ई. वी. रामास्वामी नायकर पेरियार के राजनीतिक विचार के PYQ आधारित नोट्स बनाये गए हैं। जिसमें पेरियार जी का परिचय एवं कार्य, वाइकोम सत्याग्रह, आत्मसम्मान आंदोलन, पेरियार जी के भाषा संबंधी विचार, पेरियार के धर्म संबंधी विचार, पेरियार जी का राजनीतिक जीवन तथा इनकी पुस्तकों का विवरण है।
ई. वी. रामास्वामी नायकर पेरियार का परिचय
पेरियार जी का जन्म 17 सितम्बर 1879 को कोयम्बटूर जिले के नायकर परिवार में हुआ। इनका मूल नाम इरोड़ वेंकट नायकर रामास्वामी है। इनके समर्थकों ने इन्हें पेरियार की संज्ञा दी। तमिल भाषा में पेरियार शब्द का अर्थ सम्मानित व्यक्ति, मान्यवर या महर्षि होता है। पेरियार जी ने 1929 में अपना उपनाम ‘नायकर’ का त्याग कर दिया।
पेरियार जी को 1970 में यूनेस्को द्वारा सम्मानित किया गया। यूनेस्को ने पेरियार को नए युग का पैगम्बर, दक्षिण-पूर्व एशिया का सुकरात, समाज-सुधार आंदोलन का पिता, अज्ञानता अंधविश्वास निर्थक रीति रिवाज और निम्न एवं हेय व्यवहारिकता के घोर शत्रु माना है।
ई. वी. रामास्वामी नायकर पेरियार के कार्य
वाइकोम सत्याग्रह
पेरियार जी ने केरल के त्रावणकोर में 1924 के वाइकोम सत्याग्रह में मुख्य भूमिका निभाई। यह आंदोलन मंदिरों की ओर जाने वाली सड़कों पर दलितों के चलने से रोकने के विरूद्ध किया गया। इस कारण बाद में लोगों ने इन्हें ‘वाइकोम वीर’ अर्थात् ‘वाइकोम का नायक’ की उपाधि दी।
आत्मसम्मान आंदोलन
समाज सुधार कार्य को आगे बढ़ाते हुए 1925 में पेरियार जी ने ‘आत्मसम्मान आंदोलन’ चलाया। जिसका उद्देश्य गैर-ब्राह्मणों के मन में अपनी द्रविड़ परंपरा पर गर्व का भाव जगाना था। ब्राह्मणों के प्रभुत्व को चुनौती देते हुए ‘आत्मसम्मान विवाहोत्सव’ का आयोजन किया। जहाँ ब्राह्मण पुरोहित को बिना बुलाए विवाह संस्कार कराए गए। आत्मसम्मान आंदोलन के प्रचार हेतु तमिल साप्ताहिकी ‘कुड़ी अरासु’ (1925) और अंग्रेजी जर्नल ‘रिवोल्ट’ (1928) की शुरुआत हुई।
आगे चलकर पेरियार जी ने कहा कि जब तक आर्य धर्म, भारतीय आर्य प्रभुत्व, आर्यों का वेद प्रचार और वर्णाश्रम व्याप्त था, तब तक एक द्रविड़ियन प्रगति एवं आत्म सम्मान आंदोलन की आवश्यकता थी।
पेरियार जी के भाषा संबंधी विचार
पेरियार जी ने दलितों की नई पहचान स्थापित करने हेतु न केवल द्रविड़ आंदोलन चलाया, बल्कि एक नए स्वाधीन देश ‘द्रविड़िस्तान’ की मांग भी उठाई। इन्होंने 1938 में ‘तमिलनाडु तमिलों के लिए’ का नारा भी दिया। दक्षिण भारत में हिंदी भाषा को अनिवार्य किये जाने का विरोध किया। इनका मानना था की तमिल प्रदेश में हिंदी लागू करने का अर्थ है संस्कृत का पुनरूत्थान। इस लिए इन्होंने हिंदी के बजाय मातृभाषा पर बल दिया। इसी कारण पेरियार जी ने मातृभाषा को पराई आर्य भाषा के आक्रमण से बचाने का आह्वान किया। इन्होंने अंग्रेजी को भारतीय संघ की आधिकारिक भाषा बनाने का समर्थन किया।
पेरियार जी के धर्म (ईश्वर) संबंधी विचार
पेरियार अपनी काशी तीर्थ यात्रा (1904) के बाद नास्तिक हो गये। इन्होंने तत्कालीन ब्राह्मणवादी व्यवस्था, रूढ़िवादी हिंदुत्व, वर्ण-व्यवस्था, मूर्ति-पूजा, हिन्दू पौराणिक कथाओं का तीव्र विरोध किया। पेरियार जी के शब्दों में, जिस वस्तु को मैं ईश्वर मानता हूँ, वह सभी व्यक्तियों को एकसमान और स्वतंत्र बनाती है, वह ईश्वर कभी भी स्वतंत्र रूप से विचारों एवं अनुसंधान कार्य को नहीं रोकता, ईश्वर को रुपया नहीं चाहिए न ही अपने प्रशंसक चाहिए और सभी मंदिर केवल पूजा स्थल हो सकते है ऐसा कहने के कारण मुझे अनीश्वरवादी कहा गया है जो अर्थहीन है।
पेरियार जी का राजनीतिक जीवन
पेरियार जी 1919 में चक्रवर्ती राजगोपालाचारी के प्रयास से कांग्रेस के सदस्य बन गए। किन्तु 1925 में इन्होंने पार्टी छोड़ दी।
20 नबम्वर 1916 को साउथ इंडियन लिबरल फेडरेशन नामक संस्था की स्थापना हुई। जिसका नाम बदल कर जस्टिस पार्टी कर दिया गया। इसके संस्थापक सदस्यों में सी नातेशा मुदालियर, टी एम नय्यर और थियगराज चेट्टी शामिल थे। इस पार्टी के गठन का उद्देश्य गैर ब्राह्मणों के प्रति सामाजिक न्याय की स्थापना करना तथा ब्राह्मण समुदाय की आर्थिक शक्ति व राज्य का विरोध करना था।
पेरियार जी 1939 में जस्टिस पार्टी के अध्यक्ष बने। 1944 में पेरियार जी ने जस्टिस पार्टी का नाम परिवर्तित करके ‘द्रविड़ कड़गम’ (द्रविड़ संघ) कर दिया। आगे चलकर 1949 में पेरियार जी के मुख्य लेफ्टिनेंट कांजीवरम नटराजन अन्नादुराय ने मतभेद के कारण एक अलग पार्टी ‘द्रविड मुत्तेत्र कड़गम’ (DMK) की स्थापना की।
पेरियार जी कि पुस्तकें
- हु वर वूमेन एन्सलेव्ड?
- पेरियार ऑन बुद्धिज्म
- थॉट्स ऑफ पेरियार
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