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समानता का सिद्धांत

समानता के सिद्धांत के PYQ आधारिक नोट्स बनाये गए हैं। समानता का अर्थ परिभाषा और सिद्धांत बताये हैं। समानता का सिद्धांत के सभी पहलुओं जैसे परिभाषा, प्रकार, आयाम और विभिन्न विचारधारों के अनुसार समानता का विस्तार से वर्णन है। जो TGT Civics, PGT Civics, LT Civics, GIC Political Science, UGC NET Political Science, Political Science Assistant Professor, etc. के विगतवर्षों में आयोजित परीक्षाओं के प्रश्नो पर आधारित है।

समानता के सिद्धांत का अर्थ

सत्रहवीं शताब्दी के मध्य से मानव समाज उल्लेखनीय रूप से समानता की दिशा में आगे बढ़ा है। क्योंकि पुनर्जागरण और धर्म सुधार आन्दोलनों ने धर्मगुरुओं और कुलीन वर्ग के विधिक विशेषाधिकारों के विरुद्ध जोरदार आवाज उठायी।

समानता का अर्थ

समानता का अर्थ है कि अपने व्यक्तित्व के विकास के लिए सबको समान अवसर देने का प्रावधान हो। समाज में समानता का निहितार्थ विशेषाधिकारों का अभाव है। दूसरे शब्दों में समानता से अभिप्राय समान व्यवहार से नहीं है। क्योंकि मनुष्य आवश्यकताओं, सामर्थ तथा इच्छाओं में विषम है। अर्थात समानता का सिद्धांत मूलतः समान लोगों के साथ समान व्यवहार की धारणा पर आधारित है।

समानता के मुख्य लक्षणों में विशेषाधिकारों का अभाव, सभी व्यक्तियों को अपनी क्रियात्मक शक्तियों के विकास के समान अवसर और जाति, धर्म तथा रंग आदि के आधार पर कोई भेदभाव न करना शामिल है।

समानता का सिद्धांत

समानता की संकल्पना अधिकार, स्वतंत्रता और न्याय जैसी अवधारणाओं में से एक है। जिसका व्यवहारिक प्रयोग राजनीति में सामाजिक-आर्थिक समानता के रूप में होता है। सामान्यतः समानता का अभिप्राय विभेदों का अंत होता है। अर्थात् समाज से विशेषाधिकारों और विषमताओं की समाप्ति। हालांकि इसमें केवल अतार्किक भेद-भाव को समाप्त किया जाता है न कि तार्किक। क्योंकि असमान लोगों के बीच समान बर्ताव उतनी ही अन्याय पूर्ण है जितना कि समान लोगों के साथ असमान व्यवहार।

अतः समानता का अर्थ उन विषमताओँ को हटाना है जो समाज द्वारा उत्पन्न की गई हैं न कि प्राकृतिक विषमताओं को समाप्त कारना। यद्यपि समानता का सिद्धान्त आधुनिक युग की देन है किन्तु समानता का विचार ग्रीक युग से चला आ रहा है। जिसे रूसो के द्वारा केन्द्रीय महत्व प्रदान किया गया। बाद में अमेरिकन क्रांति (1776) और फ्रांसीसी क्रांति (1789) में समानता का सिद्धांत महत्व पूर्ण वैचारिक आधार था। यहां तक कि फ्रांसीसी क्रांति का नारा ही स्वतंत्रता, समानता व बंधुत्व का था।

समानता के दो पहलु हैं-

जो नकारात्मक और सकारात्मक है।नकारात्मक पक्ष के तहत यह कुछ निश्चित निशेषाधिकारों को समाप्त किए जाने के प्रयास में है जबकि सकारात्मक रूप में सभी व्यक्तियों को अवसर की उपलब्धता प्रदान करती है जिससे उन्हें अपने व्यक्तित्व के विकास हेतु बराबर मौका मिले।

समानता की परिभाषाएं

  • लॉस्की पुस्तक का नाम ‘ए ग्रामर ऑफ पालिटी’ है। जिसके अनुसार निसंदेह समानता में निश्चित रूप से समानीकरण प्रक्रिया का विचार निहित है।
  • लॉस्की ने कहा कि “समानत का अर्थ यह है कि सभी व्यक्तियों के लिए पर्याप्त अवसर प्राप्त होने चाहिए।”
  • लॉस्की के अनुसार “राजनीतिक समानता कभी भी यथार्थ नहीं बन सकती जब तक की उसे वास्तविक आर्थिक समानता का साथ न हो।”
  • आमर्त्य सेन इस विचार के समर्थक है कि वितरणात्मक समानता को लोगों की सामर्थ समान करने से सम्बंधित होना चाहिए। इन्होंने सामर्थ की समानता कि अवधारणा का प्रतिपादन किया।
  • अरस्तु के अनुसार ‘समानता अप्राकृतिक एवं अवांछनीय धारणा है।’ उसका मानना है कि ‘कुछ लोग जन्म से ही शासन करने के लिए होते हैं और बाकी सब लोग शासित होने के लिए।’ यह भी उल्लेखनीय है कि, आनुपातिक समानता के सिद्धांत का प्रतिपादन अरस्तु ने किया है।
  • उदारवादियों के अनुसार, समानता वैधानिक होती है जिसका अभिप्राय व्यक्ति, कानून व नियमों के समक्ष समान माने जाएंगे।
  • रैफल के अनुसार, समानता का वास्तविक अर्थ बुनियादी इंसानी जरूरतों की समान संतुष्टि का अधिकार है, जिसमें मानविय क्षमताओं को विकसित व उनका प्रयोग किया जाता है।
  • ई. एफ. कैरिट के अनुसार समानता बस लोगों को समान समझना ही है, जब तक कि आवश्यकता, क्षमता या योग्यता जैसी प्राथमिकता के अलावा कोई अन्य विपरीत प्रभाव वाला कारण न हो।

लास्की के अनुसार, समाज में कोई व्यक्ति इतना ऊंचा न होने पाये कि पड़ोसी अपनी नागरिकता और स्थिति में स्वतः को हीन समझे। इनके अनुसार समानता के अर्थ को निम्न प्रकार समझ सकते है-

  • विशेष प्राधिकारों का अभाव अर्थात् अधिकरों की समानता
  • सभी के लिए यथेष्ट अवसर सामने लाए जाएं। जिससे व्यक्ति अपने व्यक्तित्व को स्पष्टतया अनुभव कर सके।
  • सामाजिक लाभों तक बिना रोक-टोक के सभी की पहुँच सुलभ होनी चाहिए
  • आर्थिक व सामाजिक शोषण की समाप्ति

ब्रायन टर्नर ने अपनी पुस्तक इक्वालिटी में समानता के अर्थ को निम्न आधारों पर स्पष्ट किया है-

  • लोगों की आधारभूत समानता –
    • यह मानव मात्र की समानता से संबंधित है जिसमें मानव स्वभाव, मानव गरिमा, व्यक्तित्व या आत्मा के आधार पर बुनियादी रूप में बराबर माना जाता है।
  • अवसर की समानता –
    • इसका अर्थ है कि सभी लोगों की उपलब्धि और योग्यता के अनुसार, महत्वपूर्ण सामाजिक संस्थाओं तक सार्वभौमिकता के आधार पर पहुँच सुगम हो।
  • जीवनयापन की दशाओं को समान बनाने का प्रयास-
    • समानता की संकल्पना, दशाओं की समानता संबंधि धारणा अत्यधिक घनिष्ठ रूप से जुड़ी है। जिसे पृथक नहीं किया जा सकता है। क्योंकि अवसर की समानता के लिए दिशाओं की समानता की गारण्टी देना अनिवार्य है।
  • एक समान परिणाम उपलब्ध
    • इसका अर्थ है कि कानून के निर्माण व अन्य राजनीतिक साधनों के माध्यम से परिणामों की समानताएँ नैसर्गिक योग्यता पर ध्यान दिए बिना प्राप्त की जाती है। जैसे, अनुसूचित जाति एवं जनजाति, महिलाएँ, बच्चे और दिव्यांगों के लिए सकारात्मक विभेदीकरण से संबंधित कार्यक्रम।

इस प्रकार, समानता के अर्थ को समझने के लिए हमें समानता की विभिन्न विचारधाराएँ दिमाग में रखनी पड़ती हैं।

समानता के सिद्धांत

राजनीतिक समानता

राजनीतिक समानता की सर्वश्रेष्ठ गारंटी लोकतंत्र में प्राप्त है। राजनीतिक समानता से आशय है कि सबको शासन के कार्यों में भाग लेने का अधिकार प्राप्त हो।

वैधानिक व्यक्ति की समानता 

अर्नेस्ट बार्कर की पुस्तक का नाम ‘प्रिंसिपल ऑफ सोशल एंड पोलिटिकल थ्योरी’ (1994) है। इसी पुस्तक में बार्कर ने समानता के विधिक आयाम की व्याख्या करने के लिए विधिक व्यक्तित्व की समानता या ‘वैधानिक व्यक्तित्व की समानता’ (Equality Legal Personality) की अवधारणा का उल्लेख किया है। अर्थात कानून के समक्ष सभी का महत्व समान होगा।

प्राकृतिक समानता

प्राकृतिक समानता का मतलब होता है कि प्रकृति ने सभी मनुष्यों को समान बनाया है

आर्थिक समानता 

“आर्थिक समानता के बिना राजनीतिक स्वतंत्रता मिथक या कपोल कल्पना है” – जी. डी. एच. कोल।

समानता की उदारवादी विचारधारा कानूनी या वैधानिक, सामाजिक और राजनीतिक समानता पर प्रमुख रूप से बल देती है यह आर्थिक समानता की पक्षधर नहीं है। परंतु मार्क्सवादी आर्थिक समानता के पक्षधर हैं। समानता के उदारवादी सिद्धांत का मानना है कि, समानता के पर्याप्त अवसर सभी मनुष्यों को मिलने चाहिए।

समानता के आयाम

समानता एक बहुआयामी संकल्पना है। एक ओर उदारवादियों के द्वारा समानत के कानूनी-राजनीतिक आयामों पर बल दिया गया जबकि दूसरी ओर समाजवादियों ने सामाजिक-आर्थिक समानता को प्राथमिकता दी।

उदारवादियों के अनुसार समानता

हॉब्स, लॉक, बेंथम और मिल जैसे उदारवादियों ने समाकता के औपचारिक रूप का समर्थन किया। जिसे निरपेक्ष समानता भी कहा जाता है। इसके अंतर्गत समानता समानता के निम्न रूप शामिल है-

  1. कानूनी या वैधानिक समानता
  2. राजनीतिक समानता
  3. नैतिक समानता
  4. सामाजिक समानता
  5. लैंगिक समानता
  6. आर्थिक समानता

मार्क्सवादियों के समानता पर विचार

मार्क्सवादी विचारकों के द्वारा समानता के अन्तर्गत परिणामों की समानता की धारणा का समर्थन किया गया। जिसका आशय, सभी व्यक्तियों की आर्थिक स्थिति को समान बना देना है। जिसके लिए सामाजिक एवं आर्थिक विषमता को पूर्ण रूप से समाप्त करने का नारा दिया। इनके अनुसार समानता, वर्गों का खात्मा और सभी के लिए समान सामाजिक स्थिति है।

सकारात्मक उदारवादियों का समानता का विचार

इनके द्वारा कल्याणकारी राज्य का समर्थन किया जाता है। इन्होंने अवसर की समानता के रूप में समानता का समर्थन किया है। जोकि समानता का सर्व स्वीकृत आधुनिक रूप है। राल्स के अनुसार अवसर की समानता का आशय व्याक्तियों को मूलभूत प्राथमिक वस्तुओं को प्रदान करना है।

समुदायवादियों का समानता पर विचार

समुदायवादी विचारक वॉल्जार के द्वारा जटिल समानता का विचार दिया गया। इनके अनुसार सभी व्यक्तियों को समान मूलभूत सुविधाएं प्राप्त होनी चाहिए परंतु प्रत्येक क्षेत्र में समानता संभव नहीं है।

नारीवादियों के अनुसार समानता

इन्होंने समानता को समाज के साथ परिवार के स्तर पर स्थापित करने का प्रयास किया है। उदार नारीवादियों ने सार्वजनिक क्षेत्र में समानता लाने पर बल दिया इनके अनुसार महिलाओं को समान राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक एवं शिक्षा का अधिकार प्राप्त होने चाहिए। जबकि उग्र नारीवादियों ने पारिवारिक व निजी जीवन में समानता के विचार का समर्थन किया है। इनके अनुसार नैतिक, कानूनी, राजनीतिक व आर्थिक समानता आवश्यक हैं लेकिन पर्याप्त नहीं हैं।

नारीवादियों के अनुसार, पितृसत्तात्मक सत्ता में सार्वजनिक क्षेत्र पुरुषों का होता है। जबकि निजी व घरेलू क्षेत्र महिलाओं को दे दिया गया है किन्तु विडम्वना तो यह है की महिलाएं इस निजी व पारिवारिक क्षेत्र में भी पुरुषों के अधीन है उनका वहां भी स्वतंत्र अस्तित्व नहीं है। इसलिए नारीवादियों के द्वारा पितृसत्तात्मक सत्ता का विरोध किया जाता है। इनके अनुसार समानता का आशय यह नहीं कि नारी को पुरुषों के समान बना दिया जाए बल्कि नारीवादी मूल्यों को को समाज में उचित स्थान दिया जाए।

पुरुषों कि तुलना में महिलाओं कि निम्नता समाज द्वारा बनाई गई है जो विधिक रूप से न्यायोचित नहीं है। इसलिए साइमन द बुआ का मानना है कि “महिला पैदा नहीं होती बल्कि बनाई जाती है।” समाज में मुक्ति व समानता के सिद्धांत महिलाओं की स्थिति पर लागू न होना विरोधाभाषी है

बहुसंस्कृतिवादियों के समानता का विचार

इनके द्वारा विभेदकारी समानता का समर्थन किया जाता है। मेरियम यंग के अनुसार विभेद की राजनीति का अर्थ केवल लोगों को अधिकार प्रदान कर देना नहीं है बल्कि उनके प्रति व्याप्त पूर्वाग्रह और विभेद को भी समाप्त करना है। बहुसंस्कृतिवाद के समर्थकों में भीखू पारिख और किमलिका प्रमुख है। इनके अनुसार विषमता केवल आर्थिक ही नहीं बल्कि सांस्कृतिक भी होती है। इसलिए किमलिका कहती है कि अल्पसंख्यकों की सांस्कृतिक पहचान बनाए रखने पर विशेष बल देेना चाहिए।

पर्यावरणवादियों का समानता का विचार

पर्यावरणवादियों के अनुसार समानता केवल मानव मात्र तक ही सीमित नहीं रहनी चाहिए। बल्कि पेड़-पौधों, पशु-पक्षियों तथा प्रकृति को भी जीवित प्राणी के रुप में समान व्यवहार किया जाना चाहिए।

समानता के सिद्धान्त का विश्लेषण/निष्कर्ष

समानता एक आधुनिक और प्रगतिशील सैद्धांतिक मूल्य है यह राजनीतिक समानता कि विचारधारा के रूप में आधुनिकीकरण की सम्पूर्ण प्रक्रिया से जुड़ी है। इसको उग्र उन्मूलनवादी सामाजिक परिवर्तन के एक मापदण्ड के रूप में भी देखा जाता है। यह लोकतांत्रिक राजनीति के विकास की आधारभूत कड़ी है। समानता को केवल असमानताओं के संदर्भ में समझा जा सकता है। क्योंकि समाज में सभी मनुष्य वर्ग, प्रतिष्ठा, ताकत व लिंग इत्यादि से संबंधित किसी न किसी प्रकार की बात अवसरों की उपलब्धता, शर्तों की समस्या तथा परिणामों की समानता के रूप में करते है।

लास्की ने इसको वंशानुगत विशेषाधिकारों, अवसरों की उपलब्धता व सामाजिक व आर्थिक लाभों हेतु सार्वभौम बनाया। यद्यपि उदारवाद सिर्फ कानूनी समानता की बात करता था। जिसका अर्थ था कि कानून का शासन और कानून के समक्ष समानता। लेकिन लोकतंत्र के द्वारा राजनीतिक क्षेत्र में समानता के सिद्धांत की गई। यानी राजनीतिक प्रक्रिया में भाग लेने का राज्य के प्रत्येक नागरिक का अधिकार है।

यह सिद्धांत वोट देने के अधिकार, चुनावों में खड़े होने, सार्वजनिक पद ग्रहण करने तथा जाति, वर्ण, धर्म, लिंग व भाषा आदि के आधार पर कोई भेदभाव न करने के रूप में व्यक्त हुआ। जबकि सामाजिक-आर्थिक समानताओं पर मार्क्सवादी लेखकों के द्वारा ध्यान खींचा गया। उनके अनुसार समानता सिर्फ वर्गोंन्मूलन तथा वर्ग रहित समाज के निर्माण के द्वारा स्थापित की जा सकती है।

परन्तु उदारवादी विचारकों का मत था कि समानता सामाजिक विधि-विधान एवं न्यूनतम वेतन, कर माफी बेरोजगारी भत्ता और मुफ्त शिक्षा आदि के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है। यह सदैव ही वहस का मुद्दा रहा है, कि क्या उदारवादी व पूंजीवादी देशों में पर्याप्त समानता उपलब्ध है? इन देशों में यह समस्या राजनीति व अर्थव्यवस्था के बीच जटिल संबंधो के रूप में उभरकर सामने आया।

यद्यपि कल्याणकारी राज्य ने लोगों को सामाजिक रूप से जागरुक किया है। फिर भी बल, प्रतिष्ठा व सम्पति के लिहाज से बुनियादी असमानता विद्यमान है। व्यापारिक क्षेत्र में संपत्ति के वितरण में व्यापक असमानताएं है। कल्याणकारी राज्य के रूप में सरकार एक तरफ कल्याण व संसाधनों के पुनर्वितरण से इंकार नहीं कर सकती किन्तु दूसरी तरफ उसे एक मुक्त पूंजीवादी अर्थव्यवस्था की आवश्यकताओं पर ध्यान देना पड़ता है।

अमेरिकी समाजवादी टैलकॉट पार्सन्स एवं किंग्सली डैविस ने कहा कि असमानता सभी सामाजिक संगठनों के लिए एक आवश्यक शर्त है। अर्थात् समाज में सामाजिक विशिष्टीकरण एवं स्तरीकरण सामाजिक संरचना के लिए अनिवार्य है।

समानता स्वतंत्रता एवं न्याय के बीच संबंध

उदारवाद के अंदर एक विवाद स्वतंत्रता व न्याय के बीच समानता के संबंध का रहा है। प्रारंभिक दौर में समानता को स्वतंत्रता के लिए खतरा माना जाता था। किन्तु सकारात्मक उदारवाद स्वतंत्रता एवं समानता के बीच मेल-मिलाप में विश्वास रखता है। इसी प्रकार रॉल्स ने समानता को न्याय का आधार बनाया है। लेकिन यह समाज के न्यूनतम लाभांवितों की मदद करने के समर्थक है।

समानता के आलोचक

  • टॉकविले का कहना है समानता और कुछ नहीं केवल बहुमत की निरंकुशता है।
  • समकालीन विचारक क्रिस्टोल बेल ने योग्यता आधारित संकल्पना का समर्थन किया। जिसके अनुसार वर्तमान समाज में भी विषमता व्याप्त है, लेकिन यह विषमता योग्यता, कौशल और उपलब्धि के आधार पर है।

अन्य तथ्य

  • इक्वालिटी (1952) पुस्तक के लेखक आर. एच. टॉनी हैं।
  • संरक्षात्मक भेदभाव का विचार समानता के विचार से संबंधित है।

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