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जय प्रकाश नारायण के राजनीतिक विचार

जय प्रकाश नारायण के राजनीतिक विचार के PYQ आधारित नोट्स बनाये गए हैं। जिसमें जय प्रकाश नारायण का परिचय,  जय प्रकाश नारायण के कार्य, संपूर्ण क्रांति का विचार, लोकतंत्र का विचार, जन समाजवाद का विचार, जे पी नारायण की पुस्तकों का विवरण है। जो TGT Civics, PGT Civics, LT Civics, GIC Political Science, UGC NET Political Science, Political Science Assistant Professor, UPPSC etc. के विगतवर्षों में आयोजित परीक्षाओं के प्रश्नो पर आधारित है।

जय प्रकाश नारायण का परिचय

जय प्रकाश नारायण की आत्मकथा रामवृक्ष बेनीपुरी के द्वारा लिखी गई। जय प्रकाश नारायण का जन्म 11 अक्टूबर 1902 को सिताब दियारा सारण बिहार में हुआ था। 8 अक्टुबर 1979 में इनका निधन हुआ। जय प्रकाश नारायण का लोकप्रिय नाम ‘लोकनायक’ है। 

  • जयप्रकाश नारायण अपने प्रारंभिक दौर में मार्क्सवादी दर्शन की क्रांति से प्रभावित थे। किन्तु बाद में गाँधी जी के विचारों का प्रभाव पड़ा।
  • जय प्रकाश नारायण को 1999 में भारत रत्न से सम्मानित किया गया था।
  • समाजसेवा के लिए 1965 में मैग्सेस पुरस्कार प्रदान किया गया।

जय प्रकाश नारायण के कार्य

  1. अपनी इंटर की परीक्षा को छोड़कर जे पी नारायण ने 1921 के असहयोग आंदोलन में भाग लिया।
  2. 1934 में भारतीय कांग्रेस समाजवादी दल की स्थापना की।
  3. 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लिया और हजारीबाग जेल में गए किन्तु वहां से भाग निकले में सफल हुए।
  4. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को 1948 में छोड़ दिया। और भारतीय समाजवादी पार्टी बनाई। आगे चलकर यह पार्टी प्रजा समाजवादी पार्टी बन गई। 
  5. जय प्रकाश नारायण से प्रेरित हो कर 1972 में चम्बल घाटी में 400 डाकुओं ने आत्मसमर्पण किया। 
  6. 1973 में छात्र संघर्ष समिति का नेतृत्व किया। 

जे पी नारायण का संपूर्ण क्रांति का विचार

5 जून 1974 को पटना के गाँधी मैदान से तत्कालीन इन्दिरा सरकार की नीतियों के विरुद्ध सम्पूर्ण क्रांति की घोषणा की। जे. पी. नारायण के द्वारा 1975 में दिल्ली रैली (रामलीला मैदान) में सम्पूर्ण क्रांति का आह्वान किया था। इसलिए जय प्रकाश नारायण सम्पूर्ण क्रांति अवधारणा के प्रतिपादक कहे जाते है। जे पी नारायण के समग्र क्रांति विचार से भारत में एक बड़ा जनांदोलन हुआ और 25 जून 1975 को आपातकाल लागू हुआ।

26 जून 1975 को इन्हें नजर बंद कर दिया और जेल भी भेजा गया इसी समय में जेल में रहते हुए जय प्रकाश नारायण ने ‘प्रिजन डायरी’ नामक पुस्तक लिखी।

जय प्रकाश नारायण के शब्दों में “मैं रोटी के लिएस सत्ता के लिए, सुरक्षा के लिए, समृद्धि के लिए, राज्य के गौरव के लिए अथवा अन्य किसी वस्तु के लिए स्वतंत्रता का सौदा नहीं कर सकता।” 

जे पी नारायण के अनुसार सम्पूर्ण क्रांति सतत् रूप में चलने वाली एक प्राक्रिया है।

सम्पूर्ण क्रांति का उद्देश्य

  • समाज की विकृत व्यवस्था को समाप्त कारना।
  • समाज में नवीन वैकल्पिक व्यवस्था की योजना प्रस्तुत करना।
  • व्यक्तियों और समाज में समग्र परिवर्तन लाना।

संपूर्ण क्रांति के आयाम या क्रांतियाँ

जे. पी. नारायण ने सम्पूर्ण क्रांति के अन्तर्गत सात प्राकार की क्रांतियों को सम्मिलित किया है।

  1. सामाजिक क्रांति – भेदभाव, जातिवाद, रूढ़िवाद रहित तथा प्रतिबद्धता पूर्ण व्यक्तियों के समाज की स्थापना। जे पी नारायण का मानना है क सामाजिक क्रांति केवल अहिंसात्मक साधनों से ही संभव है।
  2. आर्थिक क्रांति – आर्थिक विकास का लक्ष्य मनुष्य का सुख और आरोग्य और सभी व्यक्तियों को रोजगार व न्यूनतम जीनव सुरक्षा।
  3. राजनीतिक क्रांति – राजनीति को मानव कल्याण की साधना का माध्यम बनाना।
  4. सांस्कृतिक क्रांति – भारत की मूलभूत मानवीय और आध्यात्मिक परंपरा को पुनः प्रतिष्ठित करना।
  5. शैक्षणिक क्रांति – शिक्षा के सभी तंत्र को देश की समस्यों के समाधान करने वाला बनाने पर बल दिया।
  6. नैतिक तथा आध्यात्मिक क्रांति – मनुष्य केवल भौतिक वस्तुओं को स्वयं में साधन ना माने बल्कि एक आध्यात्मिक लक्ष्य की चेतना के अनुसार मर्यादित रहे।
  7. वैचारिक तथा बौद्धिक क्रांति

जे पी नारायण का लोकतंत्र का विचार

जे. पी. नारायण दलविहीन लोकतंत्र के समर्थक माने जाते है। इनके लोकतंत्र की समझ का सारतत्व क्रांतिकारी जन-इच्छा है। इन्होंने जन-इच्छा को सम्पूर्ण क्रांति के माध्यम से व्यक्त किया। जे पी नारायण ने दलविहीन लोकतंत्र का विचार लोकप्रिय बनाया। उन्होने पश्चिमी लोकतंत्र को ‘लोकतांत्रिक अल्पतंत्र’ की संज्ञा दी है।

संसदीय लोकतंत्र की आलोचना या दोष

  • व्यापक आर्थिक तथा सामाजिक असमानता।
  • व्यक्ति के सामाजिक स्वभाव की उपेक्षा तथा केवल व्यक्ति की व्यक्तिगत भूमिका पर बल।
  • अल्पमत का शासन।
  • केन्द्रीयकरण की प्रवृत्ति।
  • राष्ट्रीय हितों की अपेक्षा दलीय हितों को अधिक महत्व।
  • राजनीतिक शक्ति प्राप्त करने के लिये भ्रष्टाचार।
  • यह प्रणाली बाहर से आयातित प्रणाली है।

दल विहीन या सामुदायिक लोकतंत्र

जय प्रकाश नारायण के अनुसार “हमने निश्चय किया है कि हम गाँवों के चुनावों को दल के आधार पर नहीं लडेंगे और जो सिद्धांत गाँव के सम्बंध में सही है वह राष्ट्रीय स्तर पर भी सही है।”

जे पी नारायण ने मनुष्य की सामुदायिक प्रवृत्ति, प्रचीन भारतीय परंपरा और सत्ता की व्यापकता को आधार बनाकर अपने लोकतंत्र का विचार दिया है। इनके अनुसार भारत के लिये यह एक आर्दश लोकतांत्रिक प्रणाली है। इन्होंने लोकतंत्र की पांच स्तरीय संरचना बताई है।

  1. प्रांभिक स्तर – ग्राम सभा (सर्वोच्च निकाय)।
  2. क्षेत्रीय स्तर – कार्यपालिका पंचायत समिति।
  3. जिला स्तर – जिला परिषद कार्यपालिका।
  4. प्रांतीय स्तर – प्रांतीय सभा।
  5. राष्ट्रीय स्तर – राष्ट्र सभा।

जय प्रकाश नारायण का जन समाजवाद

जय प्रकाश नारायण के राजनीतिक विचार के अंतर्गत ‘सर्वोदय’ को ‘जन समाजवाद’ कहा गया है। जय प्रकाश नारायण ने समाजवाद के विचार को गाँधी जी के सर्वोदय के आदर्श के साथ जोड़कर एक नई दिशा में विकसित किया है। जिसमें वर्ग सहयोग पर बल दिया गया है। इन्होंने समाजवाद को लोकतंत्र के रूप में परिभाषित किया है। 

समाजवाद के आधार

  1. व्यापक नियोजन का सिद्धांत एवं कार्यप्रणाली अर्थात विकेन्द्रीकरण।
  2. समाजवाद के भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों का महत्व।
  3. क्रांति के साधनो की पवित्रता।
  4. मानवीय मूल्यों का सर्वोच्च स्थान।
  5. आर्थिक व सामाजिक परिवर्तन के लिये जानता की शक्ति में विश्वास।

जे पी नारायण के अनुसार सर्वोदयी समाजवाद नई व्यवस्था का निर्माण मूलतः प्रेम, अहिंसा और करुणा के द्वारा होता है। इनके संगठित रूप को उन्होंने ‘लोकशक्ति’ का नाम दिया है।

Why Socialism नामक अपने लेख में जय प्रकाश नारायण ने समाजवाद का विचार दिया जिसकी विशेषताएँ निम्न है।

  1. सहकारी खेती का समर्थन।
  2. सीमित राज्य का समर्थन।
  3. छोटे उद्योगों पर उत्पादकों का नियंत्रण।
  4. भारी उद्योगों पर राज्य का नियंत्रण व स्वामित्व।

जय प्रकाश नारायण की पुस्तकें

  • व्हाइ सोशलिज्म 1936
  • फ्रॉम सोशलिज्म टु सर्वोदय 1959
  • प्रिजन डायरी 1976
  • ए प्ली फॉर रीकन्स्ट्रक्शन ऑफ इंडियन पोलिटी 1959
  • टुवार्ड्स टोटल रिवोल्युशन 1978
  • सोशलिज्म, सर्वोदय एंड डेमोक्रेसी 1964

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