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राज्य की उत्पत्ति का सामाजिक समझौता सिद्धांत

राज्य की उत्पत्ति का सामाजिक समझौता सिद्धांत के PYQ आधारित Notes बनाये गए हैं। इसमें राज्य की उत्पत्ति का संविदा सिद्धांत, सामाजिक अनुबंध सिद्धांत के विचारकों के विचारों का विवरण है। जो TGT Civics, PGT Civics, LT Civics, GIC Political Science, UGC NET Political Science, Political Science Assistant Professor, UPPSC etc. के विगतवर्षों में आयोजित परीक्षाओं के प्रश्नो पर आधारित है।

राज्य की उत्पत्ति का सामाजिक समझौता/संविदा/अनुबंध सिद्धांत

राज्य की उत्पत्ति के बारे में सामाजिक समझौते का सिद्धांत दैवीय सिद्धांत के विरुद्ध एक प्रतिक्रिया के रूप में सामने आया। जिसका सर्वाधिक प्रभाव (लोकप्रिय) 17वीं और 18वीं शताब्दी के दौर में रहा। सामाजिक समझौता सिद्धांत राज्य की उत्पत्ति का वर्णन करता है।
सामाजिक अनुबंध सिद्धांत का केन्द्र बिंदु यह है कि राज्य एक मानव निर्मित (कृत) संस्था है। यह राज्य को मानवीय संस्था मानता है। सामाजिक समझौते के सिद्धांत के अनुसार राज्य की स्थापना जनता की इच्छा से हुई है। जनसाधारण की इच्छा को राज्य की सत्ता का आधार मानकर इस सिद्धांत के द्वारा आधुनिक लोकतंत्र की नींव रखी गई। इस प्रकार सामाजिक संविदा का सिद्धांत मुख्य रूप से राजनैतिक दायित्व (राजनीतिक बाध्यता) के आधार की व्य़ाख्या करने का प्रयत्न करता है। मुख्य विचारक – इंग्लैंड के जॉन लॉक, थॉमस (टामस) हॉब्स और फ्रांस के रूसो हैं। अन्य समर्थक विचारक- हूकर, ग्रोशियस, मिल्टन, स्पिनोजा, इमैनुअल कांट, ऑस्टिन, राल्स है।

  • सामाजिक अनुबंध सिद्धांत का प्रथम लेखक रिचर्ड हूकर को माना जाता है। हूकर ने सामाजिक संविदा सिद्धांत की व्यख्या ‘द लॉ ऑफ इक्लेस्टिकल पोलिटी’ नामक पुस्तक में की है।
  • सामाजिक अनुबंध सिद्धांत इस धारणा से शुरू होती है कि राज्य की उत्पत्ति से पहले मनुष्य प्राकृतिक अवस्था में रहते थे।
  • सामाजिक समझौते के सिद्धांत का संबंध सबकी इच्छा से नहीं है बल्कि सामान्य इच्छा, व्यतिगत स्वतंत्रता, भय और स्वार्थ से है।

जॉन लॉक का सामाजिक अनुबंध सिद्धांत

संविदावादी विचारक लॉक ने मनुष्य को एक सामाजिक प्राणी माना है। अतः प्राकृतिक अवस्था का चित्रण शांति, सद्भावना, पारस्परिक सहायता और सुरक्षा की अवस्था के रूप में किया है। यह इस नियम पर आधारित है कि तुम दूसरों के प्रति वैसा ही व्यवहार करो जैसा व्यहार तुम दूसरों से अपने प्रति चाहते हो। लॉक के अनुसार प्राकृतिक अवस्था में मनुष्य एक विवेकयुक्त ( विवेकशील, विवेकपूर्ण) प्राणी था। प्राकृतिक अवस्था एक पूर्व राजनीतिक अवस्था है।

लॉक के अनुसार लोगों ने सामाजिक समझौता इसलिए किया था ताकि उनके प्राकृतिक अधिकारों (यथा – जीवन का अधिकार, स्वतंत्रता का अधिकार और संपत्ति का अधिकार) की रक्षा हो सके। लॉक के सामाजिक समझौते एक पक्षकार सरकार भी होता है। जिस पर समाज के द्वारा कुछ सीमाएँ निर्धारित की जाती है। इसलिए लॉक को सीमित सरकार का सबसे बड़ा समर्थक माना जाता है। लॉक का कथन है कि राज्य संपत्ति को उत्पन्न नहीं करता, अपितु स्वयं उसका निर्माण संपत्ति की रक्षा करने के लिए हुआ है।

लॉक के सामाजिक अनुबंध सिद्धांत में सर्वप्रथम प्राकृतिक अवस्था का वर्णन किया। प्राकृतिक अवस्था की समस्याओं को दूर करने के लिए लोगों के द्वारा समझौता किया गया जिसे सामाजिक अनुबंध कहते है। परिणामतः सिविल सोसइटी (नागरिक समाज) की उत्पत्ति हुई। और अंत में दूसरे समझौते के द्वारा शासन करने के लिए सरकार की स्थापना हुई। अतः लॉक ने दो प्रकार के समझौते (एक सामाजिक तथा दूसरा सरकारी) का प्रतिपादन किया है। लॉक ने सरकार और राज्य में विभेद किया है।

लॉक गौरवपूर्ण (शानदार, ग्लोरियस) क्रांति का समर्थन करता है।

थॉमस हॉब्स का सामाजिक सामाजिक समझौता सिद्धांत

हॉब्स के अनुसार प्राकृतिक अवस्था में मानवीय जीवन एकाकी निर्धन (दीन-हीन) घृणित (निंदनीय) अकाल्पनिक, पाश्विक और क्षणभंगुर होता है। प्रत्येक मनुष्य एक दूसरे का शत्रु होता है। क्योंकि मनुष्य अपने सुख के लिए दूसरों को अपने अधीन करने का प्रयास करता है। इस प्रकार प्राकृतिक अवस्था में युद्ध था और हर व्यक्ति की सब लोगों के विरूद्ध युद्ध था। इस प्राकृतिक अवस्था की अराजकता से बचने के लिए लोगों ने आपस में समझौता किया। हॉब्स के सामाजिक समझौते में लोगों ने लेवियाथन को अपने जीवन रक्षा अधिकार को छोड़कर अन्य सभी अधिकार सैंप दिए। हॉब्स के शब्दों में “मैं स्वयं अपना शासक होने के अधिकार को छोड़कर उस मनुष्य या सभा, जिसे प्रभुसत्ताधारी के रूप में मनोनीत किया जाता है को मेरे ऊपर शासन करने का अधिकार सौंपता हूँ परंतु एक शर्त यह है कि तुम भी अपना-अपना अधिकार छोड़ दो और उसके कृत्यों को वैसे ही स्वीकार करो।” अतः यह समझौता शासक और लोगों के बीच नहीं अपितु लोगों के बीच हुआ। जिसमें शासक एक पक्ष नहीं था। हॉब्स का कथन है, तलवार के बिना प्रसंविदा मात्र शब्द है।

हॉब्स की आलोचना

  • सी. ई. वॉहन (vaughan) का कथन है कि यदि लेवियाथन इतिहास की कुंजी के रूप में व्यर्थ है तो यह राज्य के सिद्धांत के रूप में भी निष्फल है।
  • गूच का कहना है कि लेवियाथन केवल अतिमानवीय आकार का पुलिस मैन है, दबाब का यंत्र है, स्वतंत्र विकासोन्मुख सभ्यता की प्राप्ति का अपरिहार्य साधन नहीं है।

रूसो की सामाजिक संविदा/सामान्य इच्छा का सिद्धांत

रूसो की संविदा की अवधारणा में सामान्य इच्छा का महत्वपूर्ण स्थान है। सामान्य इच्छा की अवधारणा व्यक्ति की सभी सकारात्मक इच्छा का प्रतिनिधित्व करती है। सामान्य इच्छा के अधीन ही शासन होता है। इसीलिए कहा जाता है कि रूसो ने तर्क बुद्धिवादी व्यष्टिवाद के परित्याग द्वारा संविदा सिद्धांत के मुख्य (मूल) का रूपांतर किया।

सामान्य इच्छा की आलोचना करते हुए एल. टी. हाबहाउस ने कहा कि सामान्य इच्छा के प्रति वास्तविक आपत्ति यह है कि जहां तक यह इच्छा है, यह सामान्य नहीं है तथा जहाँ तक यह सामान्य है, यह इच्छा नहीं है।

सामाजिक संविदा के सिद्धांत को वर्तमान में रूसो के पश्चात् जॉन रॉल्स के द्वारा नए रूप में पुनर्जीवित किया गया है। रॉल्स ने अपने न्याय सिद्धांत में अनुबंधमूलक समाज की धारणा का अनुसरण किया है।

जॉन लॉक और रूसो के समाजिक संविदा की तुलना

  • लॉक का समझौता पूर्णतया स्वतंत्र समझौता है, जबकि रूसो की संविदा आबद्ध संविदा है।
  • लॉक समुदाय को नगण्य शक्तियाँ प्रदान करता है, जबकि रूसो की संविदा में व्यक्ति का समुदाय में पूर्ण समर्पण हो जाता है।
  • लॉक की संविदा में व्यक्तियों के अधिकार सुरक्षित हो जाते हैं, जबकि रूसो की संविदा में व्यक्ति के अधिकारों का अवसान हो जाता है।

सामाजिक समझौता सिद्धांत की आलोचना

  • प्रमुख आलोचक कार्ल मार्क्स, वाहन, सर हेनरी मेन और ग्रीन है।
  • सर हेनरी मेन ने सामाजिक संविदा सिद्धांत की आलोचना घटिया इतिहास, घटिया दर्शन तथा घटिया विधि के रूप में की है। 
  • ग्रीन के अनुसार सामाजिक संविदा सिद्धांत एक कपोल कल्पना है।
  • वाहन का कथन है कि सामाजिक समझौता सिद्धांत न तो इतिहास को समझने का उचित साधन है न ही किसी ठोस राजनीतिक दर्शन का उदाहरण है।

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