प्लेटो का सिद्धांत एवं जीवन परिचय और राजनीतिक विचारों, प्लेटो के राज्य का सिद्धांत, न्याय का सिद्धांत, शिक्षा का सिद्धांत, प्लेटो की सभी पुस्तकों का विस्तृत विवरण एवं प्लेटो से संबंधित विचारकों तथा प्लेटो का सिद्धांत के विभिन्न कथनों का विस्तार से वर्णन किया गया है।
प्लेटो का परिचय
प्लेटो प्राचीन यूनानी राजनीतिक दार्शनिक है। जो कल्पनावादी और आदर्शवादी विचारक है। जिसे प्राचीन राजनीतिक दर्शन का पिता माना जाता है। क्योंकि इसके द्वारा ही व्यवस्थित राजनीतिक चिंतन की शुरुआत मानी जाती है। प्लेटो का जन्म 428 ईसा पूर्व एथेंस (यूनान) में हुआ था। प्लेटो का पूरा (वास्तविक) नाम एरिस्टोक्लीज था। प्लेटो की उपाधि इसे इसके गुरु सुकरात ने दी थी।
प्लेटो का बचपन
प्लेटो की बात करें तो उसका जन्म एक अभिजात कुल मे हुआ था। हालाकि बचपन में ही उसके पिता अरिस्टॉन का स्वर्गवास हो गया और उसकी माता पैरिक्शियन ने पायरिलैम्पीस से विवाह कर लिया। पायरिलैम्पीस यूनानी राजनीतिज्ञ पैरिकल्स का सहयोगी था। प्लेटो की परवरिश ऐसे समय में हो रही थी, जब एथेंस स्पार्टा के साथ पौलोपोनेशियन युद्ध में लगा हुआ था। यह युद्ध लगभग 28 वर्ष तक चला और जिसका परिणाम एथेंस का पतन था।
प्लेटो की जीवन यात्रा
जीवन के प्रारम्भिक वर्षो में प्लेटो की महत्वाकांक्षा राजनीति में भाग लेने की थी किन्तु एथेंस की राजनीति में व्याप्त भ्रष्टाचार को देख कर प्लेटो ने राजनीतिज्ञ बनने का इरादा त्याग दिया। और एथेंस की हार का कारणो का समाधान ढूढने के लिये निकल पड़ा। प्लेटो की इस यात्रा मे उसकी मुलाकात सुकरात से हुई। सुकरात को प्लेटो ने अपना गुरू बनाया।
तत्कालीन शासन व्यवस्था
प्लेटो के समय में दो प्रकार की शासन व्यवस्था थी। जिसमें पहला 30 लोगों का शासन (रूल ऑफ थर्टी) और दूसरा लोकतांत्रिक दल के लोगों का शासन था। प्लेटो इन दोनों ही प्रकार की शासन व्यवस्था की कार्यशैलियों से असंतुष्ट था। क्योंकि पहले शासन के द्वारा उसके गुरु सुकरात को युवाओं को भ्रष्ट करने के आरोप में फंसाया गया और दूसरे शासन के द्वारा उसे अपवित्र बताकर मृत्यु दंड दे दिया। इन घटनाओं ने प्लेटो के राजनीतिक महत्वाकांक्षा को समाप्त कर दिया।
प्लेटो की आत्मकथा माने जाने वाले लेख ‘सेंवथ लेटर’ में लिखते हुए कहा है कि “यद्यपि मैं शुरू में राजनीति में जाने के लिए बहुत उत्सुक था किंतु जब मैंने इन चीजों की तरफ देखा कि सभी चीजें बिना किसी दिशाए या व्यवस्था के किसी भी तरह की जा रही थीं तो मुझे चक्कर आने लगा; लेकिन अंत में मैंने देखा कि जहां तक सभी विद्यमान राज्यों का संबंध था। वे सभी बुरी तरह से शासित थे। जहां तक उनके नियमों का संबंध था उनकी स्थिति बहुत ही खराब थी और केवल किसी चमत्कार के द्वारा ही उन्हें सुधारा जा सकता था।”
प्लेटो द्वारा एथेंस को छोड़ना
सुकरात की मृत्यु (399 ई पू) के बाद प्लेटों को अपनी सुरक्षा की चिंता के कारण एथेंस छोड़कर जाना पड़ा। अपनी इस यात्रा के दौरान वह कुछ समय इटली, सिसली और मिस्र में रहा।
प्लेटो द्वारा अकादमी की स्थापना
सन् 388 ईसा पूर्व में प्लेटो ने एथेंस में ‘अकादमी’ नामक संस्था स्थापना की जिसे यूरोप का प्रथम विश्वविद्यालय के रूप में वर्णित किया जाता है। अकादमी का पाठ्यक्रम काफी व्यापक था जिसके अंतर्गत खगोल विज्ञान (एस्ट्रोलॉजी), जीव विज्ञान, राजनीतिक सिद्धांत, दर्शन और गणित जैसे विषयों की शिक्षा दी जाती थी। गणित के बारे में तो अकादमी के दरवाजे पर लिखा था कि ‘जिन लोगों को गणित का कोई ज्ञान नहीं है बे इसके अंदर ना आए।’
प्लेटो ने जीवन के अंतिम वर्ष अपनी अकादमी में ही रहकर लेखन कार्यों और व्याख्यान देते हुऐ व्यतीत किए। 80 वर्ष की आयु में 347 ईसा पूर्व, एथेंस में प्लेटो का देहांत हो गया। उस के देहांत के बाद अकादमी की देखभाल और व्यवस्था का काम उसके भतीजे स्पैकेसिपस ने संभाला।
प्लेटो की अध्ययन-पद्धति या कार्य-पद्धति
सामान्यतः प्लेटो की अध्ययन-पद्धति निगमनात्मक (Deductive) है। जिसके अंतर्गत कुछ पूर्व निर्धारित निष्कर्ष होते है उन्हें अपने आस-पास की परिस्थितियों से सत्यापित किया जाता है। अर्थात पहले सामान्य सिद्धान्त निर्धारित होते हैं तत्पश्चात उन्हें विशेष स्थितियों से जोड़ा जाता है।
इसकी शैली संवादात्मक है जिसमे चर्चा-परिचर्चा और वाद-संवाद के माध्यम से निष्कर्षों तक पहुँचा जाता है। प्लेटो का न्याय सिद्धान्त इसी शैली का परिणाम है। जो सिफलेस, पॉलिमार्कस, थ्रैसीमैक्स, ग्लॉकॉन और एडीमैन्टस जैसे पात्रों से चर्चा के द्वारा प्लेटो ने प्रतिपादित किया।प्लेटो का मानव संबंधी विचार
अरस्तु कि भांति प्लेटो ने व्यक्ति के गुणों पर अत्यधिक महत्व दिया है। और व्यक्ति की पहचान आत्मा से बतायी है। जिसमे तीन प्रकार के गुण पाए जाते हैं। ये गुण विवेक,साहस और भूख हैं। आत्मा के इन्हीं तीनों गुणों के आधार पर व्यक्तियों को तीन प्रकारों में बांटा गया है। जो शासक, सैनिक और उत्पादक हैं।
जिस व्यक्ति में विवेक की प्रधानता होगी वह शासक,जिसमे साहस की प्रधानता होगी वह सैनिक और जिसमे भूख की प्रधानता होगी उसे उत्पादक के अंतर्गत रखा गया है। प्लेटो ने इन्हीं आधारों पर समाज को भी तीन वर्गो मे वर्गीकृत किया है। जिसमे शासक वर्ग, सैनिक वर्ग और उत्पादक वर्ग हैं।
प्लेटो का राज्य का सिद्धान्त
प्लेटो के चिंतन मे राज्य और समाज की व्याख्या अलग-अलग नहीं मिलती है। वह को समाज के तीनों वर्गो का समूह मानता है। द रिपब्लिक में राज्य की उत्पत्ति के बारे में बताते हुए उसे प्राकृतिक संस्था माना है। और राज्य को विकास का परिणाम बताया।
प्लेटो का राज्य स्वाभाविक और नैतिक संस्था है। वह राज्य में विधि और दंड को कोई स्थान नहीं देता है और राज्य को आंगिक व जैविक मानता है। उसके अनुसार, “राज्य का निर्माण ओक के वृक्ष से नहीं, वल्कि व्यक्ति के चरित्र से होता है।”
प्लेटो के अनुसार राज्य की कुल संख्या
शासन प्रणाली के बारे में बताते हुए प्लेटो ने सरकार का पाँच रूप बताये है। जो निम्न प्रकार है-
- अभिजात तंत्र
- सैनिक तंत्र
- धनिक तंत्र
- प्रजातंत्र
- निरंकुश तंत्र
लोकतांत्रिक शासन प्रणाली को प्लेटो ने शासन का सबसे भ्रष्ट रूप माना जबकी राजतंत्रीय शासन प्रणाली को सर्वश्रेष्ठ माना है। क्योकि उसके राजतंत्रीय शासन में दार्शनिक राजा का शासन होगा। प्लेटो के अनुसार, शासन एक कला है। प्लेटो ने एक आदर्श राज्य की जनसंख्या 5040 निश्चित की है।
प्लेटो का न्याय का सिद्धान्त
द रिपब्लिक पुस्तक की विषय वस्तु न्याय है जो संवादात्मक शैली में लिखी गई है। इसी पुस्तक में वाद-संवाद के माध्यम से न्याय सिद्धान्त का प्रतिपादन किया गया। उसके न्याय सिद्धान्त को निम्न बिन्दुओं में समझ सकते हैं – प्लेटो के अनुसार,
- प्रत्येक व्यक्ति को उसका हक दिलान ही न्याय है।
- स्वार्थ के आधार पर कार्य करना न्याय नहीं है, जबकी अपने नैतिक दायित्यों का पालन करना ही न्याय है।
- शक्तिशाली व्यक्ति के बजाय, न्यायपूर्ण व्यक्ति का महत्व ज्यादा है तथा एक अन्यायी व्यक्ति की बजाय एक प्रसन्न व्यक्ति का महत्व ज्यादा है।
- न्याय, बाह्य नहीं, बल्कि आंतरिक होता है। यह कृत्रिम रूप से निर्मित नहीं हो सकता है, जबकी यह मानव आत्मा की शर्त है, जिसका निर्माण शिक्षा के द्वारा ही संभव है।
उसने न्याय के दो प्रकार बताये हैं –
- वैयक्तिक न्याय
- सामाजिक न्याय
प्लेटो का शिक्षा का सिद्धान्त
शिक्षा का उद्देश्य बताते हुए प्लेटो ने कहा कि अज्ञान से ज्ञान तथा अंधकार से प्रकाश की ओर यात्रा ही शिक्षा है। जिसका उद्देश्य, विचारों एवं आत्मा का ज्ञान प्राप्त करना है। रूसो ने “द रिपब्लिक” को शिक्षा पर लिखा गया सर्वश्रेष्ठ ग्रंथ माना।
द रिपब्लिक में प्लेटो ने शिक्षा के तीन चरण बताये है। जो निम्न है-- प्रथम चरण में प्राथमिक शिक्षा, जो 10 वर्ष से 20 वर्ष तक होगी जिसमें संगीत एवं व्यायाम की शिक्षा दी जायेगी।
- द्वितीय चरण की शिक्षा 20 वर्ष से 30 वर्ष के बीच होगी जिसके अंतर्गत गणित, ज्योतिष तथा ज्यामिति की शिक्षा दी जायेगी।
- और तृतीय चरण में 30 से 35 वर्ष के बीच शिक्षा होगी जहां दर्शनशास्त्र की शिक्षा दी जायेगी।
उपरोक्त आधार पर ही कार्यो का विभाजन भी किया गया है। अर्थात् जो प्रथम चरण में असफल होगा, वह उत्पादन का कार्य करेगा। जो द्वितीय चरण में असफल होगा, वह सैनिक बनेगा। और जो सभी चरणों में उत्तीर्ण होगा, वह दर्शनिक राजा बनेगा। दार्शनिक राजा को 35 वर्ष की शिक्षा के बाद और15 वर्ष का प्रशिक्षण दिया जायेगा।
प्लेटो ने शिक्षा के माध्यम से संपत्ति और परिवार के साम्यवाद का सिद्धान्त दिया। जिसका उद्देश्य शासक वर्ग को संपत्ति और परिवार के मोह से मुक्त रखना था। उसके अनुसार, दार्शनिक राजा तथा सैनिकों को अपनी निजी संपत्ति रखने का अधिकार नहीं होगा। तथा इन वर्गों को अपनी पत्नियों को रखने का अधिकार नहीं होगा।
प्लेटो की पुस्तकें
प्लेटो ने अपनी पुस्तकें संवादात्मक भाषाशैली में लिखी हैं। इसके द्वारा लिखी गई पुस्तकों 35 संवाद और 13 पत्र मिलते हैं। उसने अपनी सभी पुस्तकों में नायक के रूप में अपने गुरू सुकरात को ही रखा है जिसका एक मात्र अपवाद लॉज पुस्तक है। संवाद शैली में लिखी पुस्तकों में प्लेटो के दार्शनिक मान्यताएं मिलती हैं। इन पुस्तकों के माध्यम से प्लेटो ने सुकरात के दर्शन और संवादात्मक पद्धती को बताने की कोशिश की है। प्लेटो की पुस्तकों का वर्णन निम्न प्रकार है-
प्लेटो की प्रमुख पुस्तकें –
- द रिपब्लिक – न्याय की चर्चा।
- चार्मीडस – आत्म संयम की परिभाषा।
- लाइसिस – मित्रता के संबंध में चर्चा।
- लीच्ज – साहस का अर्थ बताने का प्रयास।
- प्रोटागोरूस – सद्गुण ही ज्ञान है सिद्धान्त का समर्थन।
- यूथीफ्रो – पवित्रता और धर्म के स्वरूप का विचार।
- गोर्जियस – अनेंक नैतिक प्रश्नों पर चिंतन।
- मेनो – ज्ञान के स्वारूप का वर्णन।
- द अपोलॉजी – सुकरात के विरुद्ध लगे नास्तिकता और एथेंस के युवाओं को भ्रष्ट करने के अभियोगों से बचाव।
- क्रिटो – सुकरात के नगर के नियमों का आज्ञापालन करने के सम्बंध में विचार।
- फाइदो – सुकरात की मत्यु का दृश्य का वर्णन आकारों (रूपों) के सिद्धान्त का वर्णन और आत्मा की प्रकृति और अनश्वरता के विषय पर चर्चा।
- द सिम्पोजियम – यह प्लेटो की सबसे महत्वपूर्ण प्रभावशाली और नाटकीय कृति है जिसमें प्रेम और सौंदर्य की भी चर्चा की गई है।
- स्टेट्समैन – इसमें प्लेटो ज्ञान को इन्द्रिय बोध के साथ पहचाने की बात का खण्डन करता है।
- थिएटिटस – इसमें भी वह ज्ञान को केवल इन्द्रियों के अनुभवों तक सीमित नहीं करता।
- प्रोमैनड्स – आकारों (रूपों) के सिद्धान्त का आलोचनात्मक परीक्षण।
- सोफिस्ट – विचारों और आकारों (रूपों) के सिद्धान्तों का आगे विकास।
- फिलेबस – सुख (द गुड) और आनंद (प्लेज़र) के बीच सम्बन्धों की चर्चा।
- टिमाएउस – प्लेटो के ब्रह्माण्ड विज्ञान (कॉसमोलॉजी) और प्राकृतिक विज्ञान के सम्बन्ध में विचार।
- लॉज – राजनीतिक और सामजिक विषयों का व्यवहारिक विश्लेषण।
उपरोक्त पुस्तकों में रिपब्लिक, स्टेट्समैन और लॉज सबसे महत्वपूर्ण पुस्तकें हैंं। जिनमें प्लेटो का पूरा राजनीतिक दर्शन समाहित है।
द रिपब्लिक पुस्तक का अध्याय बार विवरण-
रिपब्लिक, प्लेटो की रचनाओं में अपना विशेष स्थान रखती है। वह केवल राजनीति का ही एक शोध-प्रबंध नहीं है बल्कि व्यक्ति के जीवन से जुड़े पहलुओं से संबंधित प्रबंध-ग्रंथ है। वस्तुतः यह तत्वमिमांसा, नैतिक दर्शन, शिक्षा, राजनीति, इतिहास का दर्शन, अर्थव्यवस्था आदि सभी विषयों पर लिखा गया ग्रंथ है। इस ग्रंथ में दस अध्याय हैं। जिस की विषयवस्तु निम्न प्रकार है-
अध्याय एक –
इस अध्याय के अंतर्गत प्लेटो के द्वारा मनुष्य के जीवन, न्याय और नैतिकता की प्रवृत्ति पर विचार किया गया है।
अध्याय दो से चार –
प्लेटो ने इन अध्यायों में राज्य के संगठन तथा शिक्षा प्रणाली के विषय में बताया है। जहाँ अच्छे मनुष्य और आदर्श समाज के बारे में बताया गया है। इन्हीं अध्यायों में मनुष्य के अंतर्गत पायी जाने वाली तीन प्रवृत्तियों के बारे में वर्णन मिलता है जो तर्क (रीजन), साहस (कर्रेज) और क्षुधा (एपेटाइट) हैं। आदर्श राज्य में इन्हीं प्रवृत्तियों के अनुरूप तीन वर्गों, शासक वर्ग, सैनिक (सहायक) वर्ग और उत्पादक वर्ग की विशिष्टताओं के विषय में बताया गया है।
अध्याय पाँच से सात –
इनके तहत प्लेटो आदर्श राज्य के संगठन के विषय में विस्तार से व्याख्या करते हैं। और राज्य की एसी व्यवस्था के बारे में बतातें हैं जो साम्यवाद पर आधारित है। एसा साम्यवाद जो परिवार और सम्पत्ति पर लागू होगा न कि समाज पर, जिस पर दार्शनिक शासक के द्वारा शासन किया जायेगा।
अध्याय आठ से नौ –
समाज में अव्यवस्था के कारण को बताते हुए प्लेटो इन अध्यायों में बताता है कि जब व्यक्ति और राज्य पथभ्रष्ट हो जाते हैं तो अराजकता और अव्यवस्था फैल जाती है।
अध्याय दस –
इस अध्याय के दो भाग हैं। जिसका भाग एक दर्शन का कला के साथ संबंध को बताता है जबकी दूसरा भाग आत्मा की क्षमता के विषय में बताता है।
प्लेटो के महत्वपूर्ण कथन –
प्लेटो के अनुसार, – “राज्य, व्यक्ति का बृहद् रूप है।” “कोई धोबी, मोची या नाई राजा नहीं हो सकता।” “दार्शनिक राजा का विवेक किसी भी विधि या अध्यादेश से ज्यादा महत्वपूर्ण है।”
प्लेटो के संबंध में अन्य विचारकों के कथन –
- सेबाइन ने प्लेटो के दार्शनिक राजा को ‘प्रबुद्ध अधिनायकवाद’ कहा।
- बार्कर के अनुसार,’प्लेटो शिक्षा प्राणली उसके न्याय सिद्धांत का तार्किक परिणाम है।’
- बार्कर के अनुसार,’द रिपब्लिक, मानव जीवन के संपूर्ण दर्शन के विवेचन का प्रयास है। यह केवल शिक्षा मनोविज्ञान या दर्शन पर रचना नहीं है।’
- मैक्सी ने प्लेटो को पहला ‘कल्पनालोकीय विचारक’ कहा।
- कार्ल पॉपर के अनुसार, ‘प्लेटो, हीगल और मार्क्स,मुक्त समाज के शत्रु हैं।’
- हन्ना आरेंट और कार्ल पॉपर ने प्लेटो ‘फासीवाद का दार्शनिक प्रेरक’ कहा।
- प्लेटो सबसे पहला ‘व्यवस्थित राजनीतिक सिद्धांतकार’ है।
- प्लेटो को ‘सर्वाधिकारवाद का दार्शनिक प्रणेता’ कहा जाता है।
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