टी. एच. ग्रीन के राजनीतिक विचार के PYQ आधारित नोट्स बनाये गए हैं। जिसमें टी. एच. ग्रीन का परिचय, ग्रीन पर उदारवाद का प्रभाव, ग्रीन के मानव संबंधी विचार, ग्रीन के स्वतंत्रता संबंधी विचार, ग्रीन के अधिकार संबंधी विचार, ग्रीन के राज्य संबंधी विचार, ग्रीन के युद्ध संबंधी विचार तथा टी. एच. ग्रीन की पुस्तकों का विवरण है।
टी. एच. ग्रीन का परिचय
टी. एच. ग्रीन का जन्म 7 अप्रैल 1836 को यार्कशायर इंग्लैंड के एक पादरी परिवार में हुआ था। ग्रीन को ‘नव-हीगलवादी’ भी कहा जाता है। ग्रीन का मुख्य योगदान उदारवाद में आदर्शवाद का प्रवेश करना है। इन्होंने उदारवाद का आदर्शवादी संशोधन किया। इसी संबंध में सेबाइन का कथन है कि उदारवाद का आदर्शवाद में सबसे प्रभावी और सफल संशोधन टी. एच. ग्रीन ने किया।
टी. एच. ग्रीन ने ब्रिटिश उदारवाद में अपना विशाल योगदान दिया है। इन्होंने लॉक के प्राकृतिक अधिकारों के सिद्धांत और जरमी बेंथम के उपयोगितावाद का खण्डन किया और नैतिक आधार पर उदारवाद का पुनर्निर्माण किया और कल्याणकारी संकल्पना को बढ़ावा दिया।
ग्रीन पर उदारवाद का प्रभाव
टी. एच. ग्रीन ऑक्सफोर्ड स्कूल से संबंधित हैं। जिसके तीन प्रमुख विचारकों में ग्रीन सबसे महत्वपूर्ण हैं। दो अन्य ब्रेडले और बोसांके नामक आदर्शवादी विचारक हैं। ग्रीन कांट के विचारों से प्रभावित थे। कांट का प्रसिद्ध कथन है कि ‘व्यक्ति स्वयं में साध्य’ है। इसलिए ग्रीन ने व्यक्ति के स्वभाव को नैतिक माना है।
टी. एच. ग्रीन के मानव संबंधी विचार
ग्रीन ने व्यक्ति को मुख्यतः सामाजिक माना है। ग्रीन के शब्दो में व्यक्ति सामाजिक प्राणी है। ग्रीन ने उदारवाद का आदर्शवाद में सबसे सफल संशोधन किया है। ग्रीन को कल्याणकारी राज्य के सिद्धांत का सर्वप्रमुख प्रतिपादक माना जाता है।
ग्रीन के स्वतंत्रता संबंधी विचार
टी. एच. ग्रीन के राजनीतिक विचार में ग्रीन सकारात्मक स्वतंत्रता का समर्थक है। ग्रीन के शब्दों में स्वतंत्रता का अभिप्राय करने योग्य एवं भोगने योग्य कार्य तथा साझे रूप से किये जा सकने वाले कार्यों को करने से है।
बार्कर ने ग्रीन के विचारो का वर्णन अपने शब्दों में इस प्रकार किया है कि स्वतंत्रता मानव चेतना में अंतरनिहित है। स्वतंत्रता अधिकारों की माँग करती है और अधिकार राज्य के बिना संभव नहीं है। ग्रीन ने स्वतंत्रता को लोगों की क्षमता के रुप में परिभाषित किया है।
ग्रीन के अधिकार संबंधी विचार
टी. एच. ग्रीन के अनुसार अधिकार व्यक्ति के नैतिक दावे है जो समाज के द्वारा स्वीकृत है और जिसकी रक्षा राज्य द्वारा की जाती है। यद्यपि ग्रीन ने प्राकृतिक अधिकार शब्द का प्रयोग किया है परंतु वह लॉक के अर्थ में प्राकृतिक अधिकार नहीं है। ग्रीन के अनुसार अधिकार प्राकृतिक इसलिए हैं कि व्यक्ति के नैतिक विकास के लिए आवश्यक है, न कि इसलिए कि वे राज्य के स्थापना से पहले प्राकृतिक अवस्था में थे।
ग्रीन का मानना है कि अधिकार सुनिश्चित नहीं होते, बल्कि मानव नैतिकता के विकास के साथ परिवर्तित होते रहते हैं। अर्थात् अधिकार वे सामाजिक परिस्थितियां हैं, जो व्यक्ति को नैतिक बनाने में सहायक होती हैं। अधिकार राज्य और समाज के द्वारा प्रदान किये जाते हैं, जो राज्य व समाज के विरुध नहीं होते हैं।
ग्रीन के राज्य संबंधी विचार
ग्रीन का मानना है कि राज्य की प्रकृति आंगिक होती है। ग्रीन का कथन है कि राज्य का कार्य एक उत्तम जीवन के मार्ग में आने वाली बाधाओं को दूर करना है। अशिक्षा, अज्ञान, गरीबी व नशाखोरी वह बाधाएँ जो व्यक्ति को उत्तम जीवन निर्वाह में बाधक है।
ब्रिटिश राजनीतिक विचारक टी. एच. ग्रीन ने राज्य को लोगों की संस्कृतियों की सामूहिक चेतना के मूर्तरूप में देखा है। इनके अनुसार राज्य व्यक्ति की चेतना का बाहरी विस्तार है। ग्रीन का कथन है कि शक्ति नहीं इच्छा राज्य का आधार है। इसी कारण ग्रीन राज्य को एक आवश्यक अच्छाई के रूप में प्रतिपादित किया।
ग्रीन के युद्ध संबंधी विचार
ग्रीन युद्ध की तीव्र आलोचना करता है और इसे अपरिपक्वता की निशानी मानता है। ग्रीन के अनुसार अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में युद्ध मानवीय नैतिकता में कमी का परिणाम है और युद्ध अपूर्ण है। ग्रीन का मानना है कि मानवीय नैतिकता में पूर्ण विकास के पश्चात युद्ध स्वाभाविक रूप में समाप्त हो जाएगा।
टी. एच. ग्रीन की पुस्तकें
- लैक्चर्स ऑन द प्रिंसिपल्स ऑफ पॉलिटिकल ओबलीगेशन (1879)। इसका प्रकाशन 1883 में हुआ।
- लैक्चर्स ऑन इंग्लिश रिवोल्यूशन
- लिबरल लेजिस्लेशन एंड फ्रिडम ऑफ कंट्रेक्ट 1861
- द प्रोलेगोमेनन टु इथिक्स 1884
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