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वैज्ञानिक समाजवाद के नोट्स

TGT Civics, PGT Civics, LT Civics, GIC Political Science, UGC NET Political Science, Political Science Assistant Professor, UPPSC etc. के विगतवर्षों में आयोजित परीक्षाओं के प्रश्नो पर आधारित वैज्ञानिक समाजवाद (मार्क्सवाद) के नोट्स बनाये गए हैं। इसमें वैज्ञानिक समाजवाद का अर्थ, प्रकार और मार्क्सवाद, साम्यवाद, लेनिनवाद व अन्य महत्वपूर्ण तथ्य से संबंधित विवरण है।

वैज्ञानिक समाजवाद (मार्क्सवाद) का अर्थ

कार्ल मार्क्स को वैज्ञानिक समाजवाद का प्रणेता माना जाता है। वैज्ञानिक समाजवाद, मार्क्सवाद के रूप में भी जाना जाता है। फ्रेडरिक ऐंगल्स ने मार्क्स के सामाजिक आर्थिक राजनीतिक सिद्धांत को वैज्ञानिक समाजवाद का नाम दिया। मार्क्सवादी समाजवाद के अनुसार समाजवादी समाज में राज्य आवश्यक होता है क्योंकि क्रांति के साम्यवाद की स्थापना के लिए राज्य की आवश्यकता होती है। जिसे सर्वहारा-अधिनायकत्व कहा जाता है। किन्तु समाज में साम्यवाद के क्रमिक विकास के साथ धीरे-धीरे राज्य लुप्त हो जाएगा।

मार्क्सवादी दृष्टिकोण के अनुसार राज्य वर्ग संस्था है। समाज की अधिसंरचना का एक घटक है। संघर्ष का दमन करने वाला और शोषणकारी या उत्पीड़न का यंत्र है। जिसमें परिवर्तन क्रांति द्वारा ही संभव है। राज्य का स्वरूप आर्थिक सम्बंधों के स्वरूप पर निर्भर करता है। मार्क्सवादियों का कहना है कि राज्य शोषक वर्ग की कार्यकारिणी समिति है।

नये समाज रूपी शिशु को गर्भ में धारण करने वाली हर पुरानी व्यवस्था के लिए शक्ति एक दाई है। यह कथन कार्ल मार्क्स का है। मार्क्सवाद का उद्देश्य पूँजीवाद को क्रांतिकारी ढंग से उखाड़ फेंकना है।

मार्क्सवाद ने पैट्रीशियन-प्लेबियन और गिल्ड मास्टर जार्नीमेन का उल्लेख वर्ग संघर्ष के संदर्भ में किया है।
कम्युनिस्ट मेनीफेस्टो (1848) कार्ल मार्क्स के द्वारा लिखा गया।

कार्ल मार्क्स के द्वारा प्रतिपादित संकल्पनाएं

  • सम्पेन सर्वहारा
  • बुर्जुआ राज्य
  • द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद
  • इतिहास की भौतिकवादी (आर्थिक) व्याख्या
  • वर्ग संघर्ष का सिद्धांत – वर्ग संघर्ष पहले सुपरस्ट्रक्चर में होता है।
  • अतिरिक्त मूल्य का सिद्धांत
  • अलगाववाद का सिद्धांत
  • राज्य का वर्ग सिद्धांत मार्क्स के द्वारा प्रतिपादित किया गया।

मार्क्सवादी समाजवादी सिद्धांत का आधार परिवर्तन की मूल सच्चाई पदार्थ की धारणा है। मार्क्सवाद का विश्वास है कि राजनीतिक शक्ति आर्थिक शक्ति से उत्पन्न होती है। मार्क्स के अनुसार धर्म लोगों के लिए अफीम है
ऐतिहासिक भौतिकवाद सिद्धांत के अनुसार अर्थिक आधार वैचारिक तथा राजनीतिक अधिसंरचना को निर्धारित करता है।
वैज्ञानिक समाजवाद की विचारधारा के अंतर्गत द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद का सिद्धांत के जनक आदर्शवादी विचारक हीगेल है।

भारत में मार्क्सवादी विचारधारा

भारत में मार्क्सवादी विचारधारा को लाने का श्रेय एम. एन. रॉय को जाता है। इन्होंने माइकल बारोडीन से प्रेरित होकर मार्क्सवाद को अपनाया था।

लेनिनवाद

लेनिन को मार्क्सवादी विचारकों में एक मेधावी सिद्धांतकार कहा जाता है। लेनिन के द्वारा मार्क्सवाद के सिद्धांत और कार्यप्रणाली के लिए वैनगार्ड पार्टी का सिद्धांत और उपनिवेशवाद के सैद्धांतिक विश्लेषण का सही योगदान किया गया था। लेनिनवाद की खोज स्टालिन के द्वारा की गई। स्टालिन ने लेनिन की विचारधारा में संशोधन करते हुए 1924 में एक पुस्तक प्रॉब्लम्स ऑफ लेनिनिज्म लिखी। जिसमें स्टालिन एक देश में समाजवाद की स्थापना को संभव मानता है भले ही बाकी दुनिया में पूँजीवाद हो।

लेनिन ने कहा था कि क्रांति उत्पीड़ित और शोषित लोगों का उत्सव है। लेनिन के लिए क्रांति का प्रभावी कारण विचार है न कि उत्पादन की भौतिक स्थिति। लेनिन का कथन है कि साम्यवादियों की कोई मातृभूमि नहीं होती है।
लेनिन के अनुसार साम्राज्यवाद पूँजीवाद की अंतिम अवस्था है। दूसरे शब्दों में पूँजीवाद की अंतिम अवस्था के रूप में साम्राज्यवाद है।

साम्यवाद

मार्क्स की पुस्तक दास कैपिटल को साम्याद की बाइबिल कहा जाता है। मार्क्सवाद समाज को राज्यविहीन और वर्ग विहीन बनाना चाहता है। मार्क्सवादी सामाजिक न्याय की अवधारणा पर बल देते हैं। साम्यवादी व्यवस्था में हर एक को अपनी क्षमता के अनुसार, और हर एक को अपनी आवश्यकता के अनुसार धारणा को अपनाया जाता है। यूरो-साम्यवाद शब्द के प्रथम प्रयोग इटली के साम्यवादी एनरिको बर्लिगर ने किया।

साम्यवाद (समाजवाद) के विशिष्ट तत्व-

  • उत्पादन के साधनों पर समाज का स्वमित्व
  • वितरण के साधनों का समाजीकरण
  • अब तक के शोषकों का शोषण

स्वप्नलोकीय समाजवाद

थॉमस मूर, फूरियर और राबर्ट स्वप्निल समाजवाद के समर्थक हैं। समाजवाद में मार्क्स के पूर्ववर्ती सिद्धांतों को स्वप्नलोकीय समाजवाद कहा जाता है। मार्क्स के अनुसार उसके पहले का सारा समादवादी चिन्तन काल्पनिक था।

उत्तर-मार्क्सवाद

उत्तर-मार्क्सवाद मार्क्सवाद की कुछ मूल मान्यताओं को नहीं मानता है। जैसे वर्ग विभाजन, संघर्ष का मूलकारण पूँजीवाद इत्यादि।

उत्तर-मार्क्सवादियों के विचार

  • श्रमिक वर्ग क्रांतिकारी आंदोलन में विकसित नहीं हुआ है।
  • आर्थिक वर्ग का हित अपेक्षतया विचारधारा और राजनीति से स्वायत्त होता है।
  • श्रमिक वर्ग समाजवाद में अपनी आधारभूत स्थिति को बनाए नहीं रख पाता है।

अन्य तथ्य

मार्क्सवाद और फासीवाद सरकार के अधिनायकवादी लक्षण के विषय में सहमत हैं।
सम्भ्रांतवादी जेम्स बर्नहम ने मार्क्स के विचारों से प्रभावित होकर प्रबंधकीय क्रांति की बात कही है।
वस्तुतः समस्त समाजवादियों तथा साम्यवादियों की जड़ें प्लेटो में विद्यमान है। यह टिप्पणी सी. सी. मैक्सी ने लिखी है।
कार्ल पापर ने कहा है कि मार्क्सवाद खुले समाज का दुश्मन है।

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