में पूछे गए अन्य महत्वपूर्ण कथन एवं तथ्य का विवरण है। जो TGT Civics, PGT Civics, LT Civics, GIC Political Science, UGC NET Political Science, Political Science Assistant Professor, UPPSC etc. के विगतवर्षों में आयोजित परीक्षाओं के प्रश्नो पर आधारित है।
जे एस मिल का परिचय
जॉन स्टूअर्ट मिल का जन्म ब्रिटेन में हुआ था। इसका जीवनकाल 1806 से 1873 ईस्वी तक रहा। यह जेरेमी बेंथम का शिष्य था। इसके बारे में कहा जाता है, अगर कोई है जो लिबरल है, तो वह मिल है। यद्यपि जॉन लॉक उदारवाद के जनक है (जैसा कि वे प्राकृतिक अधिकारों का सिद्धांत देते हैं)। फिर भी उन्होंने केवल संपत्ति के अधिकार पर विस्तृत सिद्धांत दिया है।
जॉन लॉक को अधिकारवादी व्यक्तिवाद का विद्वान कहा जाता है। उदारवाद को केवल पूंजीवाद के औचित्य के रूप में सीमित करना इनकी गलती थी। क्योंकि उदारवाद केवल संपत्ति के अधिकार के बारे में नहीं है, यह बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, संघ बनाने की स्वतंत्रता, रीति-रिवाजों और परंपराओं से स्वतंत्रता इत्यादि के बारे में है। स्वतंत्रता का सिद्धांत देने वाला मिल पहला उदारवादी व्यक्ति है। मिल की पुस्तक का नाम ही लिबर्टी है। मिल लोकतंत्र और महिलाओं के अधिकारों का समर्थक है। यह वास्तविक उदारवादी, उपयोगितावादी है। मिल के विचारों में असंगत अद्वितीय पहलू विद्यमान है।
जॉन स्टुअर्ट मिल के पिता का नाम जेम्स स्टुअर्ट मिल है। मिल अंतिम उपयोगितावादी और प्रथम व्यक्तिवादी विचारक है। जे. एस. मिल बेंथम को अपना गुरू मानता है लेकिन बेंथम के द्वारा दी गई मात्रात्मक व यांत्रिक अवधारणा का समर्थन नहीं किया। इसलिए मिल स्वयं के बारे में कहता है “मैं वह पीटर हूँ जिसने अपने स्वामी की अवहेलना की।”
संशोधनवादी मिल
मिल ने बेंथम के सुखवाद में संशोधन किया है। इसलिए मिल का कहना है कुछ आनन्द अन्य की तुलना में अधिक गुणवत्ता वाले होते हैं। उपयोगितावाद के जे. एस. मिल के संशोधत संस्करण का मानवीकरण करने में श्रीमती हेरियट टेलर ने सहायता की है।
उपयोगितावाद में संशोधन
उपयोगितावाद नाम का प्रयोग सर्वप्रथम 1863 में मिल ने किया। मिल ने अपनी पुस्तक ‘यूटिलिटेरिअनिज्म’ (1863) में बेंथम के उपयोगितावाद का खण्डन किया है। मिल ने बेंथम के कथन “पुश्पिन उतना ही अच्छा है जितना कविता” का उपहास (मजाक) बनाया। क्योकि बेंथम सुख को मात्रात्मक मानता है गुणात्मक नहीं। इस लिए वह एक खेल और कविता के कार्य के प्राप्त सुख को समान मानता है। जबकी मिल ने सुख को गुणात्मक माना और कहा कि भिन्न-भिन्न प्रकार के सुखों में गुणात्मक अंतर होता है। अतः सुख की गुणवत्ता उसके परिणाम से कम महत्वपूर्ण नहीं होती है।
बेंथम के सुखवाद में संशोधन
इस लिए जो सुख मनुष्य की उच्चतर क्षमताओं से प्राप्त किया जाता है वह अन्य सुख की तुलना में उत्तम है। इस प्रकार उच्च कोटि का सुख कम संतुष्टिदायक होने पर भी ग्राह्य है जबकि निम्न कोटि का सुख अधिक संतुष्टिदायक होने पर भी त्याज्य है। अतः बेंथम का सुखद कैलकुलस व्यर्थ की बात है। इस संबंध में मिल का प्रसिद्ध कथन है कि “एक संतुष्ट सुअर की अपेक्षा असंतुष्ट मनुष्य होना श्रेष्ठ है और एक संतुष्ट मूर्ख कि अपेक्षा असंतुष्ट सुकरात का होना अधिक अच्छा है।”
मिल ने अधिकतम व्यक्तियों के अधिकतम सुख का सिद्धांत नैतिकता के आधार पर प्रतिष्ठित (निर्मित) किया है। जबकि बेंथम ने अधिकतम व्यक्तियों का अधिकतम सुख का सिद्धांत राजनीतिक माना था न कि नैतिक।
जे एस मिल के अनुसार मत प्रणाली
मिल के द्वारा बेंथम के एक व्यक्ति, एक मत सिद्धांत का खण्डन किया और शिक्षित एवं संपत्तिशाली व्यक्तियों हेतु बहुल मतदान की पद्धति का समर्थन किया गया। मिल ने कहा कि “मैं इस बात को कभी स्वीकार नहीं कर सकता कि किसी ऐसे व्यक्ति को मताधिकार प्राप्त हो जो कि लिखना, पढ़ना तथा साधारण गणित भी न जानता हो।”
मिल सार्वजनिक वयस्क मताधिकार का विरोधी है। मिल ने एक व्यक्ति एक मत और बहुमत के शासन को संकल्पना को झूठा लोकतंत्र कहा परंतु मिल ने खुले मतदान का समर्थन किया है।
जे एस मिल की शासन प्रणाली
मिल प्रतिनिध्यात्मक जनतांत्रिक व्यवस्था को सबसे अच्छी शासन व्यवस्था मानता है। किन्तु उसे अल्प मतों के शोषण का भय था। इसी कारण व्यवस्थापिका को अधिक जन प्रतिनिध्यात्मक बनाने के लिए जे. एस. मिल ने आनुपातिक प्रतिनिधित्व, महिला मताधिकार और शिक्षितों के लिए बहुल मताधिकार की संस्तुति (प्रस्ताव) की। अतः मिल आनुपातिक प्रतिनिधित्व का प्रवल समर्थक है।
मिल ने यह विचार अपनी पुस्तक ‘प्रतिनिधिमूलक सरकार पर विचार’ (कंसीड्रेशन ऑन रिप्रेजेन्टेटिव गवर्नमेंट) में दिऐ हैं।
जे एस मिल के द्वारा प्रतिपादित प्रतिनिध्यात्मक सरकार की विशेषता –
- यह संसदात्मक सरकार होगी, जिसमें कार्यपालिका व्यवस्थापिका के प्रति उत्तरदायी होगी।
- यह सामान्य नागरिक को सहभागिता के लिए उत्साहित करती है।
- यह आनुपातिक प्रतिनिधित्व पर आधारित है।
जे एस मिल का लोकतंत्र
सी. एल. वेपर ने मिल को विरक्त प्रजातांत्रिक कहा है। क्योंकि इसने मताधिकार पर विभिन्न शर्तें लगाईं हैं। अतः मिल को एक अनिच्छुक लोकतंत्रवादी भी कहा जाता है। मिल व्यक्तियों के चारित्रिक विकास और बौद्धिक विकास पर अधिक बल देता है। मिल के अनुसार जिसकी संभावना लोकतंत्र में अधिक है। इसलिए मिल ने राज्य को नैतिक लक्ष्यों से युक्त एक नैतिक संस्था बनाया है।
जे एस मिल और उदारवाद
जीवन का मूल उद्देश्य खुशी है। स्वतंत्रता के बिना कोई व्यक्ति प्रसन्न नहीं रह है। स्वतंत्रता, उपयोगितावाद के लिए एक पूर्व शर्त है। और इस प्रकार जे एस मिल के राजनीतिक विचार में उपयोगिता को प्राथमिकता दी गई है।
यदि किसी को उदारवादी माना जा सकता है, तो वह मिल है। क्योंकि स्वतंत्रता उदारवाद का मूल मूल्य है। मिल से पहले किसी अन्य उदारवादी दार्शनिक ने इस मुद्दे को विस्तृत तरीके से नहीं बताया था। जॉन लॉक ने तीन प्रकार के प्राकृतिक अधिकारों की बात की, लेकिन स्वतंत्रता की अवधारणा पर विस्तृत दृष्टिकोण नहीं दिया। जॉन लॉक ने संपत्ति के अधिकार (पूंजीवाद का दार्शनिक औचित्य) (स्वामित्ववादी व्यक्तिवाद के विद्वान) के बारे में विस्तृत दृष्टिकोण दिया। उदारवाद केवल संपत्ति की सुरक्षा नहीं है बल्कि मनुष्य को पुराने रीति-रिवाजों, परंपराओं से मुक्ति, राज्य की आधिकारिक कार्रवाई से मनुष्य की सुरक्षा से संबंधित है। वह अपनी पुस्तक “लिबर्टी” में स्वतंत्रता की उदारवादी अवधारणा का विस्तृत दृष्टिकोण देने वाले पहले व्यक्ति थे।
यद्यपि उदारवाद स्वतंत्रता के औचित्य के साथ शुरू हुआ। लेकिन अंततः उपयोगिता स्वतंत्रता पर हावी हो गई। उदारवाद में हम दो परंपराएँ देखते हैं। प्रथम उपयोगितावाद की परंपरा जो बेंथम की है। और दूसरी अधिकारों एवं गरिमा की परंपरा जो इमैनुएल कांट कि है। मिल ने उदारवाद के केंद्र में स्वतंत्रता को स्थापित किया है। स्वतंत्रता न केवल व्यक्ति या व्यक्तियों के लिए बल्कि समाज के लिए भी महत्वपूर्ण है। व्यक्ति को अपने व्यक्तित्व के विकास के लिए स्वतंत्रता की आवश्यकता होती है। व्यक्तियों की स्वतंत्रता से राज्य को भी लाभ मिलता है। राज्य व्यक्तिगत रूप से बड़ा होता है
मिल का स्वतंत्रता (Liberty) का विचार
जे.एस. मिल का कथन है ‘अपने ही लोगों को बौना बनाने से कोई राज्य महान नहीं बनता है’। क्योंकि स्वतंत्रता विकास की पूर्व शर्त है। जब राज्य लोगों को स्वतंत्रता से वंचित करता है, तो विकास का कोई अवसर नहीं होता है। अंततः राज्य स्वतंत्रता को नकार कर अपना नुकसान करता है। चीन का उदाहरण – आर्थिक रूप से समृद्ध, महान राष्ट्र नहीं कहा जाता (अपने लोगों को बुनियादी स्वतंत्रता से वंचित)। चीन एक सोने के पिंजरे की तरह है। जो प्रेशर कुकर सिंड्रोम से ग्रस्त है। यह कभी भी फट सकता है। जैसे-जैसे चीन के लोग दुनिया भर में घूमते हैं, और लोकतांत्रिक जीवन देखते हैं। वैसे-वैसे चीन को लोकतंत्र से डर लगता है। इसलिए चीन सत्ता को और भी मजबूत करने की कोशिश करता है। जबकि संयुक्त राज्य अमेरिका अच्छे अनुसंधान एवं विकास के साथ रचनात्मक है। चीन को सब कुछ रिवर्स इंजीनियर करना है। भारत हालांकि गरीब हैं, हमें लोकतांत्रिक होने पर गर्व हो सकता है।
जे एस मिल के राजनीतिक विचार में मिल नकारात्मक स्वतंत्रता और सकारात्मक उदारवाद को मानता है। मिल व्यक्तिगत स्वतंत्रता का समर्थक है। इस संबंध में मिल का विचार है कि “राज्य को व्यक्तियों के आत्मसम्मानीय कार्यों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।” मिल ने कहा है कि मानव का विचार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर प्रतिबंध लगाना वर्तमान एवं भविष्य की नस्लो को लूटने के समान है।
मिल के द्वारा कार्य संबंधी स्वतंत्रता के दो प्रकार बताए गए हैं। इसी प्रकार मिल आत्मपरक तथा परात्मपरक आचरण के मध्य अंतर करता है। –
स्व विषयक स्वतंत्रता
जिन कार्यों का प्रभाव केवल करने वाले व्यक्ति पर ही पड़ता किसी अन्य व्यक्ति पर नहीं। राज्य के द्वारा उन सभी कार्यों में हस्तक्षेप नहीं किया जाना चाहिए। व्यक्तियों को उन सभी कार्यों को करने की पूर्ण स्वतंत्रता होती है। व्यक्ति के इस प्रकार के व्यवहार को स्व परक आचरण कहा जाता है। इसी संबंध में मिल का कथन हैं –
- “व्यक्ति अपने ऊपर, अपनी देह और दिमाग पर संप्रभु है।”
- “राज्य को व्यक्तियों के आत्मसम्मानीय कार्यों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।”
पर विषयक स्वतंत्रता
जिन कार्यों को करने से स्वयं के साथ-साथ समाज के अन्य व्यक्ति भी प्रभावित होते है। राज्य के द्वारा इन सभी कार्यों में हस्तक्षेप किया जा सकता है। व्यक्ति को इन कार्यों को करने की स्वतंत्रता नहीं होती है। व्यक्ति के इस प्रकार के आचरण को परात्मपरक आचरण कहा जाता है।
ऑन लिबर्टी नामक ग्रंथ में स्वतंत्रता के विविध पक्षों का वर्णन किया गया है। इसी पुस्तक में स्वतंत्रता की नकारात्मक संकल्पना का प्रतिपादन किया है। मिल स्वतंत्रता को व्यक्तिपरक और विकास का पूरक मानते है। मिल का कथन है “व्यक्ति अपने शरीर व मन का स्वामी है।”
जे एस मिल की स्वतंत्रता की सीमाएँ
मिल के लिए स्वतंत्रता की सीमा के अंतर्गत चेतना, सोच और भावना की स्वतंत्रता शामिल है, जब तक कि वो ऐच्छिक, अनौपचारिकता और नुकसानदेह प्रयोजन के बिना है। क्योंकि स्वतंत्र सामाजिक व्यवस्था को, नैसर्गिक अधिकारों के सिद्धांतों के निवेदन के बिना, उपयोगितावादी आधारों पर न्यायोचित ठहराई जा सकती है। मिल की स्वतंत्रता में वे कार्य शामिल होते हैं जिनकी इच्छा की जाती हैं।
मिल ने स्वतंत्रता की निम्न सीमाएँ बताई है –
- जब किसी व्यक्ति की स्वतंत्रता के दुरुपयोग से दूसरे व्यक्तियों की स्वतंत्रता खतरे में पड़ने की संभावना हो।
- व्यक्ति के द्वारा अपनी स्वतंत्रता का दुरुपयोग ऐसा हो जिससे उसके सामाजिक कर्त्तव्यों के पालन में रुकावट हो।
मिल का नुकसान का सिद्धांत या नकारात्मक स्वतंत्रता का सिद्धांत
राज्य को अपने लोगों को कितनी स्वतंत्रता देनी चाहिए? जे एस मिल के अनुसार मानवीय क्रियाएं दो प्रकार की होती हैं। प्रथम स्वयं के संबंध में और द्वितिय दूसरों के संबंध में। उनके अनुसार, राज्य द्वारा स्वयं के कार्यों के संबंध में कोई हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। यानी राज्य को इस क्षेत्र में मनुष्य को पूर्ण अधिकार देना चाहिए। राज्य किसी व्यक्ति को उस स्थिति में सीमित कर सकता है। जब उसके कार्यों से दूसरों को हानि पहुँचती है।
स्वतंत्रता की उनकी अवधारणा नकारात्मक है। क्योंकि वे राज्य के हस्तक्षेप को मनुष्य की स्वतंत्रता को सीमित करने के रूप में व्याख्या कर रहे हैं। मिल के इन विचारों में भी असंगति है। एक तरफ वह पूर्ण स्वतंत्रता की आकांक्षा रखता है। लेकिन दूसरी तरफ वह पूर्ण स्वतंत्रता देने के कारण उत्पन्न होने वाली समस्याओं को भी पहचानता है। मिल राज्य के हस्तक्षेप की आवश्यकता को महसूस करता है। यह असंगति उनके समय के कारण है, उस समय लोगों ने नकारात्मक स्वतंत्रता की सीमाओं को समझा, लेकिन सकारात्मक स्वतंत्रता का विचार स्थापित नहीं किया जा सका था। सकारात्मक स्वतंत्रता का विचार देने वाला पहला व्यक्ति टी.एच.ग्रीन है।
नकारात्मक स्वतंत्रता का एकमात्र उद्देश्य, जिसके लिए मानव जाति को दूसरे व्यक्ति के जीवन में हस्तक्षेप करने की अनुमति है। वह, दूसरों को नुकसान से बचाना है। जिसमे आत्म-नुकसान हस्तक्षेप करने का कोई आधार नहीं है। क्योंकि अपने और अपने शरीर पर मनुष्य संप्रभु है। अन्य सभी आधारों पर प्रतिबंध सही हैं। यदि राज्य दूसरों को नुकसान पहुंचाने के अलावा किसी अन्य उद्देश्य के लिए संयम रखता है। तो उसका कोई औचित्य नहीं है। यह संयम के लिए संयम है। जब तक कि यह दूसरों को नुकसान न पहुंचाए। राज्य यह सुनिश्चित कर सकता है, कि व्यक्ति नुकसान से अवगत रहे। इसलिए मिल सिगरेट के पैकेटों पर चेतावनी जारी करने का समर्थन करेगा।
अर्नेस्ट बार्कर, उन्हें निम्नलिखित आधारों पर खाली स्वतंत्रता का पैगंबर कहते हैं।
बार्कर एक सकारात्मक उदारवादी है। और वह राज्य के हस्तक्षेप की अनुपस्थिति के रूप में स्वतंत्रता के वर्णन से संतुष्ट नहीं है। उसके अनुसार नकारात्मक स्वतंत्रता अपरिहार्य है। और इसलिए मिल भी इसकी रक्षा करने में सक्षम नहीं है। वह मानवीय क्रियाओं का मनमाना वर्गीकरण लाता है। दूसरों के नाम पर कार्रवाई के संबंध में, वह राज्य को हस्तक्षेप करने की बहुत बड़ी गुंजाइश देता है। वह आगे वास्तविक इच्छा की आध्यात्मिक धारणाओं को सामने लाता है। जब वह व्यक्ति को एक पुल को पार करने से रोकने के लिए राज्य को हस्तक्षेप करने की अनुमति देता है, जो गिरने वाला है। यद्यपि वे स्वतंत्रता के अपने सिद्धांत और स्वयं के अंतर्द्वन्द में उनका बचाव नहीं कर सके। फिर भी हम स्वतंत्रता की अवधारणा के प्रति मिल के योगदान से इनकार नहीं कर सकते हैं। और यह सही है कि अगर कोई उदारवादी है, तो वह मिल है।
बार्कर मिल को अमूर्त व्यक्तिवाद का विद्वान भी कहते हैं। अर्थात् जिस तरह से शास्त्रीय उदारवादी मानव स्वभाव को अत्यंत व्यक्तिवादी (परमाणुवादी) बताते हैं। उसे आधुनिक उदारवादी (कल्याणकारी राज्य के समर्थक) और हाल के दिनों में समुदायवादियों द्वारा अमूर्त व्यक्तियों (वास्तविक व्यक्ति नहीं, बल्कि एक कल्पना) के रूप में माना जाता है। वास्तविक व्यक्ति समाज में रहता है। मिल जिस तरह से व्यक्ति को क्रियाओं के संबंध में स्वयं के दायरे में पूरी तरह से मुक्त बताता है। वह अमूर्तता के अलावा और कुछ नहीं है।
मिल के स्वतंत्रता के विचारों में अंतर्द्वन्द
जे एस मिल के राजनीतिक विचार में एक ओर वह पूर्ण स्वतंत्रता चाहता है। दूसरी ओर वह पूर्ण स्वतंत्रता के कारण समस्याओं का एहसास करता है। वह स्वयं के कार्यों और अन्य कार्यों के बीच कृत्रिम अलगाव करता है। किसी व्यक्ति के किसी भी कार्य को कार्रवाई के संबंध में अन्य माना जा सकता है। और इसलिए मनुष्य के जीवन में राज्य के हस्तक्षेप की एक बड़ी गुंजाइश है। एक अन्य उदाहरण, उनके अनुसार राज्य किसी व्यक्ति को गिरने वाले पुल को पार करने से रोक सकता है। यदि राज्य व्यक्ति को नहीं रोकता है, तो वह अपनी जान गंवा सकता है। वह वास्तविक इच्छा की आध्यात्मिक अवधारणा लाता है। उनका कहना है, कि किसी व्यक्ति की वास्तविक इच्छा खुद को मारने की नहीं हो सकती है।
मिल का भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का विचार
सभी मौन अचूकता की धारणा है। बिना भेदभाव के सभी को बोलने का मौका मिलना चाहिए। चाहे सच बोलता हो या झूठ बोलता हो। झूठ बोलने वाला अपने में सुधार कर लेगा और सच बोलने वाला सभी को सच बताइएगा।
जे एस मिल के असंगत विचार
जे एस मिल के राजनीतिक विचार असंगत हैं। यदि वह लिबर्टी के चैंपियन हैं, तो वे खाली स्वतंत्रता के पैगंबर भी हैं। यदि वह लोकतंत्र के पैरोकार हैं, तो उन्हें अनिच्छुक डेमोक्रेट के रूप में भी जाना जाता है। वह उपयोगितावादी हैं, जो उपयोगितावाद को नष्ट करते हैं। मिल के विचारो में उसके समय के कारण असंगति आई है। क्योंकि वह सकारात्मक और नकारात्मक स्वतंत्रता (आधुनिक उदारवाद और शास्त्रीय उदारवाद) के चौराहे पर खड़ा है। क्या इसका मतलब यह है, कि वह एक महान विचारक नहीं है? विचारकों का मूल्यांकन इस आधार पर नहीं किया जाता है, कि वह कितने तार्किक रूप से सुसंगत हैं। बल्कि यह विचार कितना प्रासंगिक है।
जे एस मिल की पुस्तकें
- ऑन लिबर्टी (1859)
- ए ट्रीटाइस ऑन लिबर्टी
- युटिलुटेरियनिज्म (1863)
- कंसीडरेशंस ऑन रिप्रेजेंटेटिव गवर्नमेंट (1861)
- द सब्जेक्शन ऑफ वीमेन (1869)
- ए सिस्टेम ऑफ लॉजिक, रेशियोसिनेटिव एंड इंडक्टिव (1843)
- थ्री एसेस ऑन रिलीजन (1874)
- प्रिंसिपल्स ऑफ पॉलिटिकल इकोनोमी (1848)
परीक्षाओं में पूछे गये महत्वपूर्ण कथन एवं तथ्य
- जे. एस. मिल के लिए इच्छाशक्ति राज्य सहित सभी संस्थाओं का आधार है। क्योंकि इच्छाशक्ति न केवल संख्या पर निर्भर है, बल्कि इसका एक गुणवत्तापरक आधार है और वह इच्छाशक्ति जो संस्थाओं को बनाती हैं, विश्वास का रूप ले लेती है।
- मिल के द्वारा अपनी पुस्तक ‘द सब्जेक्टशन ऑफ बूमेन’ में महिला अधिकारों का प्रबल समर्थन किया गया है।
- मिल का कथन है कि “राजकीय सहायता व्यक्ति के आत्मविश्वास के भाव को नष्ट कर देती है यह उसके उत्तरदायित्व को दुर्बल बनाती है और चरित्र के विचार को कुंठित कर देती है।”
- जे एस मिल के राजनीतिक विचार के अंतर्गत मिल इस बात से सहमत थे कि “किसी सभ्य समुदाय के किसी सदस्य के ऊपर अधिकृत रूप में शक्ति का उपयोग करने का एकमात्र उद्देश्य अन्य को नुकसान पहुँचने से रोकना है।”