राजनीति शास्त्र की परिभाषा, अर्थ, विषय क्षेत्र और प्रकृति के Notes बनाये गए हैं। राजनीति विज्ञान के अर्थ व प्रकृति से संबंधित महत्वपर्ण कथनों का विवरण है। जो TGT Civics, PGT Civics, LT Civics, GIC Political Science, UGC NET Political Science, Political Science Assistant Professor, UPPSC etc. के विगतवर्षों में आयोजित परीक्षाओं के प्रश्नो पर आधारित है।
राजनीति शास्त्र का अर्थ एवं परिभाषा
राजनीति (पॉलिटिक्स) शब्द की उत्पत्ति ग्रीक (यूनानी) ‘पोलिस’ शब्द से हुई है। पोलिस का अर्थ ‘नगर-राज्य’ होता है। इन यूनानी नगर-राज्य राज्यों की गतिविधियों को ही पोलिटिक्स नाम दिया है। पोलिटिक्स शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग अरस्तु ने किया। इसलिए राजनीति शास्त्र का पिता (जनक) अरस्तु को माना जाता है। अरस्तु के अनुसार राजनीति शास्त्र सर्वोच्च विज्ञान (मास्टर सांइस) है। जबकि नागरिक शास्त्र शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के सिविक और सिविटास शब्द से हुई है। जिसका अर्थ नागरिक होता है।
जे. डब्ल्यू. गार्नर की पुस्तक ‘पालिटिकल साइंस एंड गवर्नमेंट’ में लिखा कि “राजनीतिक विज्ञान का आरंभ और अंत राज्य से होता है।” गार्नर के अनुसार नागरिक शास्त्र की परिभाषा इस प्रकार है कि “नागरिक शास्त्र अधिक और कम मानव ज्ञान की वह उपयोगी शाखा है जो नागरिक से संबंधित प्रत्येक चीज का वर्णन करती है।”
दार्शनिक सर एडवर्ड गॉर्डन कैटलिन ने ‘द साइंस ऑफ पॉलिटिक्स एंड एंग्लो अमेरिकन यूनियन’ नामक निबंध में राजनीति विज्ञान को शक्ति के विज्ञान के रूप में परिभाषित किया है। कैटलिन के अनुसार राजनीति विज्ञान का विषय क्षेत्र शक्ति का अध्ययन है।
जर्मन साम्राज्य के प्रथम चांसलर विस्मार्क ने राजनीति को ‘संभव की कला’ (The art of the possible) के रूप में परिभाषित किया है।
- फ्रांसीसी विचारक पॉल जैनेट के अनुसार “राजनीति विज्ञान सामाजिक विज्ञान का वह अंग है, जो राज्य के आधारभूत तत्वों तथा शासन के सिद्धांतों का विवेचन करता है।”
- अमेरिकी चिंतक मार्शल एडवर्ड डिमॉक का कहना है कि ‘राजनीति विज्ञान का संबंध राज्य तथा उसके साधन सरकार से है।’
- रॉबर्ट डहल ने राजनीति विज्ञान की यह परिभाषा दी है कि “मानवीय संबंधों के उस किसी भी स्थाई रूप को राजनीतिक व्यवस्था कहेंगे, जिसमें महत्वपूर्ण अंगों में शक्ति, शासन अथवा सत्ता अंतर्ग्रस्त हो।”
- गिलक्राइस्ट के अनुसार ‘राजनीति विज्ञान के अंतर्गत राज्य तथा सरकार का अध्ययन किया जाता है।’
- पॉल जैनेट ने कहा कि “राजनीति विज्ञान समाजशास्त्र का वह भाग है, जिसमें राज्य के आधार तथा सरकार के सिद्धांतों पर विचार किया जाता है।”
- प्रो. पुन्ताम्बेकर ने कहा कि “नागरिक शास्त्र नागरिकता का विज्ञान और दर्शन है।”
राजनीति विज्ञान का विषय क्षेत्र
राजनीति विज्ञान का विषय क्षेत्र में राज्य, मूल्य, सरकार, निर्णय-निर्माण और राजनीतिक दल इत्यादि तत्व शामिल हैं। राजनीति के अध्ययन में सर्वप्रमुख केन्द्रीय सिद्धांत राज्य का सिद्धांत है।
लासवेल ने कहा कि “कौन, क्या, कब तथा कैसे प्राप्त करता है यह राजनीति का विषय है।” लासवेल की पुस्तक का नाम भी पोलिक्स : हू गेट्स, व्हाट , व्हेन हाऊ (1936) है। हैरोल्ड लासवेल के अनुसार “राजनीति मानव समुदाय द्वारा अपनी समस्याओं से निपटने की प्रक्रिया है।”
यूनेस्को ने राजनीतिक विज्ञान का क्षेत्र 1948 में निर्धारित किया था। जिसमें निम्न अध्ययन विषय शामिल है-
राजनीति के सिद्धांत, राजनीतिक संस्थाएं, राजनीतिक दल समूह एवं लोकमत, अंतर्राष्ट्रीय संबंध यह सभी विषय परंपरागत या शास्त्रीय राजनीतिक विज्ञान के है। जिसके तहत राजनीति विज्ञान को व्यक्तियों के राजनीतिक क्रियाकलापों तक ही सीमित रखा गया।
दान्ते जर्मीनो शास्त्रीय राजनीतिक सिद्धांत का प्रभावी समर्थक है। परंपरागत राजनीतिक विज्ञान के लक्षण – अमूर्त स्वरूप, काल्पनिकता, दार्शनिकता पर बल आदि हैं।
राजनीतिक विकास का सूचक क्षमता, समानता और भेदभाव विभेदीकरण इत्यादि है। भाईचारा नहीं है।
राजनीति विज्ञान के पतन की संकल्पना
रॉबर्ट डहल, पीटर लासलेट, डेविड ईस्टन और अल्फ्रेड कोबां राजनीतिक पतन की संकल्पना का विकास किया है। ‘डिकलाईन ऑफ पॉलिटिकल थ्योरी’ (1953) पुस्तक के लेखक कोबां है।
डेविड ईस्टन ने राजनीति विज्ञान के पतन के निम्न कारण बताए हैः-
- इतिहासवाद,
- प्रत्यक्षवाद,
- नैतिक सापेक्षवाद,
- अति तथ्यात्मकतावाद
डेविड ईस्टन का व्यवस्था सिद्धांत
इसके अंतर्गत ईस्टन ने राजनैतिक व्यवस्था में अत्यधिक मांगों के नियमन के लिए नियामक कार्यविधियां बताई है। जो सामाजिक-सांस्कृतिक मानदण्ड है। डेविड ईस्टन को राजनीतिक विज्ञान में व्यवहार (व्यवहारवादी) क्रांति के जनक के रूप में जाना जाता है। एडवर्ड शिल्ज ने राजनैतिक व्यवस्थाओं को राजनैतिक प्रजातंत्र, परिरक्षक प्रजातंत्र, आधुनिकी अल्पतंत्र, सर्वसत्तात्मक अल्पतंत्र और पारम्परिक अल्पतंत्र में वर्गीकृत किया है।
बुद्धिपरक वैज्ञानिक (परिसीमित तार्किकता मॉडल) हरबर्ट साइमन के निर्णय निर्माण उपागम की विशेषता है। जिसे व्यवहारिक विकल्प मॉडल भी कहा जाता है जिसमें आर्थिक मनुष्य के स्थान पर प्रशासनिक मनुष्य की संकल्पना पर अधिक बल दिया।
राजनीति विज्ञान के अर्थ व प्रकृति से संबंधित महत्वपर्ण कथन
- एफ. डब्ल्यू मेटलैण्ड का कथन है कि “जब मैं ‘राजनीति विज्ञान’ शीर्षक से अच्छे प्रश्नों के समूह को देखता हूँ तो मुझे प्रश्नों की अपेक्षा शीर्षक पर खेद होता है।”
- “राजनीति शास्त्र इतिहास एवं राजनीति के बीच और अतीत एवं वर्तमान के बीचोबीच स्थित है”। यह कथन जे. ब्राइस का है।
- “अर्थशास्त्र का संबंध वस्तुओं से है जबकि राजनीति शास्त्र का लोगों से है, एक का लेना कीमतों से है तो दूसरे का मूल्यों से”। यह कथन आर. एन. गिलक्राइस्ट का है।
- सीले का कथन है कि “इतिहास का राजनीति विज्ञान के बिना फल नहीं तथा राजनीति विज्ञान का इतिहास के बिना जड़ नहीं।”
- फ्रांसिस बेकन का कथन है कि “समाज की उन्नति के लिए विज्ञान की प्रबुद्ध तानाशाही आवश्यक है।”
- फ्रांसीसी इतिहासकार अल्फ्रेड कॉबन (कोबां) का कथन है कि “आंग्ल भाषी जगत में राजनीतिक सिद्धांत पर चुका है, साम्यवादी देशों में वह बन्दी है और अन्यत्र मर रहा है।”
- बिनिंग एंड बिनिंग का कथन है कि “नागरिक शास्त्र के शिक्षण का प्रमुख लक्ष्य अच्छे नागरिक तथा उच्च श्रेणी का नागरिक चरित्र उत्पन्न करना है।”
- बेकन को अनुदारवाद का जनक कहा जाता है।
- कल्याणकारी राज्य का सर्वप्रथम प्रयोग सिटीजन एंड चर्चमैन पुस्तक में हुआ।
- राजनीति विज्ञान की एक उपशाखा के रूप में तुलनात्मक राजनीति के विकास में हैरोल्ड लास्की ने योगदान दिया।
- स्वतंत्रता के बाद जिलाधिकारी की भूमिका में मुख्य रूप से जनतांत्रिक विकेन्द्रीकरण (पंचायती राज व्यवस्था) के कारण बहुत अधिक परिवर्तन हुआ।
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