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राज्य की उत्पत्ति के सिद्धांत

राज्य की उत्पत्ति के सिद्धांत के PYQ आधारित Notes बनाये गए हैं। इसमें राज्य की उत्पत्ति का दैवीय सिद्धांत, एतिहासिक विकासवादी सिद्धांत, राज्य की उत्पत्ति से संबंधित महत्वपूर्ण कथनों की सूची, राज्य की उत्पत्ति के सिद्धांतों तथा विचारकों की सूची का विवरण है। जो TGT Civics, PGT Civics, LT Civics, GIC Political Science, UGC NET Political Science, Political Science Assistant Professor, UPPSC etc. के विगतवर्षों में आयोजित परीक्षाओं के प्रश्नो पर आधारित है।

राज्य की उत्पत्ति का दैवीय सिद्धांत

दैवीय उत्पत्ति का सिद्धांत सबसे प्राचीन सिद्धांत है। जो राज्य को ईश्वर द्वारा स्थापित एक दैवीय संस्था मानता है और राजा ईश्वर का प्रतिनिधि है। इसलिए केवल ईश्वर के प्रति उत्तरदायी है। राजा के प्रति विद्रोह की भावना ही ईश्वर के प्रति विद्रोह है और जो ऐसा करेगा उसे मृत्युदण्ड मिलेगा। जेम्स प्रथम का कहना है राजा पृथ्वी पर जीवित प्रतिमाएँ हैं। ‘द ट्रू लॉ ऑफ ए फ्री मोनार्की’ पुस्तक जेम्स प्रथम की है।राज्य की उत्पत्ति का दैवीय सिद्धांत धर्म को राजनीति से अलग करता है। प्रमुख समर्थक मनु, जेम्स प्रथम, हीगल, होमर है।

दैवीय उत्पत्ति का सिद्धांत सीधे लोकतांत्रिक विचार के विरोध पर स्थित रहता है। क्योंकि यह सिद्धांत राज्य की उत्पत्ति की व्याख्या में सामान्य सहमति की भूमिका को खारिज़ (निरस्त) करता है। यह सिद्धांत मध्यकाल में अपने चरम पर था। जिसके पतन का कारण 1688 की इंग्लैंड की क्रांति, 1776 की अमेरिकन क्रांति और 1789 की फ्रांस की क्रांति बनी थी। 

राज्य की उत्पत्ति का ऐतिहासिक विकासवादी सिद्धांत

उदारवादी परम्परा में राज्य की उत्पत्ति के दो सिद्धांत मुख्य है – सामाजिक संविदा सिद्धांत और ऐतिहासिक विकासवादी सिद्धांत। कुछ (लॉक) उदारवादी प्राकृतिक अधिकारों के सिद्धांत का समर्थन करते है और कुछ नहीं (जर्मी बेन्थम)। राज्य की उत्पत्ति के संबंध में उदारवाद की सहमति सामाजिक अनुबंध सिद्धांत से है।

राज्य की उत्पत्ति के संबंध में ऐतिहासिक सिद्धांत सर हेनरी मेन के द्वारा प्रतिपादित माना गया है। हेनरी मेन के अनुसार समाज के प्राचीनतम इतिहास की आधुनिकतम गवेषणाएँ इस निष्कर्ष की ओर इंगित करती है कि समूहों की एकता के सूत्र में बांधने वाला प्रारंभिक बंधन रक्त-संबंध ही था। मैकाइवर का भी कथन है कि रक्त संबंध समाज को और समाज राज्य को जन्म देता है।

राज्य की उत्पत्ति का विकासवादी सिद्धांत सर्वाधिक वैज्ञानिक और सही माना जाता है। इसी लिए यह राज्य की उत्पत्ति का सर्वमान्य सिद्धांत है। इसे ऐतिहासिक सिद्धांत भी कहा जाता है। क्योंकि यह राज्य का काल्पनिक सिद्धांत नहीं है। इसके अनुसार राज्य क्रमिक विकास का परिणाम है। राज्य का विकास केवल एक ही तत्व के द्वारा नहीं हुआ है। बल्कि मनुष्य की सामाजिक प्रवृत्ति, रक्त संबंध, धर्म, शक्ति, आर्थिक क्रियाएं और राजनीतिक चेतना जैसे तत्वों का योगदान होता है। गैटिल के अनुसार रक्त संबंध, धर्म तथा सुरक्षा एवं व्यवस्था की आवश्यकता ने एक संगठन की स्थापना में योगदान दिया जिससे राज्य का विकास हुआ।

गर्नर के अनुसार राज्य न तो ईश्वर की सृष्टि है, न ही वह उच्च कोटि के शारीरिक बल का परिणाम है, न ही किसी प्रस्ताव या समझौते की रचना है और न ही परिवार का विस्तृत रूप है। यह तो क्रमिक विकास से उदित एक ऐतिहासिक संस्था है।

प्रमुख समर्थक विचारक – बर्क, बर्गेस, गार्नर, माण्टेस्क्यू, मैकाइवर, गिलक्राइस्ट, ब्लंटश्ली हैं।

राज्य के विकास का कालक्रम –

  1. प्राच्य साम्राज्य,
  2. यूनानी नगर-राज्य,
  3. रोमन साम्राज्य,
  4. राष्ट्र-राज्य।

आदर्शवादी सिद्धांत

राज्य के सावयविक होने पर आदर्शवादियों का विश्वास था।
आदर्शवादी विचारक टी. एच. ग्रीन के अनुसार शक्ति नहीं सदिच्छा राज्य का आधार है।

राज्य का यांत्रिक सिद्धांत

राज्य का यांत्रिक सिद्धांत के अनुसार राज्य का निर्माण मनुष्य के द्वारा स्वयं के हितों की पूर्ती के लिए किया गया है। इस अवधारणा के समर्थक हॉब्स, लॉक, बेंथम, मिल हैं।

राष्ट्र राज्य की उत्पत्ति

राष्ट्र राज्य का उद्भव जमींदारी (पूँजीवादी) राज्यों (सामंती राज्य) के पतन के बाद हुआ। राष्ट्र राज्य की उत्पत्ति के कारण है – प्रादेशिक संप्रभुता का सिद्धांत, चर्च की सार्वभौमिक सत्ता का पराभव और समष्टिवादी वैचारिक वातावरण जो पुनर्जागरण और धर्म सुधार आंदोलन की विशेषता थी।

परिक्षाओं में पूछे गए अन्य महत्वपूर्ण विचार

राज्य को सभी सामाजिक संस्थाओं में सबसे शक्तिशाली माना जाता है। हीगल ने अपने चिंतन में राज्य और समाज में विभेद नहीं किया है। हीगल के अनुसार राज्य समाज का बाह्य आवरण है। अतः समाज को राज्य से अलग नहीं किया जा सकता है। राज्य का विकास को रक्त संबंध, धर्म, राजनीतिक चेतना, शक्ति व आर्थिक गतिविधि जैसे कारकों ने प्रभावित किया है किन्तु राजनीतिक दल का कोई प्रभाव नहीं है। राजनीतिक दल का विकास राज्य के सुव्यवस्थित रूप से स्थापित होने के बाद हुआ।

  • जनसाधारण या आम लोग और राज्य एक ही हैसियत (समान) के है क्योंकि जनसाधारण के द्वारा राज्य का सृजन (निर्माण) किया जाता है। ऑस्टिन इसके समर्थक हैं।
  • चर्च की सरकार इसके सदस्यों की सहमति पर आधारित है। इस विचार की पुष्टि परिषदिक आंदोलन ने की है। उल्लेखनीय है कि मध्य युग में चर्च में ही सर्वोच्च सत्ता निहीत थी।
  • राज्य के संबंध में गाँधी जी के विचार दार्शनिक अराजकतावाद के निकट है। गाँधी जी राज्य की सत्ता के विरोधी थे वे राज्य को संगठित हिंसा पर आधारित मानते हैं जो अहिंसावादी सिद्धांत का विरोधी है। अहिंसा गाँधी का मूल दार्शनिक आधार है।
  • समाजवादी विचारक प्राकृतिक संसाधनों के राष्ट्रीयकरण का समर्थन करते है ताकि उनका पूर्ण सदुपयोग सुनिश्चित किया जा सके।
  • यूनानी नगर राज्य का आधुनिक नाम राज्य है।

राज्य की उत्पत्ति के सिद्धांतों से संबंधित महत्वपूर्ण कथन

  • एक आधुनिक राज्य समविधान के बिना राज्य नहीं अपितु अराजकता का शासन है। यह कथन जैलीनेक का है।
  • यह निश्चित है कि सरकार की उत्पत्ति बल प्रयोग के परिणामस्वरूप तथा बल प्रयोग द्वारा होती है। यह कथन स्पेन्सर का है।
  • राज्य की उत्पत्ति का पितृसत्तात्मक सिद्धांत हेनरीमेन के नाम से जुड़ा है। जिसका प्रतिपादन हेनरीमेन ने अपनी पुस्तक ‘एन्सिएन्ट लॉ और अर्ली हिस्ट्री ऑफ इंस्टीट्यूशन’ में किया है।
  • मातृसत्तात्मक सिद्धांत के समर्थक विचारक- मार्गन, जैंक्स और मेकलेनान हैं।
  • आधुनिक युग में कल्याणकारी राज्य के उदय होने कारण पुलिस राज्य की अवधारणा पुरानी पड़ गई है।
  • लोक कल्याणकारी राज्य वह है जो अपने नागरिकों के लिए सामाजिक सेवाएँ प्रदान करता है। यह कथन लास्की है।
  • उच्चतर शक्ति केवल डाकुओं का झुण्ड बना सकती है, राज्य नहीं – जीन बोदाँ
  • राज्य का कार्य व्यक्ति में आत्म निर्भरता की भावना को नष्ट करता है, उसके उत्तरदायित्व को कमजोर करता है।- जे. एस. मिल
  • व्यक्ति को स्वतंत्र होने के लिए बाध्य किया जा सकता है। – रूसो।
  • राज्य विधि का शिशु तथा जनक दोनों ही है। – मैकाइवर
  • राज्य एक नैसर्गिक संस्था है। – अरस्तु
  • मैं राज्य हूँ – लुई चौदहवां

राज्य की उत्पत्ति के सिद्धांतों तथा विचारकों की सूची

  • अभिजात्य सिद्धान्त – पैरेटो
  • अनुदारवादी सिद्धांत – बर्क
  • सामाजिक प्रसंविदा सिद्धांत – रूसो, थॉमस हॉब्स और लॉक
  • आदर्शवादी सिद्धांत – प्लेटो
  • राज्य की उत्पत्ति का शक्ति सिद्धांत – ओपेन हाइमर
  • राज्य का दार्शनिक सिद्धांत – बोसांके
  • राज्य और विधि का सामान्य सिद्धांत – कैल्सन
  • दार्शनिक उग्रवाद – जर्मी बेन्थम
  • नागरिक सद्गुणों की अभिवृद्धि की पूर्वदशा के रूप में गणतंत्रवाद – मैकियावेली
  • सामाजिक अभियांत्रिकी सिद्धांत – उदारवादी विचारक कार्ल पॉपर (द ओपेन सोसाइटी एंड इट्स एनिमीड – 1945 में)
  • राज्य के सावयवी (आंगिक) सिद्धांत का प्रथम प्रतिपादक – प्लेटो (अन्य समर्थक – हरबर्ट स्पेन्सर)
  • अनुमोदन का सिद्धांत – शांतिपर्व में प्रतिपादित

राज्य की उत्पत्ति के सिद्धांतों और संबंधित विचारधारा की सूची

  • राज्य का तत्वमीमांसावादी सिद्धांत – प्रत्ययवाद (आदर्शवाद)
  • राज्य शोषण का यंत्र है – वैज्ञानिक समाजवाद (मार्क्सवाद)
  • राज्य अनावश्यक और अवांछनीय दोनों है – अराजकतावाद
  • एक व्यक्ति अर्थ दल में असीमित शक्ति है – अधिनायकवाद
  • राज्य के लुप्त हो जाने का विचार सम्बन्धित है – साम्यवाद
  • राज्य एक अच्छी संस्था है – समाजवाद (मार्क्सवाद को छोड़कर अन्य सभी विचारधाराएँ)
  • राज्य आर्थिक आधार पर एक राजनीतिक अधिसचना है – मार्क्सवादी सिद्धांत
  • राज्य की उत्पत्ति युद्ध-स्थल में होती है – शक्ति सिद्धांत

नोट – राज्य की उत्पत्ति का सामाजिक समझौता सिद्धांत के PYQ आधारित Notes पढ़ने के लिए यहाँ राज्य की उत्पत्ति का सामाजिक समझौता सिद्धांत पर क्लिक करें।

नोट – राज्य की उत्पत्ति का मार्क्सवादी सिद्धांत के PYQ आधारित Notes पढ़ने के लिए यहाँ राज्य की उत्पत्ति का मार्क्सवादी सिद्धांत पर क्लिक करें।

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