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कानून और दंड के सिद्धांत

कानून और दंड के सिद्धांत के PYQ आधारित नोट्स बनाये गए हैं। इसमें कानून और दंड के सिद्धांतों का अर्थ और परिभाषा तथा कानून और दंड के सिद्धांत से संबंधित विचारकों के मत का विवरण है। जो TGT Civics, PGT Civics, LT Civics, GIC Political Science, UGC NET Political Science, Political Science Assistant Professor, UPPSC etc. के विगतवर्षों में आयोजित परीक्षाओं के प्रश्नो पर आधारित है।

कानून का अर्थ एवं परिभाषा

कानून नियमों का वह समूह है जिसे राज्य मान्यता देता है और न्याय व्यवस्था के प्रशाससन में लागू करता है। यह परिभाषा सालमण्ड द्वारा दी गई है।

कानून को परिभाषित करते हुए ऑस्टिन ने कहा कि कानून उच्चतर द्वारा निम्नतर को दिया गया आदेश है। ऑस्टिन को कानून के समादेश सिद्धांत (कमांड थ्योरी ऑफ लॉ) का उन्नायक (प्रवर्तक) माना जाता है।

लियो ड्यूग्वी के अनुसार कानून राज्य का पूर्ववर्ती है और राज्य से ऊपर है। क्रैब के अनुसार राज्य विधि का नहीं वरन विधि राज्य का निर्माण करती है। मैकाइवर के अनुसार राज्य कानून का शिशु एवं जनक दोनों है।

कानून का सर्वमान्य स्रोत विधानमंडल (विधायिका) है। अन्य स्रोतों में परंपरा, रीति रिवाज, धर्म व कानूनी टीकाएँ आदि है।

हॉब्स का कहना है कि, कानून न्यायोचित और अन्यायोचित के नियम हैं जो कोई विधि से विपरीत नहीं है उसे अन्यायोचित नहीं माना जाता।

हॉलैण्ड का मानना है कि कानून बाह्य कार्यों के वे सामान्य नियम हैं जिनको प्रभुत्व संपन्न राजनीतिक सत्ता लागू करती है।

फाइनर का कथन है कि एकात्मक सरकार में कानून बनाने की सत्ता सतत रूप सेएक केंद्रीकृत शक्ति में निहित होती है।

आर. एन. गिलक्राइस्ट का मत है कि कानून न केवल जनमत के आधार पर बने बल्कि कानून जनमत के आगे-आगे भी चले।

जवाबित का सिद्धांत – जवाबित का अर्थ राज्य के कानून होता है। अर्थात राज्य के कानूनों का सिद्धांत।

कानून का सर्वाधिक स्वीकृत आदेशात्मक सिद्धांत है क्योंकि यह आधुनिक लोकतांत्रिक शासन प्रणाली के अनुरूप है।

ऐसा कानून जो राज्य द्वारा निर्मत एवं राज्य के क्षेत्र के अधीन सभी लोगों पर लागू होता है राष्ट्रीय कानून कहलाता है।

बेंथम की पुस्तक का नाम ‘नैतिकता एवं विधि निर्मण के सिद्धांत की रूपरेखा’ (1789) है। जिसमें बेंथम ने लिखा है कि, “विधि का लक्ष्य अधिकतम व्यक्तियों का अधिकतम सुख होना चाहिए।”

लॉक के अनुसार जहाँ कानून नहीं होता वहां स्वतंत्रता नहीं होती है।

ए. वी. डायसी के विचार

ए. वी. डायसी ने विधि के शासन की अवधारणा की श्रेष्ठ व्याख्या की है। जिसका अर्थ है शासन विधि के द्वारा संचालित होना चाहिए न कि व्यक्तियों की इच्छा के द्वारा। विधि का शासन प्रक्रियात्मक समानता को प्रतिस्थापित करता है। विधि (कानून) के शासन का परंपरागत स्थान इंग्लैंड को माना जाता है। कानून के शासन का मुख्य उद्देश्य नागरिकों के अधिकार व स्वतंत्रता, प्रेस की स्वतंत्रता, न्यायपालिका की स्वधीनता आदि को सुनिश्चित करना है। जबकी विधि की उचित प्रक्रिया अमेरिका की न्यायिक व्यवस्था का एक आवश्यक लक्षण है।

डायसी की पुस्तकों के नाम निम्न है-

  1. ‘लॉ ऑफ द कॉन्स्टीट्यूशन’,
  2. ‘लेक्चर्स ऑन द रिलेशन बिट्वीन लॉ’,
  3. ‘कम्परेटिव कॉन्स्टीट्यूशनलिज्म’,
  4. ‘स्टडीज इन कॉन्स्टीट्यूशन लॉ’,
  5. ‘कॉन्स्टीट्यूशन रिफ्लेक्सन लॉ एंड पब्लिक ओपिनियन’।

दंड के सिद्धांत

  • प्रतिशोधात्मक सिद्धांत या प्रतिकारात्मक सिद्धांत – इसका अर्थ बदला लेना होता है। दूसरे शब्दों में यह जैसे को तैसा, आँख के बदले आँख और दांत के लिए दांत होता है।
  • प्रतिरोधात्मक सिद्धांत – अपराधी को उदाहरण के रूप में प्रस्तुत करना जिससे की अन्य व्यक्ति अपराधी की दुर्दशा देखकर भयभीत हो और अपराध न करें।
  • सुधारात्मक सिद्धांत – इसमें अपराधियों के चारित्रिक सुधार पर बल दिया जाता है।

न्याय का विचार

न्याय का अर्थ है कि कोई भेदभाव नहीं किया जा सकता है। जॉन रॉल्स का कथन है कि एक बेहतर न्यायिक समाज की प्रकृति तथा उद्देश्य न्याय सिद्धांत का मौलिक अंग है। रॉल्स के न्याय की धारणा उदारवादी है। रॉल्स ने न्याय को न्याय उचितता के रूप में घोषित किया है।
रॉल्स के न्याय के निम्न लक्षण है-

  • न्याय समाज का प्रथम सदगुण है
  • प्रक्रियात्मक न्याय की प्रधानता
  • सामाजिक न्याय से सरोकार
  • सामाजिक न्याय का तात्पर्य है सभी प्रकार के भेदभाव, यथा जाति, रंग, धर्म, लिंग आदि पर आधारित सुविधा समाप्त हो।

सेंट आगस्टाइन ने कहा कि, यदि न्याय व्यवस्था न हो तो राज्य लुटेरों की टोली बन जाता। दूसरे शब्दों में यदि न्याय को पृथक कर दिया जाए तो राज्य एक लुटेरे की संपत्ति के अतिरिक्त और कुछ नहीं है।

थ्रेसीमेकस के अनुसार शक्तिशाली का हित ही न्याय है।

मैक्स वेबर का विचार

मैक्स वेबर का कार्य विधिक संरचना पर संकेन्द्रित है। वेबर ने तीन प्राकार के प्राधिकार या सत्ता के रूप बताए हैं

  1. परंपरागत (मान्यता एवं प्रतीक)
  2. चमत्कारिक या करिश्माई
  3. विधिक या विवेकपूर्ण

वेबर के अनुसार सर्वश्रेष्ठ वैध सत्ता, विधिक या विवेकपूर्ण सत्ता है। वैधता का आशय है कि ऐसी आस्था उत्पन्न करना और उसे कायम रखना कि प्रचलित राजनीतिक संस्थाएं समाज के लिए सर्वाधिक उपयुक्त है। सत्ता (प्रधिकार) वैध शक्ति मानी जाती है। शक्ति और सत्ता को औचित्यपूर्ण होना चाहिए।

शक्ति की अवधारणा के रूप में समूह सिद्धांत मानता है कि समूह प्रायः स्वायत्त और निर्माण के स्वतंत्र केंद्र होते है। समूह अंतरनिर्भर होते है और एक दूसरे की शक्ति को संतुलित करते है।

प्रभाव की धारणा शक्ति और सत्ता से संबंधित है वस्तुतः शक्ति का वैध रूप प्रभाव है जिसे भौतिक वस्तुओं की तरह देख नहीं सकते परंतु उसे महसूस किया जा सकता है। प्रभाव में द्विसंबंध होता है।

माओ-त्से-तुंग के अनुसार शक्ति बन्दूक की नली से निकलती है।

अन्य तथ्य

सूचना अधिकार अधिनियम 2005 मुख्यतः पारदर्शी प्रशासन के उद्देश्य को प्राप्त करने में सहायता करता है।

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