वीर सावरकर के राजनीतिक विचार के PYQ आधारित नोट्स बनाये गए हैं। जिसमें वी डी सावरकर का परिचय, स्वतंत्रता संग्राम में सावरकर के योगदान व कार्य, सावरकर जी के राष्ट्रवाद का विचार, वीर सावरकर के हिन्दुत्व का विचार, सावरकर के अन्य महत्वपूर्ण विचार तथा सावरकर जी की पुस्तकों का विवरण है।
वी डी सावरकर का परिचय
वी डी सावरकर का पूरा नाम विनायक दामोदर सावरकर है। इनका जन्म 28 मई 1883 को नासिक महाराष्ट्र में हुआ था। सावरकर को लोकप्रिय रूप में ‘वीर सावरकर’ के नाम से जाना जाता है। इन्होंने तिलक को अपना गुरु माना है। बाल गंगाधर तिलक के अनुमोदन पर ही 1906 में सावरकर को श्याम जी कृष्ण वर्मा से छात्रवृत्ति प्राप्त हुई।
10 मई 1907 में सावरकर ने ‘इण्डिया हाऊस’ लंदन में प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की स्वर्ण जयन्ती मनाई थी। सावरकर जी हिंसक माध्यमों द्वारा भारतीय स्वतंत्रता के समर्थक थे तथा ‘मैज्जिनी’ के विचारों से प्रभावित थे। वीर सावरकर भारत के ऐसे पहले व्यक्ति थे जिन्होंने ब्रिटिश साम्राज्य के केन्द्र, लंदन में उसके विरूद्ध क्रांतिकारी संगठन बनाया था। क्रांतिकारी गतिविधियों में संलिप्तता के कारण सावरकर को दो बार आजीवन कारावास (50 वर्ष के कारावास) का दंड देकर अंडमान की सेल्युलर जेल में भेज दिया गया। सावरकर पहले राजनीतिक कैदी थे जिनका मामला (केस) हेग के अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय में चला था।
स्वतंत्रता संग्राम में सावरकर के योगदान व कार्य
- सावरकर ने बाल्यावस्था में ही एक युवक संघ ‘मित्रमेला’ का गठन किया।
- लंदन में सावरकर ने इण्डिया हाऊस में रहते हुए ‘फ्री इंडियन सोसाइटी’ की स्थापना की।
- वर्ष 1904 में फर्ग्यूसन कालेज में अध्ययन के समय सावरकर ने एक क्रांतिकारी एवं राष्ट्रवादी संगठन ‘अभिनव भारत’ की स्थापना की। जिसका विघटन मई 1952 में पुणे की एक विशाल सभा के दौरान किया।
- वीर सावरकर ने 1905 के बंग-भंग आन्दोलन के दौरान पुणें में विदेशी कपड़ों की होली जलाई। वर्ष 1906 के ‘स्वदेशी’ का नारा दिया और पूर्ण स्वतंत्रता की मांग उठायी। अपने विचारों के कारण इन्हें बैरिस्टर की डिग्री खोनी पड़ी।
- 23 जनवरी 1924 को सावरकर जी ने रत्नागिरी में ‘हिन्दूसभा’ की स्थापना की थी। जिसका उद्देश्य हिन्दू उत्तराधिकार एवं सभ्यता को सुरक्षित रखना था।
- सावरकर ने बम्बई प्रेसीडेन्सी में 25 फरवरी 1931 को आयोजित ‘अस्पृश्यता उन्मूलन सम्मेलन’ की अध्यक्षता की थी।
- सावरकर जी को छः बार ‘अखिल भारतीय हिन्दू महासभा’ का राष्ट्रीय अध्यक्ष चुना गया था। 1937 में इन्होंने अखिल भारतीय हिन्दू महासभा के 19वें सत्र की अध्यक्षता की जिसका आयोजन कर्णावती अहमदाबाद में हुआ। महासभा को 1938 में राजनीतिक दल घोषित कर दिया गया।
- सावरकर ने 15 अप्रैल 1938 को ‘मराठी साहित्य सम्मेलन’ की भी अध्यक्षता की थी।
सावरकर के राष्ट्रवाद का विचार
वीर सावरकर के राजनीतिक विचार में उग्र राष्ट्रवादी एवं क्रांतिकारी विचारधारा स्पष्ट दिखाई देती है। सावरकर का विचार है कि राष्ट्रवाद एक मनौवैज्ञानिक भावना नहीं थी और इसे विकसित नहीं किया जा सकता था। इनके राष्ट्र का अभिप्राय धार्मिक एवं सास्कृतिक एकता है।
सावरकर का कथन है कि, पृथ्वी हमारी वास्तविक जन्मभूमि है, मानव हमारा राष्ट्र है और अधिकारों तथा कर्तव्यों की समानता पर आधारित मानव सरकार हमारा अंतिम राजनैतिक लक्ष्य है या होना चाहिए। इस संबंध में सावरकर ने कहा कि, मातृभूमि! तेरे चरणों में पहले ही मैं अपना मन अर्पित कर चुका हूँ। देश सेवा ही ईश्वर सेवा है, यह मानकर मैंने तेरी सेवा के माध्यम से भगवान की सेवा की।
सावरकर के शब्दों में, इसलिए ब्रुट्स की तलवार पवित्र है, शिवाजी की बघनख उचित है, चार्ल्स प्रथम का सिर कलम करना न्यायपूर्ण है, विलियम टेल का तीर दैवीय है। क्योंकि यह सब राष्ट्र के लिए किया गया था।
वीर सावरकर के हिन्दुत्व का विचार
वीर सावरकर जी के राजनीतिक विचार में इन्होंने हिन्दूवाद के स्थान पर हिन्दुत्व शब्द को अपनाया। इन्होंने अपनी कृति, हिन्दुत्व : हिन्दू कौन है? में हिन्दू की परिभाषा दी। जिसके अनुसार क्षेत्रिय रूप से हिन्दू वह है जो एक ओर सिन्धु से लेकर ब्रह्मपुत्र तक तथा दूसरी ओर हिमालय से कन्याकुमारी तक फैली भौगोलिक भूमि के प्रति अनुराग का अनुभव करता है। अर्थात् हिन्दू का आशय सिंधु नदी के इस पार रहने वाले लोगों का केवल धर्म परंपरा नहीं, बल्कि एक प्रजाति एवं राष्ट्रीयता है। अतः हिन्दू वे लोग हैं जो इस भूमि को मातृभूमि व पितृभूमि दोनों मानते हैं।
सारकर के अनुसार कोई भी व्यक्ति बगैर वेद में विश्वास किए भी सच्चा हिन्दू हो सकता है। इसीलिए सावरकर ने अम्बेडकर जी के द्वारा बौद्ध धर्म को स्वीकारे जाने पर कहा कि अब जाकर वे सच्चे हिन्दू बने हैं। वीर सावरकर हिन्दू राज्य की स्थापना के समर्थक थे। सावरकर ने अपने हिन्दू राष्ट्र के विचार में अल्पसंख्यकों के लिए यदि वे हिन्दुओं के हितों में अनाक्रमण की स्थिति को स्वीकार करते हो तो, उन्हें कुछ सीमा तक राज्य के मामलों में भागीदारी का अधिकार तथा स्वतंत्रता प्राप्त की थी।
वीर सावरकर के अनुसार हिन्दू समाज सात प्रकार की बेड़ियों में जकड़ा हुआ था। जो निम्न हैं –
- रोटी बंदी
- स्पर्स बंदी
- बेटी बंदी
- व्यवसाय बंदी
- सिंधु बंदी
- वेदोक्त बंदी
- शुद्धि बंदी
सावरकर के अन्य महत्वपूर्ण विचार
- सावरकर ने राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (RSS) को एक डरपोक संगठन कहा है। क्योंकि इसने हिन्दू राज्य का समर्थन न करके हिन्दू राष्ट्र का समर्थन किया था।
- सावरकर के हिन्दुत्व में ऐसे विचार एवं विश्वास शामिल नहीं हैं जो भारतीय भू-भाग से बाहर पैदा हुए हैं।
- गोवा को स्वतंत्र कराने की आवाज सबसे पहले सावरकर जी ने उठाई थी।
- सावरकर जी का कहना था कि अगर मैं जेल में हड़ताल की होती तो मुझसे भारत पत्र भेजने का अधिकार छीन लिया जाता।
- सावरकर जी को भारतीय राजनीति में एक पोलराइजिंग फिगर के रूप में या तो हीरो या विलेन माना जाता है।
सावरकर की पुस्तकें (कृतियाँ) एव लेख
इनके लेख ‘इंडियन सोशलोजिस्ट’ और ‘तलवार’ नामक पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए बाद में कलकत्ता के ‘युगांतर पत्र’ में भी प्रकाशन हुआ।
- दि इण्डियन वार ऑफ इण्डिपेन्डेन्स 1908 (इसे प्रतिबंधित कर दिया था। इस पुस्तक के प्रकाशन में मैडम भीकाजी कामा ने सहयोग किया था)
- हिन्दुत्व : हिन्दू कौन है? (या हिन्दुत्व) 1923 (अप्रैल 1946 में मरहट्य नाम से प्रकाशित हुई)
- हिन्दू पद-पादशाही 1925
- हिन्दू राष्ट्र दर्शन 1949
- माई ट्रान्सपोर्टेशन फॉर लाईफ 1984
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