मांटेस्क्यू के राजनीतिक विचार के PYQ आधारित नोट्स बनाये गए हैं। जिसमें मांटेस्क्यू का परिचय, मांटेस्क्यू के राजनीति संबंधी विचार, मांटेस्क्यू का राज्य की उत्पत्ति संबंधी विचार, मांटेस्क्यू के विधि या कानून संबंधी विचार, मांटेस्क्यू के सरकार या शासन व्यवस्था संबंधी विचार, मांटेस्क्यू के स्वतंत्रता संबंधी विचार, मांटेस्क्यू का शक्ति पृथक्करण का सिद्धांत तथा मांटेस्क्यू की पुस्तकों का विवरण है।
मांटेस्क्यू का परिचय
फ्रांसीसी विचारक मॉन्टेस्क्यू का जन्म 18 जनवरी 1689 को बोर्दों नगर (लाब्रीडी) में हुआ। इनका मूल नाम चार्ल्स लुईस डी सैकण्ड था परंतु इन्होंने अपना नाम मॉन्टेस्क्यू रख लिया। 66 वर्ष की अवस्था में 10 फरवरी, 1755 में इनकी मृत्यु हुई।
मांटेस्क्यू के राजनीति संबंधी विचार
मांटेस्क्यू ने राजनीति का अध्ययन समाजशास्त्रीय आधारों पर करने की वकालत की है। ऐसा करने वाले ये पहले राजनीतिक विचारक है। इनके अनुसार राजनीतिक व्यवस्था पर भौगोलिक, सामाजिक, सांस्कृतिक इत्यादि परिस्थितियों की व्यपक प्रभाव पड़ता है। इसीलिए राजनीतिक समस्याओं के निपटारे के लिए सभी परिस्थितियों का अध्ययन किया जाना चाहिए।
मांटेस्क्यू के राजनीतिक विचार में इन्होंने मानव व्यवहार को भी महत्वपूर्ण माना है क्योंकि राजनीतिक व्यवस्था का संचालन मनुष्य के द्वारा किया जाता है। इस प्रकार व्यक्ति का चरित्र, स्वभाव, सामाजिक, सांस्कृतिक व भौगोलिक परिस्थितियों से अभिन्न रूप से जुड़ा होता है।
मांटेस्क्यू का राज्य की उत्पत्ति संबंधी विचार
मांटेस्क्यू राज्य की एक सावयविक संकल्पना प्रस्तुत कारता है। मांटेस्क्यू के राजनीतिक विचार में राज्य के सामाजिक अनुबंध के सिद्धांत को नकारते हुए राज्य की उत्पत्ति का कारण उपयुक्त वातावरण एवं परिस्थितियों को माना है। मांटेस्क्यू का मानना है कि मानव आरम्भिक अवस्था में राज्यविहीन वातावरण में रहता था जिसे इन्होंने प्राकृतिक अवस्था की संज्ञा दी है। इनके अनुसार यह प्राकृतिक अवस्था शांत व उत्तम नहीं थी बल्कि मनुष्य इसमें सदैव भयभीत रहता था।
किन्तु समय के साथ मनुष्य में ज्ञान व बुद्धि का विकास हुआ। जिससे मनुष्य में निर्बलों पर शासन करने की भावना का विकास हुआ। लोगों में एक-दूसरे को दबाकर शासन करने की प्रबल इच्छा होने लगी जिसका स्वाभाविक परिणाम युद्ध और संघर्ष में बढ़ोत्तरी के रूप में दिखा। इस प्रकार उत्पन्न हुई विशेष परिस्थियों के कारण ही राज्य की उत्पत्ति हुई।
मांटेस्क्यू के विधि या कानून संबंधी विचार
मांटेस्क्यू ने अपनी पुस्तक स्प्रिट ऑफ लॉज में कानून के संबंध में विचार दिये है। जिसमें स्वयं से पूर्व के चिंतकों की भांति कानून को नहीं माना बल्कि इन्होंने कानून को वस्तुओं का प्रकृति या स्वरूप से उत्पन्न होने वाला आवश्यक संबंध माना है। इस प्रकार कानून की इस विस्तृत परिभाषा में संसार की समस्त जड़-चेतन वस्तुएं समाहित किया है।
मांटेस्क्यू के अनुसार प्राकृतिक अवस्था में समाज प्राकृतिक कानून से संचालित होता था परंतु युद्ध न संघर्षपूर्ण परिस्थितियों के कारण प्राकृतिक कानून के अलावा विधेयात्मक या मानव-कृत कानून की आवश्यकता हुई। मांटेस्क्यू ने मानवीय कानूनो को निम्न प्रकार बताया है।
- मानव निर्मित कानून विधायक(कानून निर्माता) द्वारा बनाए हुए विशिष्ट और सुनिश्चित संस्थान होते हैं।
- ये कानून सार्वभौमिक नहीं होते, न ही यह अविकारी होते थे।
- ये कानून समाज के स्वरूप, जलवायु, धर्म व नैतिक नियमों से प्रभावित होते हैं। इस लिए ये परिवर्तनशील है।
मांटेस्क्यू ने मानवीय कानूनों के तीन प्रकार बताऐ हैं।
अन्तर्राष्ट्रीय कानून – ये कानून सभी देशों व समाज के लिए एक समान होगा।
राजनीतिक कानून – राजनीतिक और दीवानी कानून देशों के स्थानीय परिस्थितियों के अनुसार होगा। जो नागरिक अधिकारों की रक्षा करते हैं।
नागरिक कानून – ये एक नागरिक के दूसरे नागरिक के बीच संबंध को बताते है।
मांटेस्क्यू के सरकार या शासन व्यवस्था संबंधी विचार
मांटेस्क्यू ने सरकार के तीन रूप बताए है।
गणतांत्रिक सरकार – इसमें सर्वोत्तम शक्ति समस्त नागरिकों या इसके एक भाग में निहित होती है। इस प्रकार मांटेस्क्यू ने गणतंत्र के भी दो भेद बताए हैं। पहला लोकतंत्र और दूसरा कुलीनतंत्र। मांटेस्क्यू ने गणतंत्रात्मक शासन व्यवस्था में शील या सदाचार के सिद्धांत को प्रमुख बताया है।
राजतंत्रात्मक सरकार – इसमें राज्य पर एक ही व्यक्ति कुछ निश्चित नियमों के आधार पर शासन करता है। मांटेस्क्यू ने राजतंत्रात्मक शासन व्यवस्था में सम्मान व गौरव की भावना का सिद्धांत प्रमुख बताया है।
निरंकुश तंत्र – इसमें भी एक ही व्यक्ति का शासन होता है किन्तु वह स्वेच्छाचारी रूप से गैर कानूनी आचरण करता है। मांटेस्क्यू ने निरंकुश शासन व्यवस्था में भय के सिद्धांत को प्रमुख बताया है।
मांटेस्क्यू ने किसी भी शासन व्यवस्था को आदर्श नहीं माना है। क्योंकि इन्होंने सापेक्षतावाद का समर्थन किया। जिसके अनुसार विशेष परिस्थितियों में विशिष्ट सिद्धांतों का अनुसरण करने वाली प्रणाली ही सर्वोत्तम है।
मांटेस्क्यू ने गणतंत्र, राजतंत्र और निरंकुशतंत्र को क्रमशः प्रकाश, गोधूलि और अन्धकार का संज्ञा दी है।
मांटेस्क्यू के स्वतंत्रता संबंधी विचार
मांटेस्क्यू के राजनीतिक विचार के तहत अपनी पुस्तक द स्प्रिट ऑफ लॉज में मांटेस्क्यू ने स्वतंत्रता के सिद्धांत को प्रमुख स्थान दिया है। इन्होंने स्वतंत्रता की व्यापक परिभाषा दी है जिसके अनुसार “व्यक्ति का ऐसा विश्वास था कि वह अपनी इच्छानुसार कार्य कर रहा है। जब व्यक्ति अपना इच्छा से विरूद्ध कार्य करता है, वह स्वतंत्र नहीं रहता।”
मांटेस्क्यू ने स्वतंत्रता के दो प्रकार बताए हैं-
राजनीतिक स्वतंत्रता – इस स्वतंत्रता से आशय उन कार्यों को करने के अधिकार से है, जिसे कानून अनुमति प्रदान करता है। मांटेस्क्यू के शब्दों में, “व्यक्ति को उन कार्यों को करने की स्वाधीनता हो जो करने योग्य “
नागरिक (व्यक्तिगत) स्वतंत्रता – नागरिक स्वतंत्रता एक व्यक्ति का दूसरे व्यक्ति के साथ संबंधों का परिणाम है। कोई व्यक्ति अन्य व्यक्ति की स्वतंत्रता को छीन नहीं सकता है अर्थात् उसे दास नहीं बनाया जा सकता।
मांटेस्क्यू का माना था कि व्यक्ति स्वतंत्रता का पूर्णरूप से प्रयोग तभी कर सकता है जब शक्ति का प्रयोग सीमित हो।
मांटेस्क्यू का शक्ति पृथक्करण का सिद्धांत
शक्ति पृथक्करण सिद्धांत के कारण मांटेस्क्यू का राजनीतिक चिंतन में प्रमुख स्थान है। इनका यह सर्वप्रमुख सिद्धांत ब्रिटेन की राजनीति से प्रेरित, ‘स्प्रिट ऑफ लॉज’ नामक पुस्तक में वर्णित है। अमेरिका की राजनीतिक व्यवस्था नियंत्रण और संतुलन के सिद्धांत के साथ इसी सिद्धांत पर आधारित है।
मांटेस्क्यू के अनुसार प्रत्येक सरकार में तीन प्रकार की शक्तियाँ विद्यमान होती है। जो निम्न हैं –
- व्यवस्थापन सम्बंधी
- शासन सम्बंधी
- न्याय सम्बंधी
जिसमें व्यवस्थापन तथा शासन संबंधी शक्तियाँ किसी एक व्यक्ति या समूह में केन्द्रित हो तो स्वतंत्रता का अस्तित्व खतरे में आ जाता है। साथ ही न्याय तथा व्यवस्थापन संबंधी शक्तियाँ अलग-अलग नहीं रखी रखी गई तो व्यक्तियों पर निरंकुश नियंत्रण किया जायेगा। क्योंकि न्यायकर्ता ही व्यवस्थापक होगा। इसी प्रकार अगर न्याय तथा शासन संबंधी शक्तियाँ एक व्यक्ति में निहित कर दी जाए तो न्यायकर्ता अत्याचारी बन जाता है।
इसी कारण मांटेस्क्यू का मानना है कि शासन की शक्ति एक स्थान पर नहीं रखनी चाहिए क्योंकि व्यक्ति की स्वतंत्रता की सुरक्षा के लिए व्यवस्थापन, शासन तथा न्याय की शक्तियाँ पूर्णरूप से पृथक होनी चाहिए। जिसके द्वारा मांटेस्क्यू शासन की सभी शक्तियों को मर्यादित करना चाहते हैं। क्योंकि उनका मानना था कि शासन में एक शक्ति दूसरी शक्ति को नियंत्रित करेगी।
अतः इस सिद्धांत में सरकार के प्रत्येक अंग अपनी शक्तियों और उत्तरदायित्व के संबंध में एक दूसरे से अलग और स्वतंत्र होते है।
मांटेस्क्यू की पुस्तकें
- द परशियन लैटर्स 1721
- रिफलेक्शन ऑन द कॉजेज आफ द ग्रेटनेस एंड डिक्लाइन
- आफ द रोमन्स 1734
- द स्प्रिट ऑफ द लॉज 1748
- द टैम्पेल ऑफ ग्निडस 1760
इन्हें भी पढ़ें –
प्लेटो का जीवन परिचय और सिद्धांत
अरस्तु का जीवन परिचय और सिद्धांत
बेंथम के राजनीतिक विचार
स्वतंत्रता का सिद्धांत
सम्प्रभुता के सिद्धांत