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न्याय का सिद्धांत

न्याय का सिद्धांत के PYQ आधारित नोट्स बनाये गए हैं। इसमें न्याय का अर्थ,  न्याय का सिद्धांत, अरस्तु और रॉल्स का न्याय का सिद्धांत एवं अन्य महत्वपूर्ण तथ्य से संबंधित विवरण है। जो TGT Civics, PGT Civics, LT Civics, GIC Political Science, UGC NET Political Science, Political Science Assistant Professor, UPPSC etc. के विगतवर्षों में आयोजित परीक्षाओं के प्रश्नो पर आधारित है। 

न्याय का अर्थ

न्याय शब्द का अंग्रेजी पयार्य जस्टिस है, जो लैटिन भाषा के ज्युंगैर और जस् से व्युत्पन्न हुआ शब्द जस्टिस से बना है। इनमें ज्युंगैर का अर्थ बांधना है और जस् का अर्थ बंधन है अर्थात् जस्टिस का अर्थ जोड़ना है। अतः न्याय प्रत्येक व्यक्ति को अधिकारों, कर्त्तव्य व दण्डों का यथोचित हिस्सा बांट कर लोगों के संबंध को एक उचित व्यवस्था में जोडने का कार्य करता है। न्याय के द्वारा यह कार्य स्वतंत्रता व समानता जैसे सिद्धांतों के बीच समन्वय स्थापित करके करता है।

प्लेटो के अनुसार, न्याय का आशय समाज सामंजस्य एवं संतुलन स्थापित करना है।

न्याय न केवल एक नैतिक व राजनीतिक मूल्य है बल्कि वह अन्य राजनीति सिद्धांतों के औचित्य का परीक्षण करता है। जिसका प्रतिनिधित्व न्यायालय में हाथ में तराजू धारण किए न्याय की मूर्ति करती है।

ऐसा नहीं है कि न्याय का आधार सदैव समान रहता है यह समय व परिस्थितियों के अनुसार बदलता रहता है। जैसे कभी नैतिक तो कभी वैधानिक तथा कभी सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक। परन्तु आधुनिक समय में न्याय का आधार सामाजिक लिया गया है। जिसे सामाजिक न्याय कहा जाता है जिसमें वैधानिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय भी शामिल है।

न्याय की परिभाषा

  • संत आगस्टिन के अनुसार, जिस राज्य में न्याय न हो वह समुद्री लुटेरों के गिरोह जैसा होता है। अतः न्याय के बिना राज्य की कल्पना नहीं की जा सकती है।
  • माइकल सैंडेल को वितरणात्मक न्याय की सामुदायिक आलोचना के लिए जिम्मेदार ठहराया जाता है।
  • न्याय का सार्वलौकिक तत्व बंधनों पर बल देना है। क्योंकि न्याय उद्देश्य मनुष्य के पारस्परिक संबंधों की उचित व्यवस्था स्थापित करना है।
  • समाजवादियों का मत है कि, न्याय और समानता में घनिष्ठ संबंध है। समाजवादियों की मूल मान्यता है समाज में आर्थिक समानता लाना है। इनका कहना है की समाज में आर्थिक समानता के होने से सामाजिक न्याय स्वतः हो जाएगा।

अरस्तु का न्याय सद्धांत

अरस्तु के अनुसार, न्याय योग्यता पर आधारित है और योग्यता का मानदण्ड सद्गुण होता है। जिसका आशय है कि समाज में सेवाओं और पदों का वितरण व्यक्ति द्वारा समाज में किये गये योगदान से निर्धारित होता है। इसलिए उसके न्याय को समानुपातिक न्याय कहा जाता है। अरस्तु का न्याय तीन प्रकार है-

  1. संपूर्ण न्याय (सात्विकता)
  2. वितरणात्मक न्याय
  3. संशोधनात्मक न्याय

विकरणात्मक न्याय के सिद्धांत का प्रतिपादन अरस्तु ने किया। इसने सुधारात्मक व सम्पूर्ण न्याय के सिद्धांत का प्रतिपादन भी किया। उसके अनुसार ‘अन्याय का जन्म वहां होता है, जहाँ समान समान लोगों के साथ असमान व्यवहार किया जाता है। और असमानों के साथ समान व्यवहार किया जाए।’ अरस्तु ने न्यायोचित समानता के सिद्धांत का प्रतिपादन किया।

इनका विस्तृत विवरण अरस्तु वाले लेख में किया गया है।

रॉल्स का न्याय सिद्धांत

न्याय का रॉल्सियन सिद्धांत जिसे न्याय के निष्पक्षता के रूप में जाना जाता है। एक आदर्श सिद्धांत का उदाहरण है। रॉल्स ने अपने न्याय के सिद्धांत को शुद्ध प्रक्रियात्मक न्याय कहा है। ‘ए थ्योरी ऑफ जस्टिस’ (1971), नैतिक विचारक एवं अमेरिकी उदारवाद के दार्शनिक, जॉन रॉल्स की पुस्तक है। जिसका प्रकाशन 1971 में हुआ।

जॉन रॉल्स के अज्ञानता का आवरण (‘वेल ऑफ इग्नोरेंस’) की धारणा का आशय है। मनुष्य अज्ञान के पर्दे के पीछे बैठा है। जिस कारण कोई समाज में अपना स्थान नहीं जानता है। कोई अपनी वर्ग स्थिति अथवा सामाजिक दर्जा नहीं जानता है। और कोई भी प्राकृतिक संपदाओं के वितरण में अपना भविष्य नहीं जानता है। वास्तव में यह एक काल्पनिक स्थिति है जिसमें सभी व्यक्ति अपनी-अपनी आवश्यकताओं, हितों, क्षमताओं, योग्यताओं, अपनी विशिष्ट मनोवैज्ञानिक प्रवृत्तियों इत्यादि से बिल्कुल बेखबर है।

जॉन रॉल्स ने समाज के ‘परस्पर फायदे के लिए एक सहकारी उद्यम, कमोवेश आत्मनिर्भर और अवश्यतया नियमों के द्वारा शासित’ के रूप में कल्पना की। जॉन रॉल्स के अनुसार, “हमारी सामाजिक व्यवस्था का न्याय मुख्यतः इस बात पर आधारित है कि समाज में मूलभूत अधिकार तथा कर्त्तव्य कैसे है तथा समाज के विभिन्न क्षेत्रों में आर्थिक अवसर और सामाजिक परिस्थितियाँ कैसी हैं।”

न्याय की महत्वपूर्ण अवधारणाएं एवं उनके प्रतिपादक

  • वितरणात्मक न्याय – अरस्तु या जॉन रॉल्स
  • न्याय पात्रता के रूप में – रॉबर्ट नॉजिक
  • न्याय का समुदायवादी दृष्टिकोण – माइकल वाल्जार
  • वैश्विक न्याय – थॉमस पोगे

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